Vikrant Shekhawat : Feb 10, 2022, 04:00 PM
जम्मू-कश्मीर (Jammu-Kashmir) के श्रीनगर (Srinagar) शहर के मनोरोग रोग अस्पताल में एक कश्मीरी पंडित की मौत के दूसरे दिन एक दुर्लभ दृश्य देखने को मिला. अस्पताल के डॉक्टर और कर्मचारी उसके मरने पर इतने दुखी थे, जैसे उन्होंने अपने ही परिवार के एक सदस्य को खो दिया है. 1990 के दशक की शुरूआत में समुदाय के बड़े पैमाने पर पलायन से ठीक पहले एक कश्मीरी पंडित लड़की को उसके परिवार ने श्रीनगर के मनोरोग रोग अस्पताल में भर्ती कराया था.तीस साल का साथ टूटाश्रीनगर के सरकारी मेडिकल कॉलेज में मनोचिकित्सा विभाग के प्रमुख प्रो. मकबूल अहमद डार ने कहा कि वह 30 साल तक हमारे साथ रही. वह अस्पताल के इस विस्तारित परिवार का हिस्सा बन गई थी.अस्पताल के डॉक्टरों ने कहा कि मरीज की मां कभी-कभार उससे मिलने आती थी, लेकिन जिस देखभाल और स्नेह से उसकी बेटी का इलाज किया जा रहा था, उसे देखकर मां ने कभी बेटी को वापस ले जाने के लिए नहीं कहा.हिंदू रीति रिवाजों से अंतिम संस्तारमंगलवार को दिल का दौरा पड़ने के बाद जब मरीज को नहीं बचाया जा सका, तो डॉक्टरों ने उसकी बहन को बुलाया जो शहर में रहती है. 'मरीज को हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार अस्पताल में अंतिम स्नान कराया गया. डॉक्टरों और मेडिकल स्टाफ ने जताया शोकउसका इलाज और देखभाल करने वाले डॉक्टरों और नर्सिंग स्टाफ ने कहा, 'उसका आखिरी सफर हमने उसी अस्पताल से शुरू कराया जो पिछले 30 साल से उसका घर था और हम उसके साथ शोक संतप्त परिवार के सदस्यों के साथ श्मशान घाट गए. हम अपने आंसुओं को नहीं रोक सके, हालांकि ये सब तब भी हुआ जबकि किसी की मौत को इतने करीब से देखना हमारे पेशे का हिस्सा है.'उसके अस्पताल में रहने के दौरान, डॉक्टर उसे उसके नाम से बुलाते थे और वह अपनी मानसिक बीमारी के बावजूद वो हर डॉक्टर को नाम से पहचानती थी.मनोचिकित्सक रोगों के लिए श्रीनगर के अस्पताल के स्टाफ का इस लड़की की अंतिम यात्रा में शामिल होना कश्मीरियों के मानवीय मूल्यों को परिभाषित करता है. वहीं इस घटनाक्रम को घाटी की उदार संस्कृति के गौरवशाली अध्याय के रूप में याद किया जाएगा.