जम्मू-कश्मीर / अनुच्छेद-370 समाप्त हुए एक साल पूरा: घाटी में बंदूक नहीं, रोजगार और रोजी रोटी बड़ा सवाल

अनुच्छेद-370 समाप्त होने के एक साल बाद कश्मीर में कई नए रंग नजर आने लगे हैं। लोगों को रोजगार और रोजी रोटी की चिंता है। लगातार कुप्रचार का एजेंडा चलाने में जुटे पाकिस्तान और अलगाववादियों को लेकर घाटी में ज्यादातर लोगों में कोई सहानुभूति नही है। स्थानीय लोगों से बातचीत में मुख्यधारा के कश्मीरी नेताओं से मोहभंग भी बड़े पैमाने पर नजर आने लगा है।

Live Hindustan : Aug 05, 2020, 06:54 AM
Delhi: अनुच्छेद-370 समाप्त होने के एक साल बाद कश्मीर में कई नए रंग नजर आने लगे हैं। लोगों को रोजगार और रोजी रोटी की चिंता है। लगातार कुप्रचार का एजेंडा चलाने में जुटे पाकिस्तान और अलगाववादियों को लेकर घाटी में ज्यादातर लोगों में कोई सहानुभूति नही है। स्थानीय लोगों से बातचीत में मुख्यधारा के कश्मीरी नेताओं से मोहभंग भी बड़े पैमाने पर नजर आने लगा है। पंचायतों के अलावा कई स्तरों पर नया नेतृत्व उभर रहा है। सरकार से कई मसलों पर लोगों की शिकायतें हैं । धारा 370 के प्रति बहुत से लोगों का मोह बरकरार है। लेकिन वे आतंक के खिलाफ बोलने लगे हैं। क्योंकि उन्हें लगता है कि आतंकवाद और पाकिस्तान के दखल की वजह से आम कश्मीरी निशाने पर आये हैं।


कहीं शिकायत तो कहीं उम्मीद 

370 खत्म होने के एक साल बाद स्थानीय लोगों के सामने रोजी रोटी, रोजगार सबसे बड़ा सवाल है। ज्यादातर भर्तियां ठप हैं। स्थानीय कश्मीरियों में काम नही होने की शिकायत आम है।  बहुत से लोगों को धारा 370 समाप्त होने से अपने हक में बाहरी दखल की आशंका भी नजर आती है। अधिवासी नीति को लेकर भी बहुत से लोग सवाल खड़े कर रहे हैं। लेकिन दूसरी तरफ बड़ी संख्या में माइग्रेंट वर्कर का कश्मीर में दोबारा वापस आना एक अलग भरोसे की कहानी बयान कर रहा है। दावा किया जा रहा है कि कोविड संकट के बावजूद करीब 50 हजार माइग्रेंट वर्कर वापस घाटी में आये हैं।


नए समूहों की आस बढ़ी 

एक अधिकारी ने कहा, श्रीनगर की फ्लाइट भरकर आने लगी है और इसमे भी बड़ी संख्या में बाहरी कामगार होते हैं। अनुच्छेद 370 के खात्मे ने बीते एक साल में कई नए समूहों की उम्मीद भी बढ़ाई है। जो पहले खुद को उपेक्षित महसूस करते थे। 


आतंक के खिलाफ

सुरक्षा बल से जुड़े एक अधिकारी के मुताबिक घाटी के बड़े हिस्से में एक बड़ा बदलाव ये महसूस किया जा रहा है कि स्थानीय लोग आतंकवाद पर कार्रवाई का विरोध नही करते। बुरहान वानी की तरह आतंकियों को हीरो बनाने का चलन कम हुआ है। पहले पुलिस की गाड़ी देखते ही पत्थर फेंकने की घटनाएं होती थीं। पुलिस प्रशासन के दावों से इतर स्थानीय लोग भी मानते हैं कि अब ये घटनाएं कम हुई हैं। ज्यादातर लोग अपने बच्चों की पढ़ाई और रोजगार को लेकर चिंतित नजर आते हैं।


पाकिस्तान ने लगाई आग 

श्रीनगर के रहने वाले फारूक का कहना है कि पाकिस्तान ने ही आग लगाई है। वे खुद भूखा नंगा है, हमें क्या देगा? हम चाहते हैं हमारे बच्चों को रोजगार मिले। हालात ठीक हों।  काम मिलेगा तो सब सुधरेगा। 


 370 का मोह बरकरार 

कश्मीर घाटी के फारुख धारा 370 समाप्त होने के एक साल बाद भी विशेष दर्जे से अपना मोह नही छिपा पाते। उन्होंने कहा लोग अभी भी नाखुश हैं। लेकिन बदले हालात में विकास और रोजगार को लेकर उम्मीद भी सरकार से है।


काम मिलेगा तो युवा नही भटकेंगे 

एक अन्य स्थानीय नागरिक शकील ने कहा कि काम मिलेगा तो बच्चों का दिमाग इधर उधर नही जाएगा। फारूक ने कहा मेरे एक बेटे ने बीटेक किया यहां काम नही है एमटेक करने बेंगलुरु भेजा। अब वहीं नौकरी करेगा। यहां रखना ठीक नही। काम नही मिलता तो बच्चो का दिमाग इधर उधर जाता है।


पहले 370 से बंदी अब कोविड ने पर्यटन खत्म किया 

डल झील पर हाउस बोट के मालिक अब्दुल माजिद का भी  दर्द काम को लेकर है। उन्होंने कहा, काम ठप्प पड़ गया है। एक साल पहले 370 समाप्त हुआ तो उसकी वजह से सब बंद था। अब कोविड संकट की वजह से सब कुछ बंद पड़ा है, लॉकडाऊन है। उन्होंने कहा, हम बोट वालों को एक हजार रुपये महीना देने का वायदा किया गया। माजिद कहते हैं, एक हजार रुपये से क्या होगा। इतने में तो बस एक सिलेंडर आता है। हालात ठीक हों पर्यटक आएं तो हमे सियासत से कोई लेना देना नही।


अपने हक में दखल की चिंता 

यहीं के रहने वाले जम्मू कश्मीर पुलिस के एक कर्मी ने नाम छिपाते हुए कहा कि चीजें बदल रही हैं। सड़क बन रही है। कई जगह काम शुरू हुआ है। लेकिन अभी भी धारा 370 खत्म होने से बहुत से लोग खुश नही हैं। उन्हें लगता है वैसे ही उनके पास काम नही है। बाहर के लोग आएंगे वे यहां जमीन खरीदेंगे उनको काम मिलेगा तो हमारे लोगों का हक छीना जाएगा।स्थानीय लोगों की बड़ी चिंता अपने हक को लेकर है।