Vikrant Shekhawat : Sep 16, 2022, 07:17 PM
उज्बेकिस्तान के समरकंद में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन की मीटिंग से इतर पीएम नरेंद्र मोदी ने तुर्की के राष्ट्रपति तैयप अर्दोआन से भी मुलाकात की है। दोनों देशों के बीच कुछ सालों में कश्मीर को लेकर तनाव देखने को मिला था। ऐसे में यह मीटिंग अप्रत्याशित है और इससे तुर्की के रवैये में बड़ा बदलाव देखने को मिला है। दो साल पहले अर्दोआन ने कश्मीर को लेकर टिप्पणी की थी, जिसे पर भारत ने तीखा ऐतराज जताया था। दरअसल अर्दोआन ने पाकिस्तान के दौरे पर कह दिया था कि कश्मीर में हालात बिगड़ रहे हैं। इस पर भारत ने तुर्की के राजदूत को समन जारी कर ऐतराज जाहिर किया था। अर्दोआन के बयान को जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाने और राज्य के पुनर्गठन के फैसले से जोड़कर देखा गया था। लेकिन अब अर्दोआन की पीएम नरेंद्र मोदी से मुलाकात चौंकाने वाली है। दरअसल यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद से दुनिया भर में गेहूं और चावल जैसे अहम खाद्यान्नों की सप्लाई प्रभावित हुई है। ऐसे में तुर्की को भारत से गेहूं और चावल का निर्यात करना पड़ा था। उसके इस कदम को खाद्यान्न की मजबूरी के तौर पर देखा गया था। इसलिए अर्दोआन की पीएम नरेंद्र मोदी से मुलाकात को भी इस मजबूरी के तौर पर देखा जा रहा है। तुर्की को पाकिस्तान अपने करीबी और मित्र देशों में शुमार करता रहा है। अर्दोआन से मुलाकात के बाद पीएम नरेंद्र मोदी अब रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ भी मीटिंग कर रहे हैं। पीएमओ की ओर से अर्दोआन से मुलाकात के बारे में दी गई जानकारी में कहा गया कि दोनों नेताओं ने अलग-अलग क्षेत्रों में भारत और तुर्की के बीच संबंधों को मजबूत करने पर बात की। अर्दोआन के साथ पीएम नरेंद्र मोदी की यह मुलाकात पहले से तय नहीं थी। विदेश मंत्रालय की ओर से बताया गया कि दोनों नेताओं के बीच बातचीत में बढ़ते द्विपक्षीय संबंधों के बारे में बात हुई। इसके अलावा क्षेत्रीय और वैश्विक घटनाक्रम को लेकर भी बात की गई।आर्थिक संकट से गुजर रहा है तुर्की, रूस से भी मांगी है मदददरअसल तुर्की इन दिनों गहरे आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा है। ऐसे में भारत जैसा देश उसके लिए अहम हो सकता है। इसलिए पीएम नरेंद्र मोदी से अर्दोआन की मुलाकात को इकॉनमी में एक पार्टनर की तलाश के तौर पर भी देखा जा रहा है। बता दें कि तुर्की के राष्ट्रपति ने आर्थिक संकट से निपटने के लिए रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से भी मदद मांगी है। तुर्की का संकट यहां तक है कि ईंधन के आयात के लिए उनके पास विदेशी मुद्रा भंडार तक की कमी है। तुर्की का इस साल का प्राकृतिक गैस के आयात का बिल 50 अरब डॉलर के पास जा सकता है। रूस उसका सबसे बड़ा सप्लायर है। ऐसे में तुर्की को उससे मदद की उम्मीद है।