Vikrant Shekhawat : Jun 22, 2021, 10:03 AM
नई दिल्ली: केंद्र शासित क्षेत्र जम्मू-कश्मीर(Jammu-Kashmir) में राजनीतिक प्रक्रिया को तेज करते हुए केंद्र सरकार ने वहां के प्रमुख दलों को अगले सप्ताह परिसीमन(Delimitation) से जुड़ी प्रक्रिया पर चर्चा और उस को आगे बढ़ाने के लिए न्योता दिया है.परिसीमन की प्रक्रिया द्वारा विधानसभा क्षेत्रों का पुनर्गठन किया जा सकेगा. यह आगे इस UT में विधानसभा चुनाव(Assembly Election) कराने की तरफ पहला कदम सिद्ध हो सकता है.इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी(PDP) की प्रेसिडेंट महबूबा मुफ्ती ने इस बात की पुष्टि की है कि 24 जून को उन्हें नई दिल्ली में 'टॉप लीडर्स' के साथ मीटिंग के लिए न्योता आया था.5 अगस्त 2019 को जम्मू कश्मीर को प्राप्त संवैधानिक स्पेशल स्टेटस और राज्य का दर्जा छीनने के बाद केंद्र सरकार ने यहां राजनीतिक प्रक्रिया के तौर पर डिस्ट्रिक्ट डेवलपमेंट काउंसिल(DDC) का चुनाव करवाया था .इसके साथ ही यहां विधानसभा चुनाव को कराने के लिए विधानसभा क्षेत्रों के परिसीमन की जरूरत थी. इसके लिए सरकार ने परिसीमन आयोग का गठन किया था, जिसे इस साल 3 मार्च को 1 साल का एक्सटेंशन दिया गया है.परिसीमन क्या है?परिसीमन (Delimitation) का सामान्य अर्थ है किसी राज्य/UT में विधानसभा और लोकसभा चुनाव के लिए निर्वाचन क्षेत्र का निर्धारण करना. इसमें प्रक्रिया में लोकसभा या विधानसभा की सीटों की सीमाओं का पुनर्निधारण किया जाता है.परिसीमन का उद्देश्य:परिसीमन चुनाव प्रक्रिया को और भी ज्यादा लोकतांत्रिक करने का उपाय है.समय के साथ जनसंख्या में हुए बदलाव के बाद भी सभी नागरिकों के लिए समान प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करने के लिए निर्वाचन क्षेत्र का पुनर्निधारण किया जाता है.जनसंख्या के आधार पर निर्वाचन क्षेत्रों का उचित विभाजन करना,जिससे प्रत्येक वर्ग के नागरिकों को प्रतिनिधित्व का समान अवसर मिल सके.अनुसूचित वर्ग(schedule class) के लोगों के हितों की रक्षा के लिए आरक्षित सीटों का निर्धारण भी परिसीमन की प्रक्रिया द्वारा ही किया जाता है.भारत में परिसीमन का कार्य परिसीमन आयोग (Delimitation Commission) या सीमा आयोग द्वारा किया जाता है.आजादी के बाद से अब तक पांच परिसीमन आयोगों का गठन किया जा चुका है- 1952, 1963 ,1973 और 2002.पांचवें परिसीमन आयोग का गठन जम्मू-कश्मीर और 4 पूर्वोत्तर राज्यों के परिसीमन के लिये 2020 में किया गया है.जम्मू-कश्मीर में परिसीमन2019 में संसद द्वारा पारित 'जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन कानून, 2019' की धारा 60 के अनुसार परिसीमन के बाद जम्मू-कश्मीर में विधानसभा सीटों की संख्या 107 से बढ़कर 114 की जाएगी.इसके पूर्व जम्मू कश्मीर की विधानसभा में 111 सीटें थी, जिसमें से 24 सीटें पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर(POK) में पड़ती हैं. राज्य के पुनर्गठन के बाद जम्मू कश्मीर में लोकसभा की 5 सीटें होंगी जबकि लद्दाख में 1 सीट.6 मार्च 2020 को जम्मू-कश्मीर के साथ साथ चार पूर्वोत्तर राज्यों-असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और नागालैंड के निर्वाचन क्षेत्रों के पुनर्गठन के लिए सुप्रीम कोर्ट की पूर्व जज रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में परिसीमन आयोग का गठन किया गया. यह आजादी के बाद गठित पांचवा परिसीमन आयोग है.इस आयोग ने अंतिम बैठक इस साल 18 फरवरी को की थी. कमीशन के पांच एसोसिएट मेंबर में से केवल दो- जितेंद्र सिंह (राज्य मंत्री और सांसद) और जुगल किशोर सिंह (सांसद) मौजूद रहे जबकि अन्य तीन मेंबर-फारूक अब्दुल्ला, मोहम्मद अकबर लोन और हसनैन मसूदी अनुपस्थित रहे. अनुपस्थित रहने वाले तीनों मेंबर नेशनल कॉन्फ्रेंस सांसद हैं.जम्मू कश्मीर के संदर्भ में परिसीमन आयोग के निर्णय लेने की शक्तिहालांकि रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में बने इस परिसीमन आयोग का गठन परिसीमन कानून,2002 के तहत किया गया है लेकिन जम्मू-कश्मीर के संदर्भ में इसका निर्णय जम्मू कश्मीर पुनर्गठन कानून, 2019 के अनुसार लिया जाएगा.ऐसा इसलिए है क्योंकि निर्वाचन क्षेत्र के परिसीमन पर निर्णय लेने के लिए आवश्यक 3 फैक्टर में से 2 का निर्णय 'जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन कानून,2019' के द्वारा पहले ही कर दिया गया है:जहां अन्य राज्यों के साथ-साथ चार पूर्वोत्तर राज्यों के निर्वाचन क्षेत्र के निर्धारण के लिए 2001 के जनगणना को आधार बनाया जाता रहा है वहीं 'जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन कानून,2019' के मुताबिक जम्मू-कश्मीर के संदर्भ में 2011 के जनगणना को आधार बनाया जाएगा.परिसीमन कानून 2002 के क्लॉज 8(b) के मुताबिक "प्रत्येक राज्य की विधानसभा को जनगणना के आधार पर कुल सीटों की संख्या आवंटित" करने का अधिकार परिसीमन आयोग को है. लेकिन जम्मू-कश्मीर के संदर्भ में पुनर्गठन कानून ने पहले ही इसे 107 से बढ़ाकर 114 कर दिया है.अब आयोग के पास सिर्फ चुनावी कार्टोग्राफी (नक्शा बनाने) का काम बचा है.जम्मू कश्मीर परिसीमन:किन बातों का रखना होगा ध्यानपूर्व जम्मू कश्मीर 'राज्य' की सभी विधानसभा सीटों के वितरण में क्षेत्रीय या अन्य कोई असंतुलन नहीं था. धारणा के विपरीत विशेष रूप से जम्मू के साथ प्रतिनिधित्व के मामले में कोई भेदभाव नहीं किया गया था. कश्मीर घाटी की जनसंख्या कुल आबादी का 55% थी तथा उसका कुल सीटों में शेयर 53%. दूसरी तरफ जम्मू की कुल आबादी में हिस्सेदारी 43% थी और विधानसभा सीटों में 42.5%. यानी 'एक व्यक्ति एक मत' का सिद्धांत लगभग पूरी तरह लागू था. कश्मीर के हर निर्वाचन क्षेत्र में औसतन 149,749 वोटर थे, जबकि जम्मू में 145,366.राज्य का दर्जा छिनने और UT में टूटने के बाद अब कश्मीर के पास कुल जनसंख्या का 56% शेयर है जबकि जम्मू में 44%.जम्मू डिवीजन के पास 62% क्षेत्र है जबकि कश्मीर डिवीजन के पास 38%.अगर परिसीमन के आधार के रूप में स्वीकार जनसंख्या के पैमाने को अस्वीकार करके क्षेत्र को आधार बनाया जाता है तो यह लोकतांत्रिक भावना के खिलाफ होगा.इसके अलावा जम्मू कश्मीर के प्रमुख दलों का इस प्रक्रिया में शामिल होना भी आवश्यक है. 9 जून को पीपुल्स अलायंस फॉर गुपकार डिक्लेरेशन (PAGD) के चेयरपर्सन डॉ. फारूक अब्दुल्ला ने कहा था कि केंद्र से बातचीत के दरवाजे अभी बंद नहीं हुए हैं. अब केंद्र के न्योते के बाद सबका साथ आना जरूरी है.