Live Hindustan : Feb 21, 2020, 03:37 PM
बॉलीवुड: पिछले कुछ सालों से अभिनेता आयुष्मान खुराना अपना ‘#आयुष्मानमैजिक’ बॉक्स ऑफिस पर दिखाते आ रहे हैं। लेकिन, उनका यह सिलसिला फिल्म ‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’ के साथ थमता नजर आ रहा है। पिछली ज्यादातर सफल फिल्मों में आयुष्मान के किरदारों का अपना एक अलग व्यक्तित्व रहा है। लेकिन, फिल्म ‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’ में आप कार्तिक में थोड़ा ‘बाला’ का बालमुकुंद शुक्ला देखेंगे। थोड़ा ‘ड्रीम गर्ल’ का करम सिंह और थोड़ा ‘बधाई हो’ का नकुल कौशिक देखेंगे। आयुष्मान की इस फिल्म ‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’ में आपको ‘स्पार्क’ की कमी दिखेगी। हां, इतना जरूर कहा जा सकता है कि इस फिल्म को देखरकर आपको ‘एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा’ की याद आ जाएगी।‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’ कहानी है कार्तिक (आयुष्मान खुराना) और अमन (जितेंद्र कुमार) की। दोनों प्यार में हैं और दिल्ली में साथ रहते हैं। मुश्किलें तब शुरू होती हैं जब कार्तिक के चाचा (मनुऋषि चड्ढा) की बेटी गॉगल (मानवी गागरू) की शादी में शिरकत करने ये दोनों इलाहाबाद जाते हैं और वहां इनके समलैंगिक संबंध का राज सबके सामने आ जाता है। अमन के पिता शंकर त्रिपाठी (गजराज राव) और मां सुनयना त्रिपाठी (नीना गुप्ता) सहित पूरे परिवार को यह बात जानकर झटका लगता है। अब अमन और कार्तिक के सामने चुनौती है कि वे सबको अपने रिश्ते को स्वीकारने के लिए मनाएं।
हितेश केवल्य ने इस फिल्म की कहानी लिखी है और इसका निर्देशन भी किया है और ये दोनों ही इसकी सबसे कमजोर कड़ियां हैं। सधे हुए तरीके से शुरू होने के बाद फिल्म निर्देशक के हाथ से फिसलती है और फिल्म खत्म होने तक आप इंतजार ही करते रह जाते हैं कि अब यह सही ट्रैक पकड़ेगी, पर ऐसा हो नहीं पाता।
एक्टिंग के लिहाज से सबसे उल्लेखनीय काम किया है अमन के चाचा बने मनुऋषि चड्ढा और चाची बनी सुनीता राजवर ने। ये दोनों ही अपने-अपने किरदारों में सबसे ज्यादा सहज लगे हैं। कई दृश्यों में तो ये नीना-गजराज की जोड़ी पर भी भारी पड़ते नजर आए। नीना-गजराज ने वैसे तो अच्छा काम किया है, पर काफी हद तक वे अपने ‘बधाई हो’ वाले तेवर को ही दोहराते नजर आए। जितेंद्र कुमार अपनी सादगी और मासूमियत के चलते अमन के किरदार में एकदम सटीक बैठे हैं, पर उनकी संवाद अदायगी और अदाकारी में कई जगह आत्मविश्वास की कमी नजर आई।
फिल्म के संवाद कहीं-कहीं तो कमाल के हैं, पर कहीं-कहीं बेहद औसत हैं। ‘रोज हमें लड़ाई लड़नी पड़ती है जिंदगी में, पर जो लड़ाई अपने परिवार या अपनी फैमिली के साथ लड़नी पड़ती है, वह सबसे ज्यादा खतरनाक होती है...’ आयुष्मान का यह संवाद इसकी एक बानगी है। इस सिरीज की पिछली फिल्म ‘शुभ मंगल सावधान’ में ‘इरेक्टाइल डिस्फंक्शन’ जैसी बीमारियों से जुड़ी भ्रांतियों की परतों को बेहद प्रभावशाली अंदाज में दिखाया गया था। इसमें कॉमेडी और असल मुद्दे के बीच एक अच्छा संतुलन था। ‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’ में समलैंगिक संबंधों का असल मुद्दा काफी हद तक दब कर रह गया है। छोटे शहरों के समलैंगिकों को किस तरह की समस्याएं झेलनी पड़ती है, यह समझाने में, उनका दर्द दर्शकों को महसूस करवाने में यह फिल्म नाकाम रहती है। यह मुद्दे को ढेर सारी कॉमेडी के आवरण में पेश करने की कोशिश करती है, पर मुश्किल तब होती है, जब कॉमेडी भी कमजोर निकल जाती है और हंसा नहीं पाती। आयुष्मान और जितेंद्र की जोड़ी अच्छी जमी है। कहानी का साथ मिलता तो यह फिल्म एक अलग ही स्तर पर जा सकती थी। प्रभावी सितारों और एक अच्छे संदेश के साथ बनी इस फिल्म का लड़खड़ाना, बिखरना आपको अखरता है, कचोटता है।
हितेश केवल्य ने इस फिल्म की कहानी लिखी है और इसका निर्देशन भी किया है और ये दोनों ही इसकी सबसे कमजोर कड़ियां हैं। सधे हुए तरीके से शुरू होने के बाद फिल्म निर्देशक के हाथ से फिसलती है और फिल्म खत्म होने तक आप इंतजार ही करते रह जाते हैं कि अब यह सही ट्रैक पकड़ेगी, पर ऐसा हो नहीं पाता।
एक्टिंग के लिहाज से सबसे उल्लेखनीय काम किया है अमन के चाचा बने मनुऋषि चड्ढा और चाची बनी सुनीता राजवर ने। ये दोनों ही अपने-अपने किरदारों में सबसे ज्यादा सहज लगे हैं। कई दृश्यों में तो ये नीना-गजराज की जोड़ी पर भी भारी पड़ते नजर आए। नीना-गजराज ने वैसे तो अच्छा काम किया है, पर काफी हद तक वे अपने ‘बधाई हो’ वाले तेवर को ही दोहराते नजर आए। जितेंद्र कुमार अपनी सादगी और मासूमियत के चलते अमन के किरदार में एकदम सटीक बैठे हैं, पर उनकी संवाद अदायगी और अदाकारी में कई जगह आत्मविश्वास की कमी नजर आई।
फिल्म के संवाद कहीं-कहीं तो कमाल के हैं, पर कहीं-कहीं बेहद औसत हैं। ‘रोज हमें लड़ाई लड़नी पड़ती है जिंदगी में, पर जो लड़ाई अपने परिवार या अपनी फैमिली के साथ लड़नी पड़ती है, वह सबसे ज्यादा खतरनाक होती है...’ आयुष्मान का यह संवाद इसकी एक बानगी है। इस सिरीज की पिछली फिल्म ‘शुभ मंगल सावधान’ में ‘इरेक्टाइल डिस्फंक्शन’ जैसी बीमारियों से जुड़ी भ्रांतियों की परतों को बेहद प्रभावशाली अंदाज में दिखाया गया था। इसमें कॉमेडी और असल मुद्दे के बीच एक अच्छा संतुलन था। ‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’ में समलैंगिक संबंधों का असल मुद्दा काफी हद तक दब कर रह गया है। छोटे शहरों के समलैंगिकों को किस तरह की समस्याएं झेलनी पड़ती है, यह समझाने में, उनका दर्द दर्शकों को महसूस करवाने में यह फिल्म नाकाम रहती है। यह मुद्दे को ढेर सारी कॉमेडी के आवरण में पेश करने की कोशिश करती है, पर मुश्किल तब होती है, जब कॉमेडी भी कमजोर निकल जाती है और हंसा नहीं पाती। आयुष्मान और जितेंद्र की जोड़ी अच्छी जमी है। कहानी का साथ मिलता तो यह फिल्म एक अलग ही स्तर पर जा सकती थी। प्रभावी सितारों और एक अच्छे संदेश के साथ बनी इस फिल्म का लड़खड़ाना, बिखरना आपको अखरता है, कचोटता है।