Vikrant Shekhawat : Aug 11, 2020, 06:49 PM
- व्यंग्यकार डॉ. संपत सरल ने कहा- अत्यंत दुःखद ख़बर, यकीन नहीं हो रहा, ईश्वर परिवार को इस दुःख की घड़ी में हिम्मत दें
- सीएम शिवराज सिंह ने लिखा- अपनी शायरी से लाखों-करोड़ों दिलों पर राज करने वाले मशहूर शायर राहत इंदौरी का निधन मध्यप्रदेश और देश के लिए अपूरणीय क्षति है
- कुमार विश्वास ने लिखा- काव्य-जीवन के ठहाकेदार किस्सों का एक बेहद जिंदादिल हमसफर हाथ छुड़ा कर चला गया
राहत जी की दो बड़ी बहनें थीं जिनके नाम तहज़ीब और तक़रीब थे,एक बड़े भाई अकील और फिर एक छोटे भाई आदिल रहे। परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी और राहत जी को शुरुआती दिनों में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। उन्होंने अपने ही शहर में एक साइन-चित्रकार के रूप में 10 साल से भी कम उम्र में काम करना शुरू कर दिया था। चित्रकारी उनकी रुचि के क्षेत्रों में से एक थी और बहुत जल्द ही बहुत नाम अर्जित किया था। वह कुछ ही समय में इंदौर के व्यस्ततम साइनबोर्ड चित्रकार बन गए। क्योंकि उनकी प्रतिभा, असाधारण डिज़ाइन कौशल, शानदार रंग भावना और कल्पना की है कि और इसलिए वह प्रसिद्ध भी हैं। यह भी एक दौर था कि ग्राहकों को राहत द्वारा चित्रित बोर्डों को पाने के लिए महीनों का इंतजार करना भी स्वीकार था। यहाँ की दुकानों के लिए किया गया पेंट कई साइनबोर्ड्स पर इंदौर में आज भी देखा जा सकता है। उनका पहला निकाह अंजुम रहबर से हुआ जो हिन्दी—उर्दू शायरी की एक जानी—मानी हस्ताक्षर हैं।राहत की प्रमुख गजलें
अँधेरे चारों तरफ़अँधेरे चारों तरफ़ सांय-सांय करने लगे
चिराग़ हाथ उठाकर दुआएँ करने लगे
तरक़्क़ी कर गए बीमारियों के सौदागरये सब मरीज़ हैं जो अब दवाएँ करने लगे
लहूलोहान पड़ा था ज़मीं पे इक सूरजपरिन्दे अपने परों से हवाएँ करने लगे
ज़मीं पे आ गए आँखों से टूट कर आँसूबुरी ख़बर है फ़रिश्ते ख़ताएँ करने लगे
झुलस रहे हैं यहाँ छाँव बाँटने वालेवो धूप है कि शजर इलतिजाएँ करने लगे
अजीब रंग था मजलिस का, ख़ूब महफ़िल थीसफ़ेद पोश उठे कांय-कांय करने लगे
अगर ख़िलाफ़ हैं होने दो
अगर ख़िलाफ़ हैं होने दो जान थोड़ी है
ये सब धुआँ है कोई आसमान थोड़ी है
लगेगी आग तो आएँगे घर कई ज़द मेंयहाँ पे सिर्फ़ हमारा मकान थोड़ी है
मैं जानता हूँ के दुश्मन भी कम नहीं लेकिनहमारी तरहा हथेली पे जान थोड़ी है
हमारे मुँह से जो निकले वही सदाक़त हैहमारे मुँह में तुम्हारी ज़ुबान थोड़ी है
जो आज साहिबे मसनद हैं कल नहीं होंगेकिराएदार हैं ज़ाती मकान थोड़ी है
सभी का ख़ून है शामिल यहाँ की मिट्टी मेंकिसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है
आँख प्यासी है कोई मन्ज़र दे
आँख प्यासी है कोई मन्ज़र दे
इस जज़ीरे को भी समन्दर दे
अपना चेहरा तलाश करना हैगर नहीं आइना तो पत्थर दे
बन्द कलियों को चाहिये शबनमइन चिराग़ों में रोशनी भर दे
पत्थरों के सरों से कर्ज़ उतारइस सदी को कोई पयम्बर दे
क़हक़हों में गुज़र रही है हयातअब किसी दिन उदास भी कर दे
फिर न कहना के ख़ुदकुशी है गुनाहआज फ़ुर्सत है फ़ैसला कर दे
अपने होने का हम इस तरह पता देते थे
अपने होने का हम इस तरह पता देते थे
खाक मुट्ठी में उठाते थे, उड़ा देते थे
बेसमर जान के हम काट चुके हैं जिनकोयाद आते हैं के बेचारे हवा देते थे
उसकी महफ़िल में वही सच था वो जो कुछ भी कहेहम भी गूंगों की तरह हाथ उठा देते थे
अब मेरे हाल पे शर्मिंदा हुये हैं वो बुजुर्गजो मुझे फूलने-फलने की दुआ देते थे
अब से पहले के जो क़ातिल थे बहुत अच्छे थेकत्ल से पहले वो पानी तो पिला देते थे
वो हमें कोसता रहता था जमाने भर मेंऔर हम अपना कोई शेर सुना देते थे
घर की तामीर में हम बरसों रहे हैं पागलरोज दीवार उठाते थे, गिरा देते थे
हम भी अब झूठ की पेशानी को बोसा देंगेतुम भी सच बोलने वालों को सज़ा देते थे
उँगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो
उँगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो
खर्च करने से पहले कमाया करो
ज़िन्दगी क्या है खुद ही समझ जाओगेबारिशों में पतंगें उड़ाया करो
दोस्तों से मुलाक़ात के नाम परनीम की पत्तियों को चबाया करो
शाम के बाद जब तुम सहर देख लोकुछ फ़क़ीरों को खाना खिलाया करो
अपने सीने में दो गज़ ज़मीं बाँधकरआसमानों का ज़र्फ़ आज़माया करो
चाँद सूरज कहाँ, अपनी मंज़िल कहाँऐसे वैसों को मुँह मत लगाया करो
धूप बहुत है मौसम जल-थल भेजो न
धूप बहुत है मौसम जल-थल भेजो न
बाबा मेरे नाम का बादल भेजो न
मोलसिरी की शाख़ों पर भी दिये जलेंशाख़ों का केसरिया आँचल भेजो न
नन्ही मुन्नी सब चहकारें कहाँ गईंमोरों के पैरों की पायल भेजो न
बस्ती बस्ती दहशत किसने बो दी हैगलियों बाज़ारों की हलचल भेजो न
सारे मौसम एक उमस के आदी हैंछाँव की ख़ुश्बू, धूप का संदल भेजो न
मैं बस्ती में आख़िर किस से बात करूँमेरे जैसा कोई पागल भेजो न
तू शब्दों का दास रे जोगीतू शब्दों का दास रे जोगीतेरा कहाँ विश्वास रे जोगी
इक दिन विष का प्याला पी जाफिर न लगेगी प्यास रे जोगी
ये सांसों का बन्दी जीवनकिसको आया रास रे जोगी
विधवा हो गई सारी नगरीकौन चला वनवास रे जोगी
पुर आई थी मन की नदियाबह गए सब एहसास रे जोगी
इक पल के सुख की क्या क़ीमतदुख है बारह मास रे जोगी
बस्ती पीछा कब छोड़ेगीलाख धरे सन्यास रे जोगी
मस्जिदों के सहन तक जाना बहुत दुश्वार थामस्जिदों के सहन तक जाना बहुत दुश्वार थादेर से निकला तो मेरे रास्ते में दार था
अपने ही फैलाओ के नशे में खोया था दरख़्तऔर हर मासूम टहनी पर फलों का भार था
देखते ही देखते शहरों की रौनक़ बन गयाकल यही चेहरा था जो हर आईने पे भार था
सब के दुख सुख़ उस के चेहरे पे लिखे पाये गयेआदमी क्या था हमारे शहर का अख़बार था
अब मोहल्ले भर के दरवाज़ों पे दस्तक है नसीबएक ज़माना था कि जब मैं भी बहुत ख़ुद्दार था
काग़ज़ों की सब सियाही बारिशों में धुल गईहम ने जो सोचा तेरे बारे में सब बेकार था
हर एक चेहरे को ज़ख़्मों का आईना न कहोहर एक चेहरे को ज़ख़्मों का आईना न कहोये ज़िन्दगी तो है रहमत इसे सज़ा न कहो
न जाने कौन सी मज़बूरियों का क़ैदी होवो साथ छोड़ गया है तो बेवफ़ा न कहो
तमाम शहर ने नेज़ों पे क्यूँ उछाला मुझेये इत्तेफ़ाक़ था तुम इस को हादसा न कहो
ये और बात कि दुश्मन हुआ है आज मगरवो मेरा दोस्त था कल तक उसे बुरा न कहो
हमारे ऐब हमें उँगलियों पे गिनवाओहमारी पीठ के पीछे हमें बुरा न कहो
मैं वाक़ियात की ज़न्जीर का नहीं क़ायलमुझे भी अपने गुनाहों का सिलसिला न कहो
ये शहर वो है जहाँ राक्षस भी हैं "राहत"हर एक तराशे हुए बुत को देवता न कहो
सारी बस्ती कदमों में है ये भी इक फनकारी हैसारी बस्ती क़दमों में है, ये भी इक फ़नकारी हैवरना बदन को छोड़ के अपना जो कुछ है सरकारी है
कालेज के सब लड़के चुप हैं काग़ज़ की इक नाव लियेचारों तरफ़ दरिया की सूरत फैली हुई बेकारी है
फूलों की ख़ुश्बू लूटी है, तितली के पर नोचे हैंये रहजन का काम नहीं है, रहबर की मक़्क़ारी है
हमने दो सौ साल से घर में तोते पाल के रखे हैंमीर तक़ी के शेर सुनाना कौन बड़ी फ़नकारी है
अब फिरते हैं हम रिश्तों के रंग-बिरंगे ज़ख्म लियेसबसे हँस कर मिलना-जुलना बहुत बड़ी बीमारी है
दौलत बाज़ू हिकमत गेसू शोहरत माथा गीबत होंठइस औरत से बच कर रहना, ये औरत बाज़ारी है
कश्ती पर आँच आ जाये तो हाथ कलम करवा देनालाओ मुझे पतवारें दे दो, मेरी ज़िम्मेदारी है
सफ़र की हद है वहाँ तक के कुछ निशान रहेसफ़र की हद है वहाँ तक के कुछ निशान रहेचले चलो के जहाँ तक ये आसमान रहे
ये क्या उठाये क़दम और आ गई मन्ज़िलमज़ा तो जब है के पैरों में कुछ थकान रहे
वो शख़्स मुझ को कोई जालसाज़ लगता हैतुम उस को दोस्त समझते हो फिर भी ध्यान रहे
मुझे ज़मींन की गहराइयों ने दाब लियामैं चाहता था मेरे सर पे आसमान रहे
अब अपने बीच मरासिम नहीं अदावत हैमगर ये बात हमारे ही दरमियान रहे
मगर सितारों की फसलें उगा सका न कोईमेरी ज़मीन पे कितने ही आसमान रहे
वो एक सवाल है फिर उस का सामना होगादुआ करो कि सलामत मेरी ज़बान रहे