Vikrant Shekhawat : Jun 16, 2021, 07:31 AM
Delhi: कौवों की खोपड़ी में भले ही पक्षी का छोटा दिमाग हो, लेकिन ये जीरो का मतलब समझता है। एक नई स्टडी में वैज्ञानिकों ने खुलासा किया है कि कौने जीरो का कॉनसेप्ट (Concept of Zero) को बखूबी समझते हैं। जीरो का कॉनसेप्ट या जीरो की अवधारणा पांचवीं सदी A।D। में या उससे थोड़ा पहले दी गई थी। ये बात हैरान करने वाली है कि कौवे इस अवधारणा को समझते हैं। जबकि, न तो उन्हें इसकी ट्रेनिंग दी गई है, न ही पढ़ाया गया है। फिर ये कैसे संभव है, आइए समझते हैं इस हैरान कर देने वाली जानकारी को।।।
सबसे पहले यह समझते हैं कि यह अवधारणा क्या है। यानी जीरो का कॉनसेप्ट क्या है। जीरो में किसी अन्य संख्या को जोड़िए, घटाइए, गुणा-भाग करिए।।।लेकिन जीरो का अस्तित्व खत्म नहीं होता। यानी 'कुछ नहीं होने की अवधारणा'। जीरो के मौजूदगी पर किसी भी चीज का कोई असर नहीं होता। हालांकि, पांचवीं सदी के बाद से अब तक गणित में कई तरह के बदलाव आए हैं। लेकिन कौवा जीरो को समझता है। वह जीरो का मतलब जानता है। जर्मनी स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ तुबिनजेन में इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरोबायोलॉजी में एनिमल फिजियोलॉजी के प्रोफेसर आंद्रिया निएडेर ने कहा कि अगर आप गणितज्ञों से पूछेंगे तो वो आपसे कहेंगे कि जीरो की खोज बहुत बड़ा अचीवमेंट था। जीरो के बारे में सबसे खास बात ये है कि जीरो आम दिनचर्या की गिनतियों में कहीं शामिल नहीं होता। जैसे- अगर किसी बास्केट में तीन सेब रखे हैं तो आप उसे एक, दो, तीन करके गिनेंगे। लेकिन बास्केट खाली है तो आप ये नहीं कहेंगे कि जीरो सेब है। आप कहते हैं ये खाली है।आंद्रिया निएडेर कहते हैं कि जीरो (Zero) खालीपन को दर्शाता है। यह अनुभवज्नय वास्तविकता से अलग होता है। हमने जितनी बार कौवों के दिमाग को पढ़ने की कोशिश की तो पता चला कि वो अन्य संख्याओं की तरह ही जीरो को भी समझते हैं। कौवों के दिमाग की गतिविधि का पैटर्न यह बताता है कि वह एक से पहले जीरो को समझता है। ये हैरान करने वाला तथ्य है, लेकिन ये सच है। कौवा जीरो को समझता है।यह स्टडी हाल ही में द जर्नल ऑफ न्यूरोसाइंस में प्रकाशित हुई है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि वैज्ञानिकों ने कौवों के दिमाग का अध्ययन करने के लिए दो प्रयोग किए। इसमें दो नर कैरियन कौवे (Corvus Corone) शामिल किए गए। इसमें कौवों को एक कंप्यूटर स्क्रीन के सामने लकड़ी के टुकड़े पर बिठा दिया गया। हर प्रयोग में कौवों के सामने ग्रे रंग की स्क्रीन आई, जिसमें जीरो और चार काले डॉट्स एकसाथ निकल कर सामने आए।इसके बाद कौवों को दूसरी संख्याओं के साथ भी डॉट्स दिखाए गए। कौवे स्क्रीन पर जैसे ही किसी दो तस्वीर को एक समान देखते तो वो तुरंत स्क्रीन पर चोंच मारते या फिर उस इमेज के साथ अपना सिर हिलाते। अगर संख्या मिलती नहीं तो वो चुपचाप बैठे रहते। इससे पहले साल 2015 में जो स्टडी हुई उसमें भी यह बात सामने आई कौवे मिलती-जुलती तस्वीरों को और नहीं मिलने वाली तस्वीरों में अंतर को 75 फीसदी तक समझ लेते हैं। लेकिन इसके लिए कठिन ट्रेनिंग देनी पड़ती है। यह स्टडी प्रोसिडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेस में प्रकाशित हुई थी। साल 2015 की स्टडी में कंप्यूटर को शामिल नहीं किया गया था। न ही उसमें जीरो था। लेकिन कौवे तीन डॉट वाली तस्वीर को पांच डॉट वाली तस्वीर से अलग करने में सफल हो रहे थे। वो दोनों तस्वीरों के डॉट्स में अंतर को समझ पा रहे थे। डॉट्स के दो सेट्स के बीच में जितना ज्यादा अंतर होता था, कौवे उसे उतनी ही आसानी से समझ लेते हैं। आम भाषा में कहे तो पक्षी नजदीक रखी हुई चीजों को मिलाकर देखते हैं। या फिर उनके आकार को एक ही मानते हैं, जैसे एक और चार। उनके लिए ये दोनों ही संख्याएं किसी काम की नहीं है। उनके लिए इसमें कोई अंतर नहीं है। इस प्रक्रिया को न्यूमेरिकल डिस्टेंस इफेक्ट (Numerical Distance Effect) कहते हैं। आंद्रिया कहते हैं कि इस इफेक्ट को बंदर और इंसान भी समझते हैं। लेकिन कौवे जीरो को अन्य संख्याओं से अलग करने में माहिर होते हैं। उनके दिमाग में यह खासियत होती है कि वो इस अंतर को समझते हैं। कौवे 'कुछ नहीं' और 'कुछ है' के बीच का अंतर समझते हैं। जहां तक बात रही जीरो की तो