Vikrant Shekhawat : Jan 12, 2021, 11:48 AM
कृषि कानूनों पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में चर्चा हुई। सरकार को फटकार लगाते हुए चीफ जस्टिस एस ए बोबड़े ने कहा कि सरकार इस मामले को हैंडल करने में पूरी तरह से नाकाम रही है। उन्होंने यह भी सवाल किया कि कृषि कानूनों पर कुछ समय के लिए रोक लगाने में सरकार क्यों हिचकिचा रही है। कोर्ट ने यह भी कहा कि अब भी अगर सरकार कानूनों पर रोक नहीं लगाती तो हम ऐसा कर देंगे।
कोर्ट ने कमेटी के गठन का सुझाव दिया:सुनवाई में कोर्ट ने यह भी सुझाव दिया कि फ़िलहाल एक कमेटी का गठन किया जा सकता है। जो इन कानूनों की समीक्षा करे और कमेटी की रिपोर्ट आने तक कानूनों को लागू न किया जाए। हालांकि सरकार की पैरवी कर रहे वकीलों ने इन कानूनों पर किसी भी तरह की रोक लगाए जाने का विरोध किया। उनका तर्क था कि जुलाई में लागू हुए इन कानूनों के चलते कई किसान पहले ही कॉन्ट्रैक्ट पर किसानी कर रहे हैं। ऐसे में कानूनों पर रोक लगाने का नुकसान उन किसानों को झेलना होगा।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि हम कानूनों को रद्द करने की बात नहीं कर रहे हैं बल्कि उसके अमल पर कुछ समय के लिए रोक लगाने की बात कर रहे हैं। इस मामले पर कल फैसला आना है और माना जा रहा है कि कोर्ट फिलहाल इन कानूनों को लागू किए जाने पर रोक लगाने के आदेश कर सकता है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या सुप्रीम कोर्ट के इस कदम से दिल्ली में चल रहा किसान आंदोलन समाप्त हो जाएगा?
'कानून होल्ड करने पर भी आंदोलन खत्म नहीं करेंगे'लेकिन, किसान नेताओं का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट अगर इन फैसला पर रोक लगा भी देता है तो भी आंदोलन खत्म नहीं होने वाला है। देर शाम को एक प्रेस नोट जारी करते हुए किसान नेताओं ने यह भी बताया है कि कोर्ट अगर कल किसी कमेटी का गठन करता है तो हम उसका हिस्सा नहीं होंगे। किसान नेताओं ने यह फैसला अपने वकीलों से चर्चा के बाद लिया है। किसान नेता डॉक्टर दर्शन पाल ने इस मीटिंग के बाद बताया, 'हम सुप्रीम कोर्ट का सम्मान करते हैं और इस बात का स्वागत करते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने कानूनों को लागू करने पर रोक लगाने की बात कही है लेकिन हम कोर्ट द्वारा सुझाई गई कमेटी का हिस्सा नहीं बनना चाहते।
अब तक की पूरी बातचीत के दौरान सरकार का जो रवैया रहा है, उसे देखते हुए हमने ये फैसला लिया है कि हम अब किसी कमेटी की कार्यवाही में हिस्सा नहीं लेंगे।' सुप्रीम कोर्ट में किसानों के वकील दुष्यंत दवे, प्रशांत भूषण, कॉलिन गान्साल्वेज़ और एचएस फूलका से मुलाकात के बाद किसान नेताओं ने यह फैसला लिया।
आगे आंदोलन के स्वरूप के बारे में किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी कहते हैं, 'कानूनों पर अगर अस्थायी रोक लगती है तो भी आंदोलन जारी ही रहेगा। कानूनों के पूरी तरह रद्द होने से पहले हम लोग वापस लौटने को तैयार नहीं है। कमेटी के बहाने हम आंदोलन वापस नहीं लेने जा रहे। हम सुप्रीम कोर्ट का सम्मान करते हैं लेकिन कानूनों के रद्द होने से पहले आंदोलन में कोई बदलाव नहीं आएगा।
सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद भी आंदोलन जारी रखने की ऐसी ही बात किसान नेता मेजर सिंह भी कहते हैं। वे कहते हैं, 'सुप्रीम कोर्ट जाने का फैसला हमारा नहीं था। हम लोग तो वहां पार्टी तक नहीं हैं। ये हमारी सरकार से सीधी लड़ाई है। हम जो भी मांग रहे हैं सीधे उस सरकार से मांग रहे हैं जो ये कानून लेकर आई है। इसमें सुप्रीम कोर्ट या कोई अन्य समिति बीच में नहीं होनी चाहिए। ये कहने का मतलब ये बिलकुल नहीं कि हम कोर्ट का सम्मान नहीं करते।
'सरकार से होने वाली सभी बैठकों में शामिल रहे किसान नेता रूलदु सिंह मानसा इस बारे में कहते हैं, 'सुप्रीम कोर्ट को अगर किसानों से हमदर्दी है तो उन्हें इन कानूनों को पूरी तरह से रद्द करने के आदेश करने चाहिए।'
आंदोलन के स्वरूप को लेकर भी किसान नेता किसी समझौते को तैयार नहीं हैं। कोर्ट में सुनवाई के दौरान आज यह भी बात हुई थी कि क्या किसान दिल्ली के बॉर्डर से उठकर रामलीला मैदान में आने को तैयार हो सकते हैं? इस सवाल के जवाब में गुरनाम चढूनी कहते हैं, 'हम लोग अपनी मर्जी से बॉर्डर पर नहीं बैठे थे। हम तो रामलीला मैदान ही आना चाहते थे लेकिन सरकार ने हमें दिल्ली में घुसने नहीं दिया। इसलिए अब हम भी यहीं बैठे रहेंगे। आंदोलन अपने तरीके से जारी रहेगा और जब तक कानून वापसी नहीं होती तब तक हमारी घर वापसी भी नहीं होगी।'
कोर्ट ने कमेटी के गठन का सुझाव दिया:सुनवाई में कोर्ट ने यह भी सुझाव दिया कि फ़िलहाल एक कमेटी का गठन किया जा सकता है। जो इन कानूनों की समीक्षा करे और कमेटी की रिपोर्ट आने तक कानूनों को लागू न किया जाए। हालांकि सरकार की पैरवी कर रहे वकीलों ने इन कानूनों पर किसी भी तरह की रोक लगाए जाने का विरोध किया। उनका तर्क था कि जुलाई में लागू हुए इन कानूनों के चलते कई किसान पहले ही कॉन्ट्रैक्ट पर किसानी कर रहे हैं। ऐसे में कानूनों पर रोक लगाने का नुकसान उन किसानों को झेलना होगा।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि हम कानूनों को रद्द करने की बात नहीं कर रहे हैं बल्कि उसके अमल पर कुछ समय के लिए रोक लगाने की बात कर रहे हैं। इस मामले पर कल फैसला आना है और माना जा रहा है कि कोर्ट फिलहाल इन कानूनों को लागू किए जाने पर रोक लगाने के आदेश कर सकता है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या सुप्रीम कोर्ट के इस कदम से दिल्ली में चल रहा किसान आंदोलन समाप्त हो जाएगा?
'कानून होल्ड करने पर भी आंदोलन खत्म नहीं करेंगे'लेकिन, किसान नेताओं का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट अगर इन फैसला पर रोक लगा भी देता है तो भी आंदोलन खत्म नहीं होने वाला है। देर शाम को एक प्रेस नोट जारी करते हुए किसान नेताओं ने यह भी बताया है कि कोर्ट अगर कल किसी कमेटी का गठन करता है तो हम उसका हिस्सा नहीं होंगे। किसान नेताओं ने यह फैसला अपने वकीलों से चर्चा के बाद लिया है। किसान नेता डॉक्टर दर्शन पाल ने इस मीटिंग के बाद बताया, 'हम सुप्रीम कोर्ट का सम्मान करते हैं और इस बात का स्वागत करते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने कानूनों को लागू करने पर रोक लगाने की बात कही है लेकिन हम कोर्ट द्वारा सुझाई गई कमेटी का हिस्सा नहीं बनना चाहते।
अब तक की पूरी बातचीत के दौरान सरकार का जो रवैया रहा है, उसे देखते हुए हमने ये फैसला लिया है कि हम अब किसी कमेटी की कार्यवाही में हिस्सा नहीं लेंगे।' सुप्रीम कोर्ट में किसानों के वकील दुष्यंत दवे, प्रशांत भूषण, कॉलिन गान्साल्वेज़ और एचएस फूलका से मुलाकात के बाद किसान नेताओं ने यह फैसला लिया।
आगे आंदोलन के स्वरूप के बारे में किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी कहते हैं, 'कानूनों पर अगर अस्थायी रोक लगती है तो भी आंदोलन जारी ही रहेगा। कानूनों के पूरी तरह रद्द होने से पहले हम लोग वापस लौटने को तैयार नहीं है। कमेटी के बहाने हम आंदोलन वापस नहीं लेने जा रहे। हम सुप्रीम कोर्ट का सम्मान करते हैं लेकिन कानूनों के रद्द होने से पहले आंदोलन में कोई बदलाव नहीं आएगा।
सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद भी आंदोलन जारी रखने की ऐसी ही बात किसान नेता मेजर सिंह भी कहते हैं। वे कहते हैं, 'सुप्रीम कोर्ट जाने का फैसला हमारा नहीं था। हम लोग तो वहां पार्टी तक नहीं हैं। ये हमारी सरकार से सीधी लड़ाई है। हम जो भी मांग रहे हैं सीधे उस सरकार से मांग रहे हैं जो ये कानून लेकर आई है। इसमें सुप्रीम कोर्ट या कोई अन्य समिति बीच में नहीं होनी चाहिए। ये कहने का मतलब ये बिलकुल नहीं कि हम कोर्ट का सम्मान नहीं करते।
'सरकार से होने वाली सभी बैठकों में शामिल रहे किसान नेता रूलदु सिंह मानसा इस बारे में कहते हैं, 'सुप्रीम कोर्ट को अगर किसानों से हमदर्दी है तो उन्हें इन कानूनों को पूरी तरह से रद्द करने के आदेश करने चाहिए।'
आंदोलन के स्वरूप को लेकर भी किसान नेता किसी समझौते को तैयार नहीं हैं। कोर्ट में सुनवाई के दौरान आज यह भी बात हुई थी कि क्या किसान दिल्ली के बॉर्डर से उठकर रामलीला मैदान में आने को तैयार हो सकते हैं? इस सवाल के जवाब में गुरनाम चढूनी कहते हैं, 'हम लोग अपनी मर्जी से बॉर्डर पर नहीं बैठे थे। हम तो रामलीला मैदान ही आना चाहते थे लेकिन सरकार ने हमें दिल्ली में घुसने नहीं दिया। इसलिए अब हम भी यहीं बैठे रहेंगे। आंदोलन अपने तरीके से जारी रहेगा और जब तक कानून वापसी नहीं होती तब तक हमारी घर वापसी भी नहीं होगी।'