दुनिया / नए शोध के तरीके से पता चल सकेगा, किस इलाके में हैं ज्यादा मछलियां

मछलियां इंसान के भोजन के ही काम में नहीं आती हैं। वे सगारों और महासगरों में पर्यावरण संतुलन भी अहम भूमिका निभाते हैं। समुद्री जीवन में मछलियों के बारे में वैज्ञानिक हर तरह की जानकारी रखना चाहते हैं। बहुत से लोगों के लिए मछली का भोजन होने के कारण भी मछलियों की जानकारी और ज्यादा जरूरी हो जाती है साथ ही यह भी जरूरी हो जाता है कि मछलियों की आबादी में पर्याप्त संतुलन का स्थिति बनी रहे।

News18 : Jul 06, 2020, 09:18 AM
Delhi: मछलियां (Fishes) इंसान के भोजन के ही काम में नहीं आती हैं। वे सगारों और महासगरों में पर्यावरण संतुलन भी अहम भूमिका निभाते हैं। समुद्री जीवन में मछलियों के बारे में वैज्ञानिक हर तरह की जानकारी रखना चाहते हैं। बहुत से लोगों के लिए मछली का भोजन होने के कारण भी मछलियों की जानकारी और ज्यादा जरूरी हो जाती है साथ ही यह भी जरूरी हो जाता है कि मछलियों की आबादी (Population) में पर्याप्त संतुलन का स्थिति बनी रहे। अब वैज्ञानिकों ने मछलियों की संख्या का अनुमान लगाने के नया तरीका निकाल लिया है। इसमें पानी मौजूद DNA  उनकी मदद करेगा।


कहां हुआ है यह अध्ययन

जापान की टोहुकू यूनिवर्सिटी, शिमेन यूनिवर्सिटी, कोयोटो यूनिवर्सिटी, होकाइदो यूनिवर्सिटी, कोबे यूनिवर्सिटी और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एनवायरनमेंटल स्टडीज के अध्ययन से पानी में मौजूद डिएनए के जरिए किसी मछली की प्रजाति की जनसंख्या का अनुमान लगाना मुमकिन हो गया है। यह शोधपत्र मॉलीक्यूलर बायोलॉजी में ऑनलाइन प्रकाशित हुआ है।


क्या होता है पानी में मौजूद DNA

इस उद्देश्य के लिए वैज्ञानिकों ने मछली की प्रजाति की बहुतायत जानने के लिए नया तरीका विकसित किया है। इसके लिए उन्हें केवल पानी में मौजूद पर्यावरणीय डीएनए की मात्रा का पता लगाना होगा। दरअसल पानी में मौजूद किसी जीव के डीएनए के अणु पानी में ही मिल जाते हैं। ये अणु पानी के बहाव के साथ ही बहते हैं और बाद में कम हो जाते हैं। एक प्राकृतिक वातावरण में यह प्रक्रिया एक खास तरीके सा काम करती है।

पहले इस DNA  का अलग तरह से होता था इस्तेमाल

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एनवायरनमेंटल स्टडीज की रिसर्च एसोसिएट केइची फुकाया का कहना है कि यह प्रक्रिया जनसंख्या के अनुमान लागने के उन परंपरागत तरीके को काफी जटिल और सीमित कर देती है जोपर्यावरणीय डीएनए के आधार पर किए जाते थे। इन तरीकों में पर्यावरणीय जीएनए और जनसंख्या के बीच का संबंध बहुत संवेदनशील था। फुकाया ने बताया, “हमें लगता था कि पर्यावरणीय डीएनए की शेडिंग, परिवहन और डिग्रेडेशन वाली आधारभूत प्रक्रियाओं को जनसंख्या के अनुमान लागने के लिए शामिल करना जरूरी होना चाहिए था।

इस गणितीय मॉडल ने की मदद

वैज्ञानिकों ने इस विचार का न्यूमिरिकल हाइड्रोडायनामिक मॉडल का उपयोग करते हुए इस्तेमाल किया। यह मॉडल व्यापक तौर पर पर्यावरणीय डीएनए की मात्रा के वितरण को सिम्यूलेट करने की प्रक्रियाओं को शामिल करता है। फुकाया समझाते हुए कहते हैं कि इस मॉडल को विपरीत दिशा में हल करने से हम पर्यावरणीय डिएनए की मात्रा के वितरण का अवलोकन कर मछली की जनसंख्या का अनुमान लगाया जा सकता है।

किस काम आएगा यह अध्ययन

टोहोकू यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर  मिचिओ कोन्डो का कहना है कि अध्ययन में बताए गए तरीके से  पर्यावरणीय डीएनए विश्लेषण के जरिए मछलियों की जनसंख्या पर नजर रखी जा सकेगी। इससे पर्यावरणीय डीएनए विश्लेषण की व्यापकता बहुत बढ़ जाएगी। उसे मॉलीक्यूलर बायोलॉजी और गणितीय मॉडलिंग की भी मदद मिलेगी। लेकिन इससे किसी खास इलाके में मछलियों की संख्या का अनुमान लगाना आसान हो जाएगा।


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जापान में ही इसको लेकर हुई केस स्टडी से इस बात की पुष्टि हुई है कि शोध में बताए गए तरीके से जापानी की एक जैक मैकेरल नाम की मछली की  जनसंख्या का अनुमान  दूसरी पद्धति के समकक्ष पाया गया है।