दुनिया / चीन की तर्ज पर बलोच लड़ाकों के लिए 'डी-रैडिक्लाइज़ेशन' कैंप चला रहा पाक

बलोचिस्तान में विद्रोह की मार झेल रहा पाकिस्तान अब अपने सबसे करीबी दोस्त चीन की राह पर चल पड़ा है। पाकिस्तानी सेना ने चीन द्वारा उइगर समुदाय के लिए चलाए जा रहे 'रि-एजुकेशन' कैंप की तर्ज पर दो 'डी-रैडिक्लाइज़ेशन' कैंप तैयार किए हैं, ताकि बलोच विद्रोह पर काबू पाया जा सके। आपको बता दें कि चीन शिनजियांग प्रान्त में ऐसे ही कैंप चला रहा है, और पाकिस्तान के यह 'डी-रैडिक्लाइज़ेशन' कैंप चीन से काफी मिलते-जुलते हैं।

News18 : Sep 08, 2020, 06:58 AM
नई दिल्ली। बलोचिस्तान में विद्रोह (Revolt in Balochistan) की मार झेल रहा पाकिस्तान (Pakistan) अब अपने सबसे करीबी दोस्त चीन (China) की राह पर चल पड़ा है। पाकिस्तानी सेना (Pakistan Army) ने चीन द्वारा उइगर समुदाय (Uyghur Muslims) के लिए चलाए जा रहे 'रि-एजुकेशन' कैंप की तर्ज पर दो 'डी-रैडिक्लाइज़ेशन' कैंप तैयार किए हैं ताकि बलोच विद्रोह पर काबू पाया जा सके। आपको बता दें कि चीन शिनजियांग प्रान्त में ऐसे ही कैंप चला रहा है, और पाकिस्तान के यह 'डी-रैडिक्लाइज़ेशन' कैंप चीन से काफी मिलते-जुलते हैं। उइगर मुस्लिम समुदाय को जबरन काबू करने के लिए शिनजियांग काफी चर्चा में रहा है और वहां पर सरकार के समर्थन से ऐसे ही कैंप चलाए जाते हैं।


क्या होता है पाक 'डी-रैडिक्लाइज़ेशन' कैंप में?

खुफिया रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान सेना की दक्षिणी कमांड ने आत्मसमर्पण कर चुके बलोच लड़ाकों के लिए यह कैंप तैयार किए हैं। इन कैंप्स का मुख्य उद्देश्य बलोच लड़ाकों का मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और सांस्कृतिक आधार पर उन्हें डी-रैडिकलाइज़ करना और उनमें जबरदस्ती देशभक्ति का भाव जगाना। ट्रेनिंग में सरेंडर कर चुके लड़ाकों को पाकिस्तान अध्ययन, देशभक्ति, जिहाद के बारे में बताया जाता है। कैंप का उद्देश्य 'बलूचियों को कानून का पालन करने वाले और समाज के आर्थिक रूप से सशक्त सदस्यों में बदलना' है। ऐसे कैंप से पाकिस्तान बलोच राष्ट्रवाद के सभी निशान खत्म करना चाहता है।

करीब तीन महीनों के कैंप में अब तक दो बैच जाने की खबर है। पहला बैच 17 दिसंबर 2018 से 9 मार्च 2019 तक चला, वहीं दूसरा बैच 29 अप्रैल 2019 से 27 जुलाई 2019 तक चला। पहले बैच में 50 लड़ाके और दूसरे बैच में 128 लड़ाके शामिल थे। ज़्यादातर लड़ाके डेरा बुगती क्षेत्र से हैं, उसके बाद सिबि और कोहलु क्षेत्र से आते हैं। इन लड़ाकों की उम्र 18 से 40 के बीच है।

बलोच राष्ट्रवाद के खिलाफ पाकिस्तान धार्मिक शिक्षकों और धर्म-देशभक्ति की आड़ ले रहा है और जमात-ए-इस्लामी के मौलानाओं को इन कैंप्स में भेज रहा है। इन कैंप्स में वोकेशनल ट्रेनिंग में सिलाई और कृषि की ट्रेनिंग भी दी जाती है, लेकिन ट्रेनिंग के बाद नौकरी के लिए कोई व्यवस्था नहीं है, यानी यह सब दिखावे के लिए किया जाता है। हर लड़ाके के लिए 10 हज़ार पाकिस्तानी रुपये का वादा भी किया जाता है, लेकिन 4 से 5 लड़ाकों के अलावा यह राशि किसी को भी नहीं मिली।

'डी-रैडिक्लाइज़ेशन' कैंप का चीन कनेक्शन

बलोच राष्ट्रवाद को खत्म करने के लिए इन कैंप्स की सलाह पूर्व जनरल असीम सलीम बाजवा ने दी थी। माना जाता है कि बाजवा के चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के साथ करीबी संबंध हैं। इन कैंप्स की रूप-रेखा और मकसद शिंजियांग के कैंप्स से बहुत मिलता जुलता है। बाजवा अभी पीएम इमरान खान के विशेष प्रतिनिधि हैं और CPEC गलियारे प्राधिकरण के चेयरमैन भी हैं। अभी इन 'डी-रैडिक्लाइज़ेशन' कैंप्स को चलाने की ज़िम्मेदारी GoC 41 डिवीज़न के मेज जनरल इरफान अहमद मलिक के पास है।