Vikrant Shekhawat : May 18, 2022, 08:03 PM
नई दिल्ली: तमाम अटकलों और आशंकाओं के बीच आखिरकार हार्दिक पटेल ने कांग्रेस () छोड़ दी। लेकिन जाते-जाते वे पार्टी नेतृत्व के खिलाफ कुछ ऐसा बोल गए कि इसकी चर्चा होने लगी। साल 2018 में अल्पेश ठाकोर, जिग्नेश मेवाणी और हार्दिक पटेल, राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की युवा समूह के सदस्य थे। लेकिन अब तक दो युवा नेताओं ने इस ग्रुप को छोड़ दिया है। हार्दिक पटेल ने भी कांग्रेस को अलविदा कह दिया।
पार्टी में अपनी उपेक्षा से नाराज होकर हार्दिक पटेल ने कहा कि उनकी बात सुनने से ज्यादा दिल्ली के नेताओं के लिए चिकन सैंडविच मायने रखता है। उनका इशारा राहुल गांधी की ओर था। इससे पहले असम के सीएम हिमंता बिस्वा सरमा ने भी राहुल गांधी पर उनकी बात सुनने से ज्यादा अपने पालतू कुत्ते पिडी को ज्यादा महत्व देने का आरोप लगाया था। उन्होंने आरोप लगाया था कि वे राहुल गांधी से बात कर रहे थे, लेकिन राहुल उन्हें सुनने की बजाय कुत्ते को बिस्किट खिला रहे थे।कांग्रेस छोड़ने वाले इन सभी नेताओं में क्या समानता है? इनमें से ज्यादातर नेताओं ने बीजेपी का दामन थामा। इसके अलावा एक और समानता यह है कि ये सभी नेता राहुल गांधी के करीबी रहे या राहुल गांधी ने उन्हें चुना। शुरुआत में ये सभी नेता पूरे उत्साह के साथ राहुल गांधी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करते रहे, लेकिन धीरे-धीरे हालात बदलते गए और चीजें गलत होने लगीं।ऐसे ही एक नेता जो कभी राहुल गांधी के करीबी रहे, उन्होंने कहा, “उनके करीबी लोगों का समूह असुरक्षित है। उन्हें यह बात पसंद नहीं थी कि हमारी पहुंच सीधे राहुल गांधी तक हो और वे हमें बायपास करके उनसे मिल सके। आखिरकार राहुल गांधी भी उन्हीं लोगों पर विश्वास करने लगते हैं इसके लिए मैं राहुल को दोष दूंगा।”इसका सबसे बड़ा उदाहरण ज्योतिरादित्य सिंधिया हैं, जो कभी राहुल गांधी के बहुत करीबी थे। लेकिन जब कांग्रेस मध्य प्रदेश में सत्ता में आई तो यह साफ हो गया था कि दिग्विजिय सिंह और कमलनाथ के होते हुए उनकी राह इतनी आसान नहीं होगी।दिग्विजय सिंह को सिंधिया से कोई लगाव नहीं था। सिंधिया राज्य मंत्रिमंडल में अपने समर्थकों के लिए जगह चाहते थे। लेकिन उनकी किसी ने नहीं सुनी और अंततः उन्होंने पार्टी से इस्तीफा दे दिया।यही कहानी आरपीएन सिंह और जितिन प्रसाद की है, जिन्हें एक समय राहुल गांधी तक पहुंचने में कोई समस्या नहीं थी। लेकिन धीरे-धीरे हालात बदलने लगे।
‘कांग्रेस नेतृत्व दो बड़ी समस्याओं से ग्रस्त’इन सभी नेताओं के अनुभव को जानने के बाद लगता है कि कांग्रेस नेतृत्व दो समस्याओं से ग्रस्त है – पहला, गांधी का करीबी समूह जो किसी को भी अपने करीब नहीं आने देगा कि ताकि उन्हें दरकिनार किया जा सके। साथ ही, जो भी बदलाव लाना चाहता है, कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को उस पर ज्यादा विश्वास नहीं है।हालांकि हर राजनीतिक दल से नेता इस्तीफे देते हैं और यह कोई नई बात नहीं है। लेकिन कांग्रेस में अक्सर कुछ नेता पार्टी छोड़ते शीर्ष नेतृत्व खासकर गांधी परिवार पर यह आरोप लगा जाते हैं कि, हमें सुनने के बजाय उनके लिए डॉग पिडी और चिकन सैंडविच ज्यादा मायने रखता है।
