News18 : Jul 18, 2020, 07:59 AM
World Population: कोरोना वायरस (Corona virus) के असर ने बहुत से लोगों को दुनिया के भविष्य के बारे में फिर से सोचने पर मजबूर कर दिया है। लेकिन एक ताजा शोध से पता चला है कि साल 2064 के बाद से दुनिया की जनसंख्या (Population) कम होने लगेगी और 22वीं सदी के आने तक यह उम्मीद से दो अरब कम हो जाएगी। इसके अलावा अध्ययन में यह भी बताया गया है कि जनसंख्या के बदलाव का असर दुनिया की ताकत (Global Power) और अर्थव्यवस्था (Economy) पर भी पड़ेगा।
नए तरीके से किया गया यह अध्ययनइस साल मार्च में दुनिया की आबादी 7।8 अरब थी। द लेसेंट में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार साल 2064 में यह सबसे अधिक 9।7 अरब तक पहुंचेगी। लेकिन गर्भनिरोधक साधनों में इजाफे और लड़कियों और महिलाओं की व्यापक होती शिक्षा के कारण प्रजनन क्षमता में कमी होने लगेगी। इस वजह से प्रजनन दर में कमी का पूरी दुनिया में व्यापक और गहरा असर होगा।
क्या क्या अनुमान लगाए गए शोध मेंइस मॉडलिंग शोध में शोधकर्ताओं ने ग्लोबल बर्डन ऑफ डिसीज स्टडी 2017 के आंकड़ों का उपयोग किया है जिसके आधार पर उन्होंने भविष्य की वैश्विक, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय जनसंख्या का अनुमान लगाया है। इस नई पद्धति से वॉशिंगटन की स्कूल ऑफ मेडिसिन यूविर्सिटी में इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ मैट्रिक्स एंड अवैल्यूएशन (IHME) के शोधकर्ताओं ने मृत्युदर, प्रजनन क्षमता, प्रवासन (Immigration), का पूर्वानुमान लगाया।
यह होगा सबसे बड़ा बदलावइस शोध के मुताबिक साल 2100 तक 195 में से 183 देशें में की कुल प्रजनन दर (Total fertility Rate, TFR) प्रतिस्थापन स्तर (Replacement level) 2।1 से कम होगी। कुल प्रजनन दर एक महिला द्वारा उसके जीवन में पैदा किए बच्चों की औसत संख्या प्रदर्शित करती है। इसका मतलब यह हुआ कि यदि प्रवासन से संतुलन नहीं हुआ तो इस देशों की जनसंख्या कम होने लगेगी।
श्रमजीवी जनसंख्या में कमीयह संयुक्त राष्ट्र के जनसंख्या विभाग के अनुमानों से काफी अलग है। इस शोध के अनुसार आने वाले समय में बहुत से देशों को कार्यबल (Workforce) की संख्या में काफी कमी का सामना पड़ेगा, स्वास्थ्य और सामाजिक व्यवस्था पर बढ़ती जनसंख्या बड़ा बोझ बन जाएगी। इसका नतीजा यह होगा कि वैश्विक शक्ति संतुलन तक में बदलाव देखने को मिलने लगेंगे।
आयु संरचना में बदलावइस अध्ययन में सबसे ज्यादा जोर वैश्विक आयु संरचना में बड़े बदलाव पर दिया गया है। अध्ययन के मुताबकि साल 2100 में 65 साल की उम्र के लोगों की संख्या 2।37 अरब हो जाएगी, जबकि 20 तक के लोग केवल 1।7 अरब ही रह जाएंगे। इससे साफ है कि कई देशों में अपने प्रवासी नीतियों में उदारवादी दृष्टिकोण अपनाना होगा और आने वाले समय में अपनी घटती श्रमजीवी जनसंख्या के मद्देनजर अभी से कदम उठाने होंगे। केवल श्रमजीवी जनसंख्या कम होने से ही इन देशों को जीडीपी में बहुत फर्क पड़ने लगेगा, यहां तक कि वैश्विक आर्थिक शक्तियों में भी बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है।
जनसंख्या में कमी के संकेतअध्ययन के अनुमानों का केंद्र आने वाले समय में घटती कुल प्रजनन दर (TFR) है दुनिया की TFR साल 2017 में 2।37 है जो 2100 में घट कर केवल 1।66 रह जाएगी। यह रिप्लेसमेंट लेवल यानि कि उस 2।1 की दर से काफी कम जो एक जनसंख्या को कायम रखने के लिए होनी चाहिए। इसका सीधा अर्थ यह हुआ कि जनसंख्या कम होने लगेगी। वहीं इटली और स्पेन में यह 1।2 रह जाएगी तो पोलैंड में 1।17 तक आ जाएगी। यह बदलाव यूरोप ही नहीं बल्कि अफ्रीका में भी होगा। दुनिया में केवल उत्तरी अफ्रीका और मध्य पूर्व के इलाके ही ऐसे होंगे जहां की साल 2100 की जनसंख्या 2017 की जनसंख्या से ज्यादा होगी।एशिया और पूर्व और मध्य यूरोप की इनमें 25 से 50 प्रतिशत तक की गिरावट देखने को मिलेगी। लेकिन भारत की जनसंख्या में केवल 25 प्रतिशत के आसपास ही कमी होगी लेकिन कमी के बाद भी भारत की श्रमजीवी जनसंख्या बचाने में काफी हद कामयाब रहेगा।
