Vikrant Shekhawat : Jul 27, 2021, 05:49 PM
वॉशिंगटन । कोरोना वैक्सीन (Covid Vaccine) लेने के बाद एंटीबॉडीज (Covid Antibodies) कितने समय तक रहेंगी? ये सवाल बार-बार पूछा गया है । द लैंसेट जर्नल में छपी एक स्टडी के मुताबिक, फाइजर (Pfizer Vaccine) और एस्ट्राजेनेका (AstraZeneca Vaccine) से पूरा वैक्सीनेशन होने के छह हफ्तों बाद कुल एंटीबॉडीज का स्तर कम होने लगता है ।
स्टडी में सामने आया है कि 10 हफ्तों के बाद एंटीबॉडीज का स्तर 50 फीसदी से ज्यादा कम हो सकता है । यह स्टडी 18 साल और इससे ज्यादा उम्र के 600 लोगों पर किया गया । इसमें पुरानी बीमारी वालों समेत महिलाओं और पुरुषों को शामिल किया गया । भारत में एस्ट्राजेनेका वैक्सीन को कोविशील्ड नाम से सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया में बनाया जा रहा है ।यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन (UCL) के रिसर्चर्स का कहना है कि एंटीबॉडी में इस तेजी से गिरावट आना चिंता की बात है । टीके का असर खत्म होने की भी आशंका है । खासतौर पर नए वेरिएंट के खिलाफ ये चिंता ज्यादा हो सकती है ।
स्टडी में यह भी पाया गया है कि एस्ट्राजेनेका के 2 डोज लेने के बाद फाइजर वैक्सीन के 2 डोज लेने से एंटीबॉडी का स्तर काफी अच्छा रहता है । इसके अलावा ऐसे लोग जिन लोगों को कोविड इंफेक्शन हुआ था, उनकी तुलना में कोविड वैक्सीनेशन कराने वालों में एंटीबॉडी का स्तर ज्यादा मिला है ।यूसीएल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ इंफॉर्मेटिक्स की मधुमिता श्रोत्री कहती हैं, 'एस्ट्राजेनेका या फाइजर वैक्सीन के दोनों डोज के बाद एंटीबॉडी का स्तर शुरू में बहुत अधिक रहता है जो कि इसे गंभीर कोविड-19 के खिलाफ व्यक्ति को तगड़ी सुरक्षा देता है । हालांकि स्टडी में हमने पाया कि दो से तीन महीनों के दौरान इसके स्तर में काफी गिरावट आई है ।'
बुजुर्गों को पहले दें बूस्टर डोजबूस्टर डोज को लेकर यूसीएल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ इंफॉर्मेटिक्स के प्रोफेसर रॉब एल्ड्रिज ने कहा, 'अगर इस बारे में सोचा जाए कि किन लोगों को बूस्टर डोज देने के मामले में प्राथमिकता दी जानी चाहिए तो हमारे डेटा के मुताबिक एस्ट्राजेनेका का वैक्सीन लेने वालों को चुनना चाहिए । इन लोगों में एंटीबॉडी का स्तर सबसे कम होने की संभावना है ।' इसके अलावा 70 साल या उससे ज्यादा उम्र के लोगों को बूस्टर डोज प्राथमिकता के आधार पर दिए जाने चाहिए ।
कुपोषण का शिकार हो चुके लोगों को Corona वायरस से मौत का खतरा ज्यादाहालांकि स्टडी में शामिल टीम ने स्वीकार किया है कि उन्होंने यह अध्ययन बहुत कम लोगों पर किया है । इसके अलावा जिन लोगों पर यह अध्ययन हुआ है, उन्होंने अपने एक-एक सैंपल ही दिए हैं, ऐसे में एंटीबॉडी का स्तर कितने जल्दी गिरता है या वह अगले कुछ महीनों तक स्थिर रहता है, यह बता पाना मुश्किल है । साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि गंभीर बीमारी से बचाव के लिए एंटीबॉडी लेवल की कोई सीमा होना जरूरी है या नहीं, यह जानने के लिए आगे रिसर्च करना अहम होगा ।
स्टडी में सामने आया है कि 10 हफ्तों के बाद एंटीबॉडीज का स्तर 50 फीसदी से ज्यादा कम हो सकता है । यह स्टडी 18 साल और इससे ज्यादा उम्र के 600 लोगों पर किया गया । इसमें पुरानी बीमारी वालों समेत महिलाओं और पुरुषों को शामिल किया गया । भारत में एस्ट्राजेनेका वैक्सीन को कोविशील्ड नाम से सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया में बनाया जा रहा है ।यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन (UCL) के रिसर्चर्स का कहना है कि एंटीबॉडी में इस तेजी से गिरावट आना चिंता की बात है । टीके का असर खत्म होने की भी आशंका है । खासतौर पर नए वेरिएंट के खिलाफ ये चिंता ज्यादा हो सकती है ।
स्टडी में यह भी पाया गया है कि एस्ट्राजेनेका के 2 डोज लेने के बाद फाइजर वैक्सीन के 2 डोज लेने से एंटीबॉडी का स्तर काफी अच्छा रहता है । इसके अलावा ऐसे लोग जिन लोगों को कोविड इंफेक्शन हुआ था, उनकी तुलना में कोविड वैक्सीनेशन कराने वालों में एंटीबॉडी का स्तर ज्यादा मिला है ।यूसीएल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ इंफॉर्मेटिक्स की मधुमिता श्रोत्री कहती हैं, 'एस्ट्राजेनेका या फाइजर वैक्सीन के दोनों डोज के बाद एंटीबॉडी का स्तर शुरू में बहुत अधिक रहता है जो कि इसे गंभीर कोविड-19 के खिलाफ व्यक्ति को तगड़ी सुरक्षा देता है । हालांकि स्टडी में हमने पाया कि दो से तीन महीनों के दौरान इसके स्तर में काफी गिरावट आई है ।'
बुजुर्गों को पहले दें बूस्टर डोजबूस्टर डोज को लेकर यूसीएल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ इंफॉर्मेटिक्स के प्रोफेसर रॉब एल्ड्रिज ने कहा, 'अगर इस बारे में सोचा जाए कि किन लोगों को बूस्टर डोज देने के मामले में प्राथमिकता दी जानी चाहिए तो हमारे डेटा के मुताबिक एस्ट्राजेनेका का वैक्सीन लेने वालों को चुनना चाहिए । इन लोगों में एंटीबॉडी का स्तर सबसे कम होने की संभावना है ।' इसके अलावा 70 साल या उससे ज्यादा उम्र के लोगों को बूस्टर डोज प्राथमिकता के आधार पर दिए जाने चाहिए ।
कुपोषण का शिकार हो चुके लोगों को Corona वायरस से मौत का खतरा ज्यादाहालांकि स्टडी में शामिल टीम ने स्वीकार किया है कि उन्होंने यह अध्ययन बहुत कम लोगों पर किया है । इसके अलावा जिन लोगों पर यह अध्ययन हुआ है, उन्होंने अपने एक-एक सैंपल ही दिए हैं, ऐसे में एंटीबॉडी का स्तर कितने जल्दी गिरता है या वह अगले कुछ महीनों तक स्थिर रहता है, यह बता पाना मुश्किल है । साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि गंभीर बीमारी से बचाव के लिए एंटीबॉडी लेवल की कोई सीमा होना जरूरी है या नहीं, यह जानने के लिए आगे रिसर्च करना अहम होगा ।