आज दो ट्रेनों की टक्कर! / तेज रफ्तार से भिड़ेंगी, एक में रेलमंत्री वैष्णव खुद सवार होंगे, जानिए क्या है माजरा?

भारतीय रेलवे के लिए आज का दिन नई इबारत लिखने वाला है। आमतौर पर ट्रेन हादसे अचानक होते हैं, लेकिन शुक्रवार को दो ट्रेनों की ऐसी भिड़ंत होगी, जिसकी पटकथा पहले से लिखी जा चुकी है। तेलंगाना के सिकंदराबाद में ट्रेनों की अनूठी टक्कर होगी। पूरी गति के साथ दो ट्रेनों की टक्कर करवाई जाएगी। भिड़ने वाली एक ट्रेन में तो रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव खुद सवार होंगे।

Vikrant Shekhawat : Mar 04, 2022, 11:41 AM
भारतीय रेलवे के लिए आज का दिन नई इबारत लिखने वाला है। आमतौर पर ट्रेन हादसे अचानक होते हैं, लेकिन शुक्रवार को दो ट्रेनों की ऐसी भिड़ंत होगी, जिसकी पटकथा पहले से लिखी जा चुकी है।

तेलंगाना के सिकंदराबाद में ट्रेनों की अनूठी टक्कर होगी। पूरी गति के साथ  दो ट्रेनों की टक्कर करवाई जाएगी। भिड़ने वाली एक ट्रेन में तो रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव खुद सवार होंगे। वहीं, दूसरी ट्रेन में रेलवे बोर्ड के चेयरमैन समेत अन्य बड़े अधिकारी होंगे। रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव सनतनगर-शंकरपल्ली खंड पर इस तकनीक के परीक्षण के साक्षी बनने के लिए सिकंदराबाद में होंगे। रेलवे के अनुसार रेल मंत्री और रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष 4 मार्च को होने वाले परीक्षण में भाग लेंगे। 

देशी 'कवच' का होगा परीक्षण

दरअसल इस टक्कर के माध्यम से रेलवे देशी तकनीक 'कवच' का परीक्षण करेगा। 'कवच' ऐसी स्वदेशी तकनीक है, जिसके इस्तेमाल से दो ट्रेनों की टक्कर नहीं होगी। दुनिया में यह सबसे सस्ती तकनीक है। 'जीरो ट्रेन एक्सीडेंट' के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए इस कवच का विकास किया गया है। दरअसल यह स्वदेश में विकसित स्वचलित ट्रेन सुरक्षा (एटीपी) प्रणाली है। कवच को एक ट्रेन को स्वत: रोकने के लिए बनाया गया है। 

50 लाख रुपये प्रति किलोमीटर का खर्च

रेलवे के वरिष्ठ अधिकारियों के अनुसार जब डिजिटल सिस्टम को रेड सिग्नल या फिर किसी अन्य खराबी जैसी कोई मैन्युअल गलती दिखाई देती है, तो इस तकनीक के माध्यम से संबंधित मार्ग से गुजरने वाली ट्रेन अपने आप रुक जाती है। इस तकनीक को लागू करने के बाद इसके संचालन में 50 लाख रुपये प्रति किलोमीटर का खर्च आएगा। यह दूसरे देशों की तुलना में बहुत कम है। दुनिया भर में ऐसी तकनीक पर करीब दो करोड़ रुपये खर्च आता है। 

इस तरह काम करता है 'कवच'

रेलवे अधिकारियों ने कहा कि आज हम दिखाएंगे कि सिस्टम तीन स्थितियों में कैसे काम करता है। इस तकनीक में जब ऐसे सिग्नल से ट्रेन गुजरती है, जहां से गुजरने की अनुमति नहीं होती है तो इसके जरिए खतरे वाला सिग्नल भेजा जाता है। लोको पायलट अगर ट्रेन को रोकने में विफल साबित होता है तो फिर 'कवच' तकनीक के जरिए से अपने आप ट्रेन के ब्रेक लग जाते हैं और हादसे से ट्रेन बच जाती है। कवच तकनीक हाई फ्रीक्वेंसी रेडियो कम्युनिकेशन पर काम करती है। साथ ही यह SIL-4 (सिस्टम इंटिग्रेटी लेवल-4) की भी पुष्टि करती है। यह रेलवे सुरक्षा प्रमाणन का सबसे बड़ा स्तर है।

बजट में की गई थी घोषणा

इस तकनीक के अमल की घोषणा बजट में की गई थी। 'आत्मनिर्भर भारत' अभियान के तहत दो हजार किलोमीटर के रेलवे नेटवर्क को कवच तकनीक के दायरे में लाया जाएगा। अब तक, दक्षिण मध्य रेलवे की चल रही परियोजनाओं में कवच को 1098 किमी से अधिक मार्ग और 65 इंजनों पर लगाया जा चुका। यह तकनीक दिल्ली-मुंबई और दिल्ली हावड़ा कॉरिडोर पर लागू करने की योजना है। इस रूट की लंबाई करीब 3000 किलोमीटर है।