देश / भारत के लिए राफेल के क्या हैं मायने और अंबाला में ही तैनाती क्यों

दुनिया के सबसे घातक लड़ाकू विमानों में शुमार राफेल बुधवार को आखिरकार भारत पहुंच गए। फ्रांस के मेरिगनेक एयरबेस से करीब सात हजार किमी सफर तय करने के बाद दोपहर करीब 3 बजकर 10 मिनट पर वायुसेना के अंबाला एयरफोर्स स्टेशन पर पहला राफेल विमान उतरा। इसके बाद एक-एक कर बाकी चारों विमानों ने 3 बजकर 13 मिनट तक लैंडिंग की।

AMAR UJALA : Jul 30, 2020, 08:55 AM
Delhi: दुनिया के सबसे घातक लड़ाकू विमानों में शुमार राफेल बुधवार को आखिरकार भारत पहुंच गए। फ्रांस के मेरिगनेक एयरबेस से करीब सात हजार किमी सफर तय करने के बाद दोपहर करीब 3 बजकर 10 मिनट पर वायुसेना के अंबाला एयरफोर्स स्टेशन पर पहला राफेल विमान उतरा।

इसके बाद एक-एक कर बाकी चारों विमानों ने 3 बजकर 13 मिनट तक लैंडिंग की। वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल आरकेएस भदौरिया समेत शीर्ष अधिकारियों ने सातों जांबाज पायलटों की अगवानी की।

इससे पहले, राफेल विमानों के भारतीय हवाई क्षेत्र में प्रवेश करने पर दो सुखोई-30 विमानों ने उनकी अगवानी की व अंबाला एयरबेस पर लैंड करने के बाद वाटर सैल्यूट दिया गया। हालांकि, राफेल को वायुसेना के बेड़े में शामिल कर लिया गया है, लेकिन औपचारिक समारोह अगस्त में होगा। कार्यक्रम में रक्षामंत्री राजनाथ सिंह भी शामिल होंगे।  

भारत के लिए राफेल के मायने...

वायुसेना का बढ़ा मनोबल: भारती वायुसेना का मनोबल बढ़ा है। राफेल युद्ध जीतने में निर्णायक भूमिका निभा सकता है।

दुश्मन पर बढ़त : अत्याधुनिक हथियारों और मिसाइलों से लैस है। दुनिया की सबसे घातक समझे जाने वाली हवा से हवा में मार करने वाली मेटयोर मिसाइल किसी भी एशियाई देश के पास नहीं है।


तकीनीक में आगे : स्टील्थ तकनीक यानी कि रडार को चकमा देने की ताकत है।

किसी भी मौसम में दुश्मन की सीमा के भीतर जाकर हमला कर सकता है। साथ ही यह हिमालय के उपर भी उड़ सकता है, यह क्षमता बहुत कम विमानों में है।

राफेल की टक्कर का कोई लड़ाकू विमान चीन और पाकिस्तान के पास नहीं है। हवा से हवा और हवा से जमीन पर वार करने के मामले में राफेल का चीन या पाकिस्तान के विमानों से कोई तुलना ही नहीं है।

चीन के पास सबसे आधुनिक विमान चेंगदु जे-20 है। दूसरे देशों की नकल कर चीन ने इसे बनाया है और इसे लेकर उसके दावे भी संदिग्ध हैं।

लीबिया, इराक और सीरिया में राफेल की खूबियां साबित हो चुकी हैं। राफेल में न सिर्फ उससे ज्यादा खूबियां हैं बल्कि भारत ने अपनी जरूरतों के मुताबिक इसमें कुछ संशोधन भी करवाए हैं।

...इसलिए अंबाला में तैनाती 

चीन-पाकिस्तान के साथ तनातनी को देखते हुए इन्हें जोधपुर के बजाय अंबाला में तैनात किया गया है। यहां से ये एलओसी और एलएसी पर जल्दी पहुंच सकते हैं। दूसरा, अंबाला बेस दिल्ली से महज 200 किमी करीब होने के कारण रणनीतिक दृष्टिकोण से भी अहम है।


पाकिस्तान में एयर स्ट्राइक के लिए अंबाला से उड़े थे मिराज

दिल्ली से महज 200 किमी की दूरी पर स्थित अंबाला एयरबेस रणनीतिक महत्व का स्क्वार्डन रहा है, जो दिल्ली में वेस्टर्न एयर कमांड के अधिकार में आता है। फरवरी 2019 में पाकिस्तान के बालाकोट में एयर स्ट्राइक के लिए मिराज यहीं से उड़े थे और सफल आप्रेशन कर लौटे थे। इसके अलावा, 1999 के कारगिल युद्ध के समय में भी अंबाला के इस एयरबेस ने अहम भूमिका निभाई थी, जब 234 ऑपरेशनल उड़ानें यहां से भरी गई थीं।

सुखोई के 23 साल बाद नया विमान...

रूस से सुखोई लड़ाकू विमानों की खरीद के करीब 23 साल बाद अत्याधुनिक लड़ाकू विमानों का बेड़ा वायुसेना को मिला है। एनडीए सरकार ने 2016 में फ्रांस की दसॉल्ट एविएशन के साथ 36 लड़ाकू विमान खरीदने के लिए 59 हजार करोड़ का करार किया था।


वायुसेना के पास 31 स्क्वॉड्रन

यह सौदा वायुसेना की कम होती युद्धक क्षमता में सुधार के लिए किया गया था। वायुसेना के पास फिलहाल 31 स्क्वॉड्रन हैं, जबकि कम से कम 42 स्क्वॉड्रन होने चाहिए। 

निर्विवाद ट्रैक रिकॉर्ड वाला राफेल सबसे उन्नत लड़ाकू विमानों में शामिल

इन विमानों में तीन एक सीट वाले, जबकि दो विमान दो सीट वाले हैं।

इन्हें अंबाला की 17वीं स्क्वॉड्रन में शामिल किया गया, जिसे ‘गोल्डन एरोज’ के नाम से भी जाना जाता है।

इन विमानों के वायुसेना में शामिल होने से चीन और पाकिस्तान पर भारत को हवाई युद्धक क्षमता में बढ़त हासिल होगी।