Vikrant Shekhawat : Apr 02, 2022, 09:10 AM
रूस-यूक्रेन जंग के बीच दुनिया दो धड़ों में बंट गई है। एक तरफ अमेरिका और उसके मित्र राष्ट्र हैं तो दूसरी तरफ रूस और उसका समर्थन करने वाले चंद देश। ऐसे में दुनिया भारत के कदम पर नजरें टिकाए हुए है। हालांकि, भारत ने गुट निरपेक्ष की नीति अपनाते हुए खुद को अब तक तठस्थ रखा है। इसका मजमून यूएनएससी में वोटिंग से दूर रह कर दिया भी है। भारत को अपने पाले में लाने के लिए अमेरिका और रूस हर संभव प्रयास कर रहे हैं। ऐसे में इस विवाद में भारत का रुख क्या है और वह रूस से अपनी पुरानी दोस्ती को किस कदर निभा रहा है, इसके मायने रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव की पीएम मोदी से मुलाकात से निकाले जा सकते हैं। आइए, जानते हैं कि इस मुलाकात ने दुनिया को क्या संदेश दिया है? आधा दर्जन विदेश मंत्री आए, पीएम ने नहीं दिया समय पिछले कुछ दिनों में आधा दर्जन से अधिक देशों के विदेश मंत्री व अन्य वरिष्ठ अधिकारी भारत का दौरा कर चुके हैं। हाल ही में चीन और मैक्सिको के विदेश मंत्री भारत आए थे। एक दिन पहले ब्रिटेन की विदेश मंत्री भी भारत में थीं। वहीं गुरुवार को जब रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव भारत पहुंचे तो इससे पहले अमेरिका, जर्मनी और नीदरलैंड के सुरक्षा सलाहकार व समकक्ष भी दिल्ली पहुंच गए, लेकिन पीएम मोदी ने किसी को मिलने का समय नहीं दिया। इससे इतर पीएम मोदी ने सिर्फ रूसी विदेश मंत्री लावरोव से मुलाकात की और दोनों के बीच करीब 40 मिनट बातचीत भी हुई। रूस क्यों जता रहा है भरोसा?रूस और भारत पुराने दोस्त रहे हैं। सामरिक क्षेत्र में दोनों देशों के संबंध बहुत पुराने हैं। ऐसे में यूक्रेन विवाद के बीच रूस अपनी पुरानी दोस्ती पर भरोसा जता रहा है। रूसी राजदूत से लेकर अब विदेश मंत्री तक यह कह चुके हैं कि भारत ने इस विवाद में जो रुख अपनाया है, वह काबिल-ए-तारीफ है और वह अब तक किसी के दबाव में नहीं आया है। इतना ही नहीं पीएम मोदी से मुलाकात से पहले रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव भारत को मध्यस्थता करने के लिए भी कह चुके हैं। अमेरिका भी जानता है कितने गहरे हैं संंबंध यूक्रेन विवाद के बीच भारत को रियायती दामों में तेल का निर्यात हो या फिर रूसी विदेश मंत्री की पीएम मोदी से मुलाकात। इस बात को अमेरिका भी जानता है कि दोनों देशों के बीच कितने गहरे संबंध हैं। हालांकि, अमेरिका पूरी कोशिश कर रहा है कि भारत रूस से नाता तोड़कर अमेरिका के पाले में खड़ा हो जाए, लेकिन भारत अब तक किसी भी पक्ष में नहीं गया है। ऐसे में अमेरिका की ओर से जारी कुछ बयानों को देखते हैं...
- रूस ने जब भारत को रियायती दामों पर कच्चा तेल देने का प्रस्ताव दिया तो सबसे पहले अमेरिका की नजरें तिरछी हो गईं। अमेरिका ने पूरा दबाव बनाया कि भारत इस प्रस्ताव को स्वीकार न करे, लेकिन जब भारत ने प्रस्ताव स्वीकार कर लिया तो अमेरिका भारत को संप्रभु राष्ट्र कहकर पीछे हट गया।
- रक्षा क्षेत्र में भारत की रूस पर निर्भरता की जब बात आई तो अमेरिका ने यहां तक कह डाला कि, हम यह समझते हैं कि भारत रूस के साथ क्यों खड़ा है? अमेरिका के मुताबिक, भारत लंबे समय से सामरिक क्षेत्र में रूस पर निर्भर रहा है। हालांकि, भारत को तोड़ने के लिए अमेरिका ने हथियारों की सप्लाई का ऑफर दे डाला।
- रूसी विदेश मंत्री जब भारत पहुंचे, तो अमेरिका यह बात समझ गया कि रूस से वह अपने पुराने संबंधों को नहीं तोड़ेगा। इसके बाद अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता की ओर से कहा गया कि, हम नहीं चाहते की भारत रूस से अपने पुराने संबंधों को खत्म करे।