चेतावनी / साल 2020 के अंत तक दुनिया में फैल जाएगी भुखमरी, UN की रिपोर्ट में खुलासा

भारत में पिछले एक दशक में अल्पपोषित लोगों की संख्या छह करोड़ तक घट गई है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में बताया गया कि 2004 से 2006 तक यह 21.7 प्रतिशत थी जो 2017-19 में घटकर 14 प्रतिशत हो गई। सोमवार को जारी, 'विश्व में खाद्य सुरक्षा एवं पोषण स्थिति रिपोर्ट' में बताया गया कि बच्चों में बौनेपन की समस्या कम हो गई है लेकिन देश के वयस्कों में मोटापा बढ़ रहा है।

News18 : Jul 15, 2020, 07:12 AM
संयुक्त राष्ट्र। भारत में पिछले एक दशक में अल्पपोषित लोगों की संख्या छह करोड़ तक घट गई है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट (Report) में बताया गया कि 2004 से 2006 तक यह 21.7 प्रतिशत थी जो 2017-19 में घटकर 14 प्रतिशत हो गई। सोमवार को जारी, 'विश्व में खाद्य सुरक्षा एवं पोषण स्थिति रिपोर्ट' में बताया गया कि बच्चों में बौनेपन की समस्या कम हो गई है लेकिन देश के वयस्कों में मोटापा बढ़ रहा है। भूख एवं कुपोषण (Hunger And Malnutrition) को समाप्त करने की दिशा में होने वाली प्रगति पर नजर रखने वाली सबसे आधिकारिक वैश्विक अध्ययन माने जाने वाली इस रिपोर्ट में कहा गया कि भारत में अल्पपोषित लोगों की संख्या 2004-06 के 24.94 करोड़ से घटकर 2017-19 में 18.92 करोड़ रह गई। प्रतिशत के हिसाब से देखें तो भारत की कुल आबादी में अल्पपोषण की व्यापकता 2004-06 में 21.7 प्रतिशत से घटकर 2017-19 में 14 प्रतिशत रह गई।


इसमें कहा गया, 'दो उपक्षेत्रों जिनमें अल्पपोषण में कमी दिखी है- पूर्वी एवं दक्षिण एशिया में- वहां महाद्वीप की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं- चीन और भारत का वर्चस्व है।' रिपोर्ट में कहा गया, 'बहुत अलग-अलग परिस्थितियों, इतिहास और प्रगति की दर के बावजूद दोनों देशों में भूख में आई कमी दीर्घकालिक आर्थिक विकास, घटती असमानता और मूलभूत सामानों एवं सेवाओं तक बेहतर हुई पहुंच का नतीजा है।' इस रिपोर्ट को संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ), अंतरराष्ट्रीय कृषि विकास कोष (आईएएफडी) , संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ), संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम (डब्ल्यूएफपी) और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की ओर से संयुक्त रूप से तैयार किया गया है। इसमें यह भी कहा गया कि भारत में पांच साल से कम उम्र के बच्चों में बौनेपन की समस्या भी 2012 में 47.8 प्रतिशत से घटकर 2019 में 34.7 प्रतिशत रह गई यानि 2012 में यह समस्या 6।2 करोड़ बच्चों में थी जो 2019 में घटकर 4.03 करोड़ रह गई।


मोटापे का शिकार लोग

रिपोर्ट में कहा गया कि ज्यादातर भारतीय वयस्क 2012 से 2016 के बीच मोटापे के शिकार हुए। मोटापे से ग्रस्त होने वाले वयस्कों की संख्या 2012 के 2।52 करोड़ से बढ़कर 2016 में 3।43 करोड़ हो गई यानि 3।1 प्रतिशत से बढ़कर 3।9 प्रतिशत हो गई। वहीं खून की कमी (अनीमिया) से प्रभावित प्रजनन आयु वर्ग (15-49) की महिलाओं की संख्या 2012 में 16।56 करोड़ से बढ़कर 2016 में 17।56 करोड़ हो गई। 0-5 माह के शिशु जो पूरी तरह स्तनपान करते हैं उनकी संख्या 2012 के 1।12 करोड़ से बढ़कर 2019 में 1।39 करोड़ हो गई। रिपोर्ट में कहा गया कि 2019 में दुनिया भर में करीब 69 करोड़ लोग अल्पपोषित (या भूखे) थे। यह संख्या 2018 के मुकाबले एक करोड़ ज्यादा है। एशिया में भूखों की संख्या सबसे ज्यादा है लेकिन यह अफ्रीका में भी तेजी से बढ़ रही है।


साल 2020 के अंत तक हो जाएगा बुरा हाल

रिपोर्ट के अनुमान के मुताबिक दुनिया भर में, कोविड-19 वैश्विक महामारी के कारण 2020 के अंत तक 13 करोड़ और लोग भूख की गंभीर समस्या का सामना करने पर मजबूर हो जाएंगे। प्रतिशत के हिसाब से, अफ्रीका सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र है जहां के 19.1 प्रतिशत लोग अल्पपोषित हैं। मौजूदा चलन के लिहाज से देखें तो 2030 तक, अफ्रीका में आधे से ज्यादा लोग विश्व के लंबे समय से भूखे रहने वाले लोग हो जाएंगे। कोविड-19 वैश्विक खाद्य प्रणालियों की अपर्याप्तता और संवेदनशीलता को बढ़ा रहा है क्योंकि सभी गतिविधियां एवं प्रक्रियाएं खाद्य उत्पादन, वितरण एवं उपभोग को प्रभावित कर रही हैं।

लॉकडाउन एवं अन्य रोकथाम उपायों के प्रभाव को आंकना जल्दबाजी

रिपोर्ट में कहा गया, 'अभी लॉकडाउन एवं अन्य रोकथाम उपायों के पूर्ण प्रभाव को आंकना बहुत जल्दबाजी होगी, लेकिन रिपोर्ट का अनुमान है कि 2020 में कम से कम और 8।3 करोड़ लोग और संभवत: 13।2 करोड़ लोग कोविड-19 के कारण आई आर्थिक मंदी के परिणामस्वरूप भूख का शिकार हो सकते हैं।' साथ ही यह भी कहा गया कि इस झटके ने सतत विकास लक्ष्य दो की कामयाबी को और सशंकित कर दिया है जिसका लक्ष्य है कि कोई भी भूखा न रहे। हालिया अनुमान हैं कि करीब तीन अरब लोग या उससे अधिक स्वस्थ आहार ले पाने में असमर्थ हैं। उप-सहारा अफ्रीका और दक्षिणी एशिया में यह उसकी 57 प्रतिशत आबादी के साथ है हालांकि उत्तरी अमेरिका और यूरोप समेत कोई भी क्षेत्र इससे अछूता नहीं है।