AajTak : Jun 05, 2020, 05:39 PM
दिल्ली: हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवा से कोरोना वायरस के मरीजों को जान का खतरा बताने वाले स्टडी वापस ले ली गई है। ये फैसला स्टडी में शामिल डेटा पर चिंता जाहिर करते हुए लिया गया है। स्टडी के तीन लेखकों का कहना है कि वो इसकी सत्यता को प्रमाणित नहीं कर सकते हैं क्योंकि डेटा देने वाली हेल्थकेयर कंपनी सर्जीफेयर ने इस स्टडी के डेटासेट की निष्पक्ष समीक्षा कराने से इनकार कर दिया है। आपको बता दें कि इस स्टडी के निष्कर्षों पर ही WHO ने मलेरिया की इस दवा के परीक्षण पर रोक लगा दी थी।
स्टडी के चौथे लेखक और सर्जीफेयर के मुख्य कार्यकारी अधिकारी सपन देसाई ने 'द गार्डियन' को बताया कि वो स्वतंत्र ऑडिट में सहयोग कर सकते हैं लेकिन डेटा के बारे में जानकारी देना समझौतों और गोपनीयता का उल्लंघन होगा। बता दें कि भारत में बड़े पैमाने पर हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन का उत्पादन होता है और तमाम देश कोरोना से निपटने के लिए भारत से इसका आयात कर चुके हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इसे कोरोना से लड़ाई में गेमचेंजर करार दे चुके हैं। हालांकि, इस स्टडी के प्रकाशित होने के बाद से दवा को लेकर सवाल खड़े होने लगे थे।स्टडी में क्या है?मेडिकल जर्नल द लैंसेट में पिछले महीने प्रकाशित लेख के अनुसार, दुनिया भर के 671 अस्पतालों में 96,000 कोरोना वायरस के मरीजों पर एक रिसर्च की गई थी। इसमें लगभग 15,000 मरीजों को हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवा दी गई थी। कुछ लोगों को सिर्फ यही दवा दी गई थी जबकि कुछ लोगों को ये दवा एंटीबायोटिक के साथ दी गई थी।रिसर्च में ये निष्कर्ष निकाला गया कि इस दवा ने कोरोना वायरस पर कोई असर नहीं दिखाया बल्कि दिल की धड़कन अनियमित होने और मौत के खतरे को बढ़ा दिया।इस स्टडी का नेतृत्व करने वाले हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर मनदीप मेहरा, यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल ज्यूरिक के फ्रैंक रुशिट्जका और यूटा यूनिवर्सिटी के अमित पटेल ने एक बयान में कहा कि उन्होंने किसी तीसरे पक्ष से स्टडी के डेटा की समीक्षा कराने की पेशकश की थी लेकिन सर्जीफेयर ने इसमें सहयोग करने से इनकार कर दिया। इन तीनों लेखकों ने कहा, 'हम संपादकों और पाठकों से किसी भी शर्मिंदगी या असुविधा के लिए माफी मांगते हैं।'
कोरोनो वायरस पर इस दवा के काम ना करने कोई सबूत है?कोरोना वायरस के इलाज के लिए कुछ दवाओं के इस्तेमाल को लेकर वैज्ञानिकों चिंतित हैं। हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन मलेरिया और ल्यूपस या गठिया जैसी बीमारी के इलाज में सुरक्षित है, लेकिन किसी भी क्लिनिकल ट्रायल ने इस दवा को अभी तक कोरोना वायरस के लिए इस्तेमाल करने की सिफारिश नहीं की है।मिनेसोटा यूनिवर्सिटी में एक क्लिनिकल ट्रायल के परिणामों से पता चला है कि हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन कोरोना वायरस को रोकने में प्रभावी नहीं है।वहीं पिछले महीने रोक लगाने के बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवा का ट्रायल फिर से शुरू करने का फैसला लिया है। यूके, यूएस और सेनेगल सहित कई देशों में इस दवा पर स्टडी की जा रही है।मार्च में, अमेरिका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने अस्पताल में भर्ती के कुछ मरीजों पर इस दवा को इमरजेंसी में इस्तेमाल करने की इजाजत दी थी लेकिन कुछ मरीजों को दिल की समस्या की आने के बाद इस दवा को लेकर चेतावनी जारी कर दी गई थी।
स्टडी के चौथे लेखक और सर्जीफेयर के मुख्य कार्यकारी अधिकारी सपन देसाई ने 'द गार्डियन' को बताया कि वो स्वतंत्र ऑडिट में सहयोग कर सकते हैं लेकिन डेटा के बारे में जानकारी देना समझौतों और गोपनीयता का उल्लंघन होगा। बता दें कि भारत में बड़े पैमाने पर हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन का उत्पादन होता है और तमाम देश कोरोना से निपटने के लिए भारत से इसका आयात कर चुके हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इसे कोरोना से लड़ाई में गेमचेंजर करार दे चुके हैं। हालांकि, इस स्टडी के प्रकाशित होने के बाद से दवा को लेकर सवाल खड़े होने लगे थे।स्टडी में क्या है?मेडिकल जर्नल द लैंसेट में पिछले महीने प्रकाशित लेख के अनुसार, दुनिया भर के 671 अस्पतालों में 96,000 कोरोना वायरस के मरीजों पर एक रिसर्च की गई थी। इसमें लगभग 15,000 मरीजों को हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवा दी गई थी। कुछ लोगों को सिर्फ यही दवा दी गई थी जबकि कुछ लोगों को ये दवा एंटीबायोटिक के साथ दी गई थी।रिसर्च में ये निष्कर्ष निकाला गया कि इस दवा ने कोरोना वायरस पर कोई असर नहीं दिखाया बल्कि दिल की धड़कन अनियमित होने और मौत के खतरे को बढ़ा दिया।इस स्टडी का नेतृत्व करने वाले हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर मनदीप मेहरा, यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल ज्यूरिक के फ्रैंक रुशिट्जका और यूटा यूनिवर्सिटी के अमित पटेल ने एक बयान में कहा कि उन्होंने किसी तीसरे पक्ष से स्टडी के डेटा की समीक्षा कराने की पेशकश की थी लेकिन सर्जीफेयर ने इसमें सहयोग करने से इनकार कर दिया। इन तीनों लेखकों ने कहा, 'हम संपादकों और पाठकों से किसी भी शर्मिंदगी या असुविधा के लिए माफी मांगते हैं।'
कोरोनो वायरस पर इस दवा के काम ना करने कोई सबूत है?कोरोना वायरस के इलाज के लिए कुछ दवाओं के इस्तेमाल को लेकर वैज्ञानिकों चिंतित हैं। हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन मलेरिया और ल्यूपस या गठिया जैसी बीमारी के इलाज में सुरक्षित है, लेकिन किसी भी क्लिनिकल ट्रायल ने इस दवा को अभी तक कोरोना वायरस के लिए इस्तेमाल करने की सिफारिश नहीं की है।मिनेसोटा यूनिवर्सिटी में एक क्लिनिकल ट्रायल के परिणामों से पता चला है कि हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन कोरोना वायरस को रोकने में प्रभावी नहीं है।वहीं पिछले महीने रोक लगाने के बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवा का ट्रायल फिर से शुरू करने का फैसला लिया है। यूके, यूएस और सेनेगल सहित कई देशों में इस दवा पर स्टडी की जा रही है।मार्च में, अमेरिका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने अस्पताल में भर्ती के कुछ मरीजों पर इस दवा को इमरजेंसी में इस्तेमाल करने की इजाजत दी थी लेकिन कुछ मरीजों को दिल की समस्या की आने के बाद इस दवा को लेकर चेतावनी जारी कर दी गई थी।