SUCCESS STORY / हिंदी मीडियम से पढ़ने वाले शख्स को बड़ी कामयाबी, Google ने दिया 3.30 करोड़ का पैकेज

बहुत सारे लोगों को लगता है कि हिंदी मीडियम से पढ़ाई करके बड़ी सफलता हासिल नहीं की जा सकती है. अगर आप भी ऐसा सोचते हैं तो आप गलत हैं. आज हम जिस शख्स की सफलता की कहानी बताने जा रहे हैं, उसने अपनी शुरुआती पढ़ाई हिंदी मीडियम से ही की है और अब Google ने शख्स को 3.30 करोड़ रुपये का शानदार जॉब पैकेज ऑफर किया है.

Vikrant Shekhawat : Jan 27, 2022, 09:41 AM
बहुत सारे लोगों को लगता है कि हिंदी मीडियम से पढ़ाई करके बड़ी सफलता हासिल नहीं की जा सकती है. अगर आप भी ऐसा सोचते हैं तो आप गलत हैं. आज हम जिस शख्स की सफलता की कहानी बताने जा रहे हैं, उसने अपनी शुरुआती पढ़ाई हिंदी मीडियम से ही की है और अब Google ने शख्स को 3.30 करोड़ रुपये का शानदार जॉब पैकेज ऑफर किया है.

इस शख्स का नाम श्रीधर चंदन है. राजस्थान के अजमेर के रहने वाले श्रीधर ने कामयाबी की नई इबारत लिखी है. श्रीधर को गूगल ने 3.30 करोड़ रुपये का सालाना पैकेज ऑफर किया है. गूगल ने उन्हें सीनियर ग्रुप इंजीनियर के पद पर पोस्टिंग दी है. श्रीधरन अभी न्यूयार्क की कंपनी ब्लूमबर्ग में बतौर सीनियर इंजीनियर के पद पर कार्यरत हैं. 

बचपन से ही पढ़ाई में फोकस्ड

श्रीधर चंदन बचपन से ही पढ़ाई के प्रति इतने फोकस्ड थे कि परिवार में ना तो वह मां की सुनते थे और ना ही परिवार के सदस्यों की. वह सिर्फ अपना ध्यान पढ़ाई पर ही लगाते थे. पिता हरि चंदनानी के अनुसार, श्रीधर 31 दिसम्बर 1985 को अजमेर के जवाहर लाल नेहरू सरकारी अस्पताल में पैदा हुए थे. उनकी शुरुआती पढ़ाई हिंदी मीडियम से हुई है. इसके बाद अजमेर के सेंट पॉल स्कूल में दाखिला लिया.

पिता ने बताया कि वह 8वीं कक्षा की मेरिट में आए थे. इसके बाद आदर्श स्कूल से 12वीं और फिर उनका सेलेक्शन AIEEE में हुआ. पुणे से कंप्यूटर साइंस में बीई की डिग्री लेने के बाद उन्होंने सबसे पहले हैदराबाद में इंफोसिस कंपनी को ज्वाइन किया. इसके बाद साल 2012 में मास्टर डिग्री लेने के लिए अमेरिका चले गए. वहां वर्जीनिया टेक यूनिवर्सिटी से मास्टर डिग्री हासिल करने के बाद ब्लूमबर्ग में नौकरी हासिल की.

पिता लगाते थे कोयले की टाल

पिता ने बताया कि चंदन ने जॉब के साथ-साथ हायर स्टडी जारी रखी थी. साल 2021 में उन्होंने छुटि्टयां लेकर पढ़ाई की, इसके बाद उनका सेलेक्शन गूगल में हो गया. वह बहुत ही साधारण परिवार से आते हैं. उनके पिता का जीवन संघर्ष में बीता है. दस-बारह साल की उम्र में उनकी लकड़ी और कोयले की टाल थी. हालांकि बाद में इंजीनियरिंग करके उन्होंने गुजरात मोरवी में नौकरी की और फिर साल 1976 में सिंचाई विभाग में इंजीनियर की नौकरी मिली.