नए तरीके से किया गया यह अध्ययनइस साल मार्च में दुनिया की आबादी 7।8 अरब थी। द लेसेंट में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार साल 2064 में यह सबसे अधिक 9।7 अरब तक पहुंचेगी। लेकिन गर्भनिरोधक साधनों में इजाफे और लड़कियों और महिलाओं की व्यापक होती शिक्षा के कारण प्रजनन क्षमता में कमी होने लगेगी। इस वजह से प्रजनन दर में कमी का पूरी दुनिया में व्यापक और गहरा असर होगा।
क्या क्या अनुमान लगाए गए शोध मेंइस मॉडलिंग शोध में शोधकर्ताओं ने ग्लोबल बर्डन ऑफ डिसीज स्टडी 2017 के आंकड़ों का उपयोग किया है जिसके आधार पर उन्होंने भविष्य की वैश्विक, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय जनसंख्या का अनुमान लगाया है। इस नई पद्धति से वॉशिंगटन की स्कूल ऑफ मेडिसिन यूविर्सिटी में इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ मैट्रिक्स एंड अवैल्यूएशन (IHME) के शोधकर्ताओं ने मृत्युदर, प्रजनन क्षमता, प्रवासन (Immigration), का पूर्वानुमान लगाया।
यह होगा सबसे बड़ा बदलावइस शोध के मुताबिक साल 2100 तक 195 में से 183 देशें में की कुल प्रजनन दर (Total fertility Rate, TFR) प्रतिस्थापन स्तर (Replacement level) 2।1 से कम होगी। कुल प्रजनन दर एक महिला द्वारा उसके जीवन में पैदा किए बच्चों की औसत संख्या प्रदर्शित करती है। इसका मतलब यह हुआ कि यदि प्रवासन से संतुलन नहीं हुआ तो इस देशों की जनसंख्या कम होने लगेगी।
श्रमजीवी जनसंख्या में कमीयह संयुक्त राष्ट्र के जनसंख्या विभाग के अनुमानों से काफी अलग है। इस शोध के अनुसार आने वाले समय में बहुत से देशों को कार्यबल (Workforce) की संख्या में काफी कमी का सामना पड़ेगा, स्वास्थ्य और सामाजिक व्यवस्था पर बढ़ती जनसंख्या बड़ा बोझ बन जाएगी। इसका नतीजा यह होगा कि वैश्विक शक्ति संतुलन तक में बदलाव देखने को मिलने लगेंगे।
आयु संरचना में बदलावइस अध्ययन में सबसे ज्यादा जोर वैश्विक आयु संरचना में बड़े बदलाव पर दिया गया है। अध्ययन के मुताबकि साल 2100 में 65 साल की उम्र के लोगों की संख्या 2।37 अरब हो जाएगी, जबकि 20 तक के लोग केवल 1।7 अरब ही रह जाएंगे। इससे साफ है कि कई देशों में अपने प्रवासी नीतियों में उदारवादी दृष्टिकोण अपनाना होगा और आने वाले समय में अपनी घटती श्रमजीवी जनसंख्या के मद्देनजर अभी से कदम उठाने होंगे। केवल श्रमजीवी जनसंख्या कम होने से ही इन देशों को जीडीपी में बहुत फर्क पड़ने लगेगा, यहां तक कि वैश्विक आर्थिक शक्तियों में भी बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है।
जनसंख्या में कमी के संकेतअध्ययन के अनुमानों का केंद्र आने वाले समय में घटती कुल प्रजनन दर (TFR) है दुनिया की TFR साल 2017 में 2।37 है जो 2100 में घट कर केवल 1।66 रह जाएगी। यह रिप्लेसमेंट लेवल यानि कि उस 2।1 की दर से काफी कम जो एक जनसंख्या को कायम रखने के लिए होनी चाहिए। इसका सीधा अर्थ यह हुआ कि जनसंख्या कम होने लगेगी। वहीं इटली और स्पेन में यह 1।2 रह जाएगी तो पोलैंड में 1।17 तक आ जाएगी। यह बदलाव यूरोप ही नहीं बल्कि अफ्रीका में भी होगा। दुनिया में केवल उत्तरी अफ्रीका और मध्य पूर्व के इलाके ही ऐसे होंगे जहां की साल 2100 की जनसंख्या 2017 की जनसंख्या से ज्यादा होगी।एशिया और पूर्व और मध्य यूरोप की इनमें 25 से 50 प्रतिशत तक की गिरावट देखने को मिलेगी। लेकिन भारत की जनसंख्या में केवल 25 प्रतिशत के आसपास ही कमी होगी लेकिन कमी के बाद भी भारत की श्रमजीवी जनसंख्या बचाने में काफी हद कामयाब रहेगा।