सालासर । सालासर वाले बाबा विक्रम संवत 1811 श्रावण शुक्ला नवमी को प्रकट हुए थे। कहा जाता है कि करीब 250 साल पहले अपने प्रिय भक्त मोहनलाल से बातें किया करते थे। मंदिर का निर्माण मुस्लिम कारीगरों ने किया था।
- राजस्थान के चूरू जिले में स्थित सालासर बालाजी भगवान हनुमान के भक्तों के लिए एक धार्मिक स्थल है।
- सुजानगढ़ से लगभग 25 किलोमीटर दूर सालासर गांव है। सालासर गांव में स्थापित सिद्धपीठ बालाजी की प्रतिमा आसोटा गांव के एक खेत में प्रकट हुई थी।
- बालाजी के परम भक्त मोहनदास जी को हल चलाते समय इस प्रतिमा के प्रथम दर्शन हुए थे।
- मोहनदास की भक्ति से प्रसन्न होकर बालाजी ने इन्हे मूर्ति रूप में प्रकट होने का वचन दिया। अपने वचन को पूरा करने के लिए बालाजी नागौर जिले के आसोटा गांव में 1811 में प्रकट हुए।
- दरअसल भक्त मोहनदास और उनकी बहन कान्ही बाई की भक्ति भाव से बालाजी साक्षात् दर्शन प्राप्त किए। कहते हैं कि श्री बालाजी एवं मोहनदास जी आपस में वार्तालाप करते थे।
ऐसा है बालाजी का मंदिर
- सालासर मन्दिर में श्री बालाजी की भव्य प्रतिमा सोने के सिंहासन पर विराजमान है। इसके ऊपरी भाग में श्री राम दरबार है तथा निचले भाग में श्री राम चरणों में दाढ़ी मूंछ से सुशोभित हनुमान जी श्री बालाजी के रूप में विराजमान हैं।
- मुख्य प्रतिमा शालिग्राम पत्थर की है जिसे गेरूए रंग और सोने से सजाया गया है। बालाजी का यह रूप अद्भुतए आकर्षक एवं प्रभावशाली हैं।
- प्रतिमा के चारों तरफ सोने से सजावट की गई हैं और सोने का भव्य मुकुट चढ़ाया गया है। प्रतिमा पर लगभग 5 किलोग्राम सोने से निर्मित स्वर्ण छत्र भी सुशोभित है।
263 साल से जल रहा है दीपक
- प्रतिष्ठा के समय से ही मन्दिर के अंदर अखण्ड दीप प्रज्वलित हैं। मन्दिर परिसर के अन्दर प्राचीन कुएं का लवण मुक्त जल आरोग्यवर्धक है। श्रद्धालु यहां स्नान कर अनेक रोगों से छुटकारा पाते हैं।
- मन्दिर के अन्दर स्थित प्राचीण धूणां आज भी जल रहा है। शुरू में जाटी वृक्ष के पास एक छोटा सा मन्दिर था।
- जांटी का वृक्ष इसके नीचे बैठकर भक्त मोहनदास पूजा करते थे वह आज भी मौजूद हैं जिस पर भक्तजन नारियल एवं ध्वजा चढ़ाते हैं तथा लाल धागे बांधकर मन्नत मांगते हैं।
- पावन धाम में प्रत्येक वर्ष की चैत्र पूर्णिमा और आश्विन पूर्णिमा पर मेले भरते हैं। मेलों में 6 से 7 लाख लोग एकत्र होते हैं।
- यह एकमात्र बालाजी का मंदिर है, जिसमें बालाजी के दाढ़ी और मूंछ है। बताया जाता है कि मुस्लिम कारीगरों ने इस मंदिर का निर्माण किया था, जिसमे मुख्य थे फतेहपुर से नूर मोहम्मद और दाऊ।