पार्टी में अपनी उपेक्षा से नाराज होकर हार्दिक पटेल ने कहा कि उनकी बात सुनने से ज्यादा दिल्ली के नेताओं के लिए चिकन सैंडविच मायने रखता है। उनका इशारा राहुल गांधी की ओर था। इससे पहले असम के सीएम हिमंता बिस्वा सरमा ने भी राहुल गांधी पर उनकी बात सुनने से ज्यादा अपने पालतू कुत्ते पिडी को ज्यादा महत्व देने का आरोप लगाया था। उन्होंने आरोप लगाया था कि वे राहुल गांधी से बात कर रहे थे, लेकिन राहुल उन्हें सुनने की बजाय कुत्ते को बिस्किट खिला रहे थे।कांग्रेस छोड़ने वाले इन सभी नेताओं में क्या समानता है? इनमें से ज्यादातर नेताओं ने बीजेपी का दामन थामा। इसके अलावा एक और समानता यह है कि ये सभी नेता राहुल गांधी के करीबी रहे या राहुल गांधी ने उन्हें चुना। शुरुआत में ये सभी नेता पूरे उत्साह के साथ राहुल गांधी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करते रहे, लेकिन धीरे-धीरे हालात बदलते गए और चीजें गलत होने लगीं।ऐसे ही एक नेता जो कभी राहुल गांधी के करीबी रहे, उन्होंने कहा, “उनके करीबी लोगों का समूह असुरक्षित है। उन्हें यह बात पसंद नहीं थी कि हमारी पहुंच सीधे राहुल गांधी तक हो और वे हमें बायपास करके उनसे मिल सके। आखिरकार राहुल गांधी भी उन्हीं लोगों पर विश्वास करने लगते हैं इसके लिए मैं राहुल को दोष दूंगा।”इसका सबसे बड़ा उदाहरण ज्योतिरादित्य सिंधिया हैं, जो कभी राहुल गांधी के बहुत करीबी थे। लेकिन जब कांग्रेस मध्य प्रदेश में सत्ता में आई तो यह साफ हो गया था कि दिग्विजिय सिंह और कमलनाथ के होते हुए उनकी राह इतनी आसान नहीं होगी।दिग्विजय सिंह को सिंधिया से कोई लगाव नहीं था। सिंधिया राज्य मंत्रिमंडल में अपने समर्थकों के लिए जगह चाहते थे। लेकिन उनकी किसी ने नहीं सुनी और अंततः उन्होंने पार्टी से इस्तीफा दे दिया।यही कहानी आरपीएन सिंह और जितिन प्रसाद की है, जिन्हें एक समय राहुल गांधी तक पहुंचने में कोई समस्या नहीं थी। लेकिन धीरे-धीरे हालात बदलने लगे।
‘कांग्रेस नेतृत्व दो बड़ी समस्याओं से ग्रस्त’इन सभी नेताओं के अनुभव को जानने के बाद लगता है कि कांग्रेस नेतृत्व दो समस्याओं से ग्रस्त है – पहला, गांधी का करीबी समूह जो किसी को भी अपने करीब नहीं आने देगा कि ताकि उन्हें दरकिनार किया जा सके। साथ ही, जो भी बदलाव लाना चाहता है, कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को उस पर ज्यादा विश्वास नहीं है।हालांकि हर राजनीतिक दल से नेता इस्तीफे देते हैं और यह कोई नई बात नहीं है। लेकिन कांग्रेस में अक्सर कुछ नेता पार्टी छोड़ते शीर्ष नेतृत्व खासकर गांधी परिवार पर यह आरोप लगा जाते हैं कि, हमें सुनने के बजाय उनके लिए डॉग पिडी और चिकन सैंडविच ज्यादा मायने रखता है।