Maharashtra News / सांसदों के निलंबन पर शिवसेना ने सरकार को घेरा, लिखा- यह लोकतंत्र की सामूहिक हत्या

शिवसेना के मुखपत्र सामना में संसद में कई सदस्यों के निलंबन का जोरदार विरोध किया गया है. इस घटना को लोकतंत्र की हत्या करार दिया गया है. सामना में इस बार में तीखी टिप्पणी करते हुए लिखा गया है कि "लोकसभा और राज्यसभा हमारे लोकतंत्र के सर्वोच्च सभागृह हैं. जनमत के आधार पर निर्वाचित हुए जनप्रतिनिधि इन दोनों सभागृहों में जनता से जुड़े और देश हित से जुड़ी समस्याओं के समाधान को हल करने के अपने कर्तव्य को निभाते हैं.

Vikrant Shekhawat : Jul 29, 2022, 09:13 AM
Saamana Editorial On MPs Suspension: शिवसेना (Shiv Sena) के मुखपत्र सामना (Saamana) में संसद में कई सदस्यों के निलंबन का जोरदार विरोध किया गया है. इस घटना को लोकतंत्र की हत्या करार दिया गया है. सामना में इस बार में तीखी टिप्पणी करते हुए लिखा गया है कि "लोकसभा और राज्यसभा हमारे लोकतंत्र के सर्वोच्च सभागृह हैं. जनमत के आधार पर निर्वाचित हुए जनप्रतिनिधि इन दोनों सभागृहों में जनता से जुड़े और देश हित से जुड़ी समस्याओं के समाधान को हल करने के अपने कर्तव्य को निभाते हैं. ऐसे मामलों में सत्तारूढ़ पार्टी शब्द व क्रिया से उत्तर दे, ऐसी अपेक्षा की जाती है, लेकिन बीते सात-आठ वर्षों से संसद में सत्ताधारियों द्वारा अलग-अलग तरीके से विरोधियों की आवाज को दबाने का प्रयास किया जा रहा है. विपक्षी सांसदों का सामुदायिक निलंबन उसी प्रयास का एक हिस्सा है. इसे लोकतंत्र का सामुदायिक हत्याकांड ही कहना होगा."

शिवसेना ने उठाए ये सवाल

पार्टी के मुखपत्र में लिखा गया है कि "दो दिन पहले लोकसभा में कांग्रेस के चार सांसदों को निलंबित कर दिया गया. इसके पहले बुधवार को राज्यसभा में लगभग 19 सांसदों के खिलाफ भी इसी तरह की कार्रवाई की गई. शिवसेना ने आरोप लगाया कि ये कार्रवाई इसलिए की गई क्योंकि उन्होंने संसद में जनता की समस्याओं पर आवाज उठाई, नेताओं ने महंगाई और जीएसटी के मुद्दे पर, गुजरात के जहरीली शराब कांड को लेकर आवाज उठाई. इसमें लिखा गया कि ये सभी तृणमूल कांग्रेस, द्रमुक, तेलंगाना राष्ट्र समिति, ‘आप’ और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के सांसद हैं. इन सभी ने संसद में महंगाई पर, जीएसटी पर नहीं बोलना है तो फिर किस चीज पर बोलना है? जनता ने इसीलिए अपने प्रतिनिधि के रूप में उन्हें संसद में भेजा है न? वे अपने कर्तव्यों का निर्वहन न करें, ऐसी ही केंद्र सरकार की नीति है."

सांसदों का निलंबन एक तरह की भाषण बंदी- संपादकीय

संपादकीय में आगे केंद्र सरकार पर आरोप लगाते हुए लिखा गया है कि "सत्ताधारी पार्टी आत्ममुग्धता में मग्न है लेकिन आम जनता महंगाई के प्रहार से पस्त है. रसोई गैस की कीमतों में बढ़ोतरी से गृहणियों का बजट धराशायी हो गया है. सरकार एक तरफ ‘उज्ज्वला’ योजना का ढोल पीटती है, लेकिन बेहद महंगे हो गए गैस सिलिंडर इस योजना के तहत आनेवाले लोगों के लिए लेना असंभव हो गया है. इस ज्वलंत सच्चाई को छुपाया जा रहा है. एक तरफ दरवृद्धि और दूसरी तरफ पांच फीसदी जीएसटी का नया भूत, सरकार ने आम लोगों की कलाई पर बिठा दिया है. इस काम-काज के विरोध में जनता की ओर से विपक्ष नहीं तो कौन आवाज उठाएगा? परंतु यहां जनता को धार्मिक एवं अन्य जुमलेबाजी में उलझाकर रखना तथा दूसरी तरफ विरोधियों को न सड़क पर, न संसद में और न ही संसद के बाहर बोलने देना है. संसद में उन्होंने आवाज उठाई तो उनके मुंह पर निलंबन की पट्टी चिपका देते हैं."

सामना के इस संपादकीय में आगे कहा गया है कि भाषण पर बंदी नहीं है कहना और दूसरी तरफ महंगाई के खिलाफ सभागृह में आवाज उठाने वालों के खिलाफ कार्रवाई को योग्य ठहराना, एक साथ सांसदों को निलंबित कर देना. यह भी एक प्रकार से ‘भाषण बंदी’ ही है. संसद का अधिवेशन शुरू होने से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘संसद में खुले मन से संवाद और चर्चा होनी चाहिए. अधिवेशन का संसद के सदस्यों को पूरा उपयोग करना चाहिए’, ऐसा आह्वान किया था. प्रधानमंत्री की यह अपेक्षा स्वागत योग्य है. विरोधी संसद के कामकाज का अनमोल समय व्यर्थ न गंवाए. सरकार की यह अपेक्षा भी नाजायज नहीं है लेकिन जनता की जरूरतों से जुड़ी समस्याओं पर सभागृह में आवाज उठाने की विरोधियों की इच्छा भी अनुचित तो नहीं है?

'लोकतंत्र की सामूहिक हत्या'

संपादकीय में आरोप लगाते हुए कहा गया है कि "प्रधानमंत्री कहते हैं संसद में खुले मन से संवाद एवं खुली चर्चा होनी चाहिए. परंतु लोकसभा में महंगाई पर बोलने वाले कांग्रेस के चार और राज्यसभा में लगभग 19 विरोधी सांसदों का जल्दबाजी में निलंबन किस ‘खुले माहौल’ के अंतर्गत आता है? वास्तविक विरोधियों की समस्याओं का उचित समाधान करना सरकारी पक्ष का कर्तव्य होता है, ऐसा हुआ होता तो प्रधानमंत्री के कहे अनुसार खुला संवाद सिद्ध हुआ होता. परंतु इसकी बजाय विपक्ष के सांसदों पर निलंबन की कार्रवाई की गई तथा विरोधियों की आवाज दबा दी गई. संसद के भाषण में किन शब्दों का इस्तेमाल करना है इस पर अंकुश, संसद परिसर में आंदोलन, प्रदर्शन करने पर बंदी और अब संसद में महंगाई को लेकर आक्रामक हुए कुल 23 विरोधी सांसदों पर निलंबन की कुल्हाड़ी, यह ‘खुला संवाद’ न होकर लोकतंत्र की सामूहिक हत्या है."