News18 : Jul 11, 2020, 04:12 PM
UP: पिछले हफ्तेभर से कानपुर में 8 पुलिसकर्मियों को मारने वाले विकास दुबे की खोज चल रही थी। आखिरकार दोषी उज्जैन में पकड़ा गया। वहां से यूपी लाते हुए रास्ते में भागने की कोशिश के दौरान वो मारा गया। इस तरह से लगभग दो दशकों से यूपी की आम जनता को परेशान कर रखे इस अपराधी का अंत हुआ। विकास की खोज से लेकर उसके एनकाउंटर तक सारी मुहिम को IPS अमिताभ ने ही देखा। ये वही अफसर हैं, जिन्हें यूपी के एनकाउंटर स्पेशलिस्ट के तौर पर भी जाना जाता है। जानिए, कौन है ये पुलिस अफसर और क्या उपलब्धियां हैं खाते में।
कौन हैं अमिताभ यशअमिताभ यश 1996 बैच के आईपीएस अफसर हैं। बिहार के अमिताभ 4 सितंबर 1996 को पुलिस फोर्स में नियुक्त हुए थे। इसके बाद से ही वे अपने तेज-तर्रार रवैए के लिए जाने जाने लगे। मूल रूप से बिहार के भोजपुर जिले के रहने वाले अमिताभ ने पटना से पढ़ाई की और आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली आ गए। दिल्ली में केमेस्ट्री से बीएससी ऑनर्स के बाद पढ़ाई-लिखाई में काफी प्रतिभाशाली अमिताभ को आईआईटी कानपुर में केमेस्ट्री में मास्टर्स के लिए दाखिला मिल गया। इसी के साथ वे प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करते रहे और साल 1996 में पुलिस सेवा के लिए चुने गए।जब विकास दुबे के चंबल में छिपने की खबर मिली थी तो अमिताभ को उसे पकड़ने की जिम्मेदारी मिलीचंबल में खत्म किया आतंकजब विकास दुबे के चंबल में छिपने की खबर मिली थी तो अमिताभ को उसे पकड़ने की जिम्मेदारी मिली। बता दें कि इस अफसर ने चंबल के बीहड़ों में काफी काम किया है और चंबल में डाकुओं का आतंक खत्म करने का बड़ा श्रेय इन्हें ही मिलता है। एक खास मामला काफी सुर्खियों में रहा था, वो था आतंकी ददुआ का एनकाउंटर। ददुआ उर्फ शिव कुमार चंबल के बीहड़ों में आतंक का दूसरा नाम था। उसके आतंक का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अगर उस इलाके में किसी को विधायक, प्रधान या सांसद का चुनाव लड़ना होता, तो उसे ददुआ को बड़ी रकम चढ़ानी होती थी। ऐसा न करने वालों को चुनाव लड़ने का मौका ही नहीं मिलता था।खौफ के कारण ही उसपर यूपी पुलिस ने 5 लाख तो मप्र पुलिस ने 1 लाख का इनाम लगा रखा था। माना जाता है कि उसने दो सौ से भी ज्यादा लोगों की जान ली थी। साल 2007 में ददुआ को मारने का जिम्मा एसटीएफ के जरिए अमिताभ को मिला। इस पुलिस अफसर ने मुखबिरी के लिए पान की दुकान वालों तक को मोबाइल दिए। बेहद गुप्त तरीके से ऑपरेशन ददुआ को अंजाम दिया गया। उसी साल जुलाई में ददुआ को अमिताभ की टीम ने मार गिराया।क्या हैं इनकी खूबियांसाइंस के स्टूडेंट रहे अमिताभ को अपराधियों को पकड़ने के लिए काफी वैज्ञानिक तरीकों के लिए जाना जाता है। साथ ही वे अपनी टीम पर काफी भरोसा करते हैं और उन्हें भी भरोसे में रखते हैं। यही वजह है कि अमिताभ के अधिकतर एनकाउंटर मामले काफी गुप्त रहते हैं। यहां तक कि एसटीएप की उनकी टीम के अलावा स्थानीय पुलिस को भी भनक नहीं लगती है, जब तक कि अपराधी पकड़ा या मारा न जाए।एसटीएफ के आईजी रहते हुए अमिताभ यश ने कई अपराधियों को टीम के साथ तालमेल और खुफिया ऑपरेशन के इन्हीं तरीकों की वजह से पकड़ा है। यहां तक कि यूपी में तैनात इस अफसर के नाम से आतंकी डरते हैं और अगर ये अफसर किसी जगह तैनात हो गए तो अपराधी जिला छोड़ने में ही भलाई समझते हैं। बता दें कि अमिताभ के पिता राम यश सिंह भी तेज-तर्रार पुलिस अधिकारी रहे हैं। यही वजह है कि अमिताभ को भी ये खूबियां घुट्टी में मिलीं।
कैसे दिया विकास दुबे ऑपरेशन को अंजामकानपुर के बिकरु गांव में 8 पुलिसवालों की हत्या के बाद फरार विकास दुबे की खोज में स्थानीय पुलिस लगी हुई थी। इसमें देर होती देख सोशल मीडिया और मीडिया में पुलिस पर काफी सवाल उठने लगे। इसी बीच उसकी खोज का जिम्मा एसटीएफ के मुखिया अमिताभ यश को दिया गया। वे तुरंत एक्शन में आए और विकास की खोज शुरू हुई।
8 पुलिसवालों की हत्या के बाद फरार विकास दुबे की खोज में स्थानीय पुलिस लगी हुई थीइसके तहत सबसे पहले उन्होंने हरियाणा, बिहार और एमपी की सीमाओं पर सतर्कता बरतने को कहा। घटना के हफ्तेभर बाद विकास उज्जैन में पकड़ा गया। तुरंत ही यूपी से टीम उसे लेने पहुंची। हालांकि यूपी लाते हुए पुलिस की उस गाड़ी का एक्सिडेंट हो गया, जिसमें विकास था। गाड़ी पलटने के बाद दोषी ने भागने की कोशिश की और पुलिस पर हमला भी किया। तभी टीम ने आत्मरक्षा की कोशिश और उसे भागने से रोकने के लिए उसका एनकाउंटर कर दिया।क्या है यूपी एसटीएफ, अमिताभ जिसे लीड करते हैं?विकास के एनकाउंटर के बाद से एसटीएफ भी काफी चर्चा में है। कई लोग इसे ट्रोल कर रहे हैं तो एक बड़ा तबका इसकी तारीफ भी कर रहा है। मई 1998 में यूपी पुलिस की टास्क फोर्स बनी। फोर्स का बड़ा मकसद माफिया की जानकारी लेना और फिर ऐसे गैंग पर एक्शन लेना है। डकैतों के गिरोह को खत्म करना भी इसका एक उद्देश्य है। माना जाता है कि टास्क फोर्स का गठन एक बदमाश प्रकाश शुक्ला को पकड़ने के लिए हुआ था। ये माफिया तब पूरी यूपी सरकार के लिए सिरदर्द बना हुआ था। उसपर शिकंजा कसने से फोर्स ने काम की शुरुआत की। इसी एसटीएफ में रहते हुए आईपीएस अमिताभ यश ने कई दुर्दांत अपराधियों पर शिकंजा कसा।
कौन हैं अमिताभ यशअमिताभ यश 1996 बैच के आईपीएस अफसर हैं। बिहार के अमिताभ 4 सितंबर 1996 को पुलिस फोर्स में नियुक्त हुए थे। इसके बाद से ही वे अपने तेज-तर्रार रवैए के लिए जाने जाने लगे। मूल रूप से बिहार के भोजपुर जिले के रहने वाले अमिताभ ने पटना से पढ़ाई की और आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली आ गए। दिल्ली में केमेस्ट्री से बीएससी ऑनर्स के बाद पढ़ाई-लिखाई में काफी प्रतिभाशाली अमिताभ को आईआईटी कानपुर में केमेस्ट्री में मास्टर्स के लिए दाखिला मिल गया। इसी के साथ वे प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करते रहे और साल 1996 में पुलिस सेवा के लिए चुने गए।जब विकास दुबे के चंबल में छिपने की खबर मिली थी तो अमिताभ को उसे पकड़ने की जिम्मेदारी मिलीचंबल में खत्म किया आतंकजब विकास दुबे के चंबल में छिपने की खबर मिली थी तो अमिताभ को उसे पकड़ने की जिम्मेदारी मिली। बता दें कि इस अफसर ने चंबल के बीहड़ों में काफी काम किया है और चंबल में डाकुओं का आतंक खत्म करने का बड़ा श्रेय इन्हें ही मिलता है। एक खास मामला काफी सुर्खियों में रहा था, वो था आतंकी ददुआ का एनकाउंटर। ददुआ उर्फ शिव कुमार चंबल के बीहड़ों में आतंक का दूसरा नाम था। उसके आतंक का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अगर उस इलाके में किसी को विधायक, प्रधान या सांसद का चुनाव लड़ना होता, तो उसे ददुआ को बड़ी रकम चढ़ानी होती थी। ऐसा न करने वालों को चुनाव लड़ने का मौका ही नहीं मिलता था।खौफ के कारण ही उसपर यूपी पुलिस ने 5 लाख तो मप्र पुलिस ने 1 लाख का इनाम लगा रखा था। माना जाता है कि उसने दो सौ से भी ज्यादा लोगों की जान ली थी। साल 2007 में ददुआ को मारने का जिम्मा एसटीएफ के जरिए अमिताभ को मिला। इस पुलिस अफसर ने मुखबिरी के लिए पान की दुकान वालों तक को मोबाइल दिए। बेहद गुप्त तरीके से ऑपरेशन ददुआ को अंजाम दिया गया। उसी साल जुलाई में ददुआ को अमिताभ की टीम ने मार गिराया।क्या हैं इनकी खूबियांसाइंस के स्टूडेंट रहे अमिताभ को अपराधियों को पकड़ने के लिए काफी वैज्ञानिक तरीकों के लिए जाना जाता है। साथ ही वे अपनी टीम पर काफी भरोसा करते हैं और उन्हें भी भरोसे में रखते हैं। यही वजह है कि अमिताभ के अधिकतर एनकाउंटर मामले काफी गुप्त रहते हैं। यहां तक कि एसटीएप की उनकी टीम के अलावा स्थानीय पुलिस को भी भनक नहीं लगती है, जब तक कि अपराधी पकड़ा या मारा न जाए।एसटीएफ के आईजी रहते हुए अमिताभ यश ने कई अपराधियों को टीम के साथ तालमेल और खुफिया ऑपरेशन के इन्हीं तरीकों की वजह से पकड़ा है। यहां तक कि यूपी में तैनात इस अफसर के नाम से आतंकी डरते हैं और अगर ये अफसर किसी जगह तैनात हो गए तो अपराधी जिला छोड़ने में ही भलाई समझते हैं। बता दें कि अमिताभ के पिता राम यश सिंह भी तेज-तर्रार पुलिस अधिकारी रहे हैं। यही वजह है कि अमिताभ को भी ये खूबियां घुट्टी में मिलीं।
कैसे दिया विकास दुबे ऑपरेशन को अंजामकानपुर के बिकरु गांव में 8 पुलिसवालों की हत्या के बाद फरार विकास दुबे की खोज में स्थानीय पुलिस लगी हुई थी। इसमें देर होती देख सोशल मीडिया और मीडिया में पुलिस पर काफी सवाल उठने लगे। इसी बीच उसकी खोज का जिम्मा एसटीएफ के मुखिया अमिताभ यश को दिया गया। वे तुरंत एक्शन में आए और विकास की खोज शुरू हुई।
8 पुलिसवालों की हत्या के बाद फरार विकास दुबे की खोज में स्थानीय पुलिस लगी हुई थीइसके तहत सबसे पहले उन्होंने हरियाणा, बिहार और एमपी की सीमाओं पर सतर्कता बरतने को कहा। घटना के हफ्तेभर बाद विकास उज्जैन में पकड़ा गया। तुरंत ही यूपी से टीम उसे लेने पहुंची। हालांकि यूपी लाते हुए पुलिस की उस गाड़ी का एक्सिडेंट हो गया, जिसमें विकास था। गाड़ी पलटने के बाद दोषी ने भागने की कोशिश की और पुलिस पर हमला भी किया। तभी टीम ने आत्मरक्षा की कोशिश और उसे भागने से रोकने के लिए उसका एनकाउंटर कर दिया।क्या है यूपी एसटीएफ, अमिताभ जिसे लीड करते हैं?विकास के एनकाउंटर के बाद से एसटीएफ भी काफी चर्चा में है। कई लोग इसे ट्रोल कर रहे हैं तो एक बड़ा तबका इसकी तारीफ भी कर रहा है। मई 1998 में यूपी पुलिस की टास्क फोर्स बनी। फोर्स का बड़ा मकसद माफिया की जानकारी लेना और फिर ऐसे गैंग पर एक्शन लेना है। डकैतों के गिरोह को खत्म करना भी इसका एक उद्देश्य है। माना जाता है कि टास्क फोर्स का गठन एक बदमाश प्रकाश शुक्ला को पकड़ने के लिए हुआ था। ये माफिया तब पूरी यूपी सरकार के लिए सिरदर्द बना हुआ था। उसपर शिकंजा कसने से फोर्स ने काम की शुरुआत की। इसी एसटीएफ में रहते हुए आईपीएस अमिताभ यश ने कई दुर्दांत अपराधियों पर शिकंजा कसा।