News18 : Sep 11, 2020, 06:31 AM
नई दिल्ली। संसद के दोनों सदनों में कांग्रेस (Congress) आज जितनी कमज़ोर हुई है, ऐसा पहले कभी नही हुआ है। आलम ये है कि लोकसभा (Loksabha) में नेता प्रतिपक्ष का दर्जा तक पार्टी को हासिल नही है और तो और चाहे राज्यसभा (Rajya sabha) में किसी चुनाव (Elections) का मसला हो या फिर लोकसभा में, कांग्रेस दोनों जगहों में कमज़ोर दिखनी शुरू हो गयी है।
दिलचस्प ये है कि 14 सितंबर को राजसभा उपसभापति का चुनाव होना है। एनडीए ने हरिवंश को अपना उम्मीदवार बनाया है। लेकिन कांग्रेस अपने सांसद को चुनाव में खड़ा करने की जोखिम तक लेने की हिम्मत नहीं जुटा पाई। पहले डीएमके सांसद त्रिची शिवा, फिर आरजेडी के डॉक्टर मनोज झा के नाम पर ही उनके पीछे हो लेने में खुद की भलाई समझी है। आपको बता दे कि पिछली बार कांग्रेस ने इस चुनाव के लिए बीके हरिप्रसाद को अपना उम्मीदवार बनाया था। हालांकि बीके हरिप्रसाद चुनाव हार गए थे। अगस्त 2018 में हुए चुनाव में एनडीए उम्मीदवार हरिवंश को सदन में 125 वोट मिले थे, जबकि विपक्ष के उम्मीदवार बीके हरिप्रसाद को 105 वोट ही मिले थे। लेकिन उस समय एनडीए के सामने कांग्रेस ने चुनौती जरूर खड़े करने की कोशिश की थी, जो इस बार देखने को नही मिली है।
हाउस मैनेजमेंट है कमजोर!कांग्रेस के कमजोर होने का असर हाउस मैनेजमेंट में भी अब साफ दिखता है। कई फ्रंट पर सरकार को घेरने के लिए कांग्रेस विपक्ष को भी एकजुट करने में नाकाम दिखती है। बात संसद के ऊपरी सदन की नहीं है, लोकसभा में भी कांग्रेस की कमजोर रणनीति का सीधा फायदा सरकार को मिलता दिखता है। ये जाहिर है कि संख्या बल में कांग्रेस, बीजेपी के सामने काफी कमजोर है, लेकिन कई मौकों पर जहां पूरा विपक्ष मिलकर सरकार के सामने चुनौती खड़ा कर सकते है, वहां पर भी विपक्ष की एकजुट रखने में नाकाम साबित होती है।लोकसभा उपाध्यक्ष पद अब भी है खालीबात लोकसभा उपाध्यक्ष पद की करते है। मौजूदा लोकसभा में ये पद शुरुआत से खाली है और परंपरा के मुताबिक ये पद विपक्ष के किसी नेता के खाते में जाता है। लेकिन विपक्ष और खास तौर पर कांग्रेस इस पद और इसके चुनाव के लिए अब अब दबाव तक नहीं बना पाई है। हालांकि लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने इन मामले पर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को खत जरूर लिखा है। लेकिन लोकसभा में विपक्ष के बिखराव की वजह से कोई दबाव नही दिख रहा है।
दिलचस्प ये है कि 14 सितंबर को राजसभा उपसभापति का चुनाव होना है। एनडीए ने हरिवंश को अपना उम्मीदवार बनाया है। लेकिन कांग्रेस अपने सांसद को चुनाव में खड़ा करने की जोखिम तक लेने की हिम्मत नहीं जुटा पाई। पहले डीएमके सांसद त्रिची शिवा, फिर आरजेडी के डॉक्टर मनोज झा के नाम पर ही उनके पीछे हो लेने में खुद की भलाई समझी है। आपको बता दे कि पिछली बार कांग्रेस ने इस चुनाव के लिए बीके हरिप्रसाद को अपना उम्मीदवार बनाया था। हालांकि बीके हरिप्रसाद चुनाव हार गए थे। अगस्त 2018 में हुए चुनाव में एनडीए उम्मीदवार हरिवंश को सदन में 125 वोट मिले थे, जबकि विपक्ष के उम्मीदवार बीके हरिप्रसाद को 105 वोट ही मिले थे। लेकिन उस समय एनडीए के सामने कांग्रेस ने चुनौती जरूर खड़े करने की कोशिश की थी, जो इस बार देखने को नही मिली है।
हाउस मैनेजमेंट है कमजोर!कांग्रेस के कमजोर होने का असर हाउस मैनेजमेंट में भी अब साफ दिखता है। कई फ्रंट पर सरकार को घेरने के लिए कांग्रेस विपक्ष को भी एकजुट करने में नाकाम दिखती है। बात संसद के ऊपरी सदन की नहीं है, लोकसभा में भी कांग्रेस की कमजोर रणनीति का सीधा फायदा सरकार को मिलता दिखता है। ये जाहिर है कि संख्या बल में कांग्रेस, बीजेपी के सामने काफी कमजोर है, लेकिन कई मौकों पर जहां पूरा विपक्ष मिलकर सरकार के सामने चुनौती खड़ा कर सकते है, वहां पर भी विपक्ष की एकजुट रखने में नाकाम साबित होती है।लोकसभा उपाध्यक्ष पद अब भी है खालीबात लोकसभा उपाध्यक्ष पद की करते है। मौजूदा लोकसभा में ये पद शुरुआत से खाली है और परंपरा के मुताबिक ये पद विपक्ष के किसी नेता के खाते में जाता है। लेकिन विपक्ष और खास तौर पर कांग्रेस इस पद और इसके चुनाव के लिए अब अब दबाव तक नहीं बना पाई है। हालांकि लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने इन मामले पर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को खत जरूर लिखा है। लेकिन लोकसभा में विपक्ष के बिखराव की वजह से कोई दबाव नही दिख रहा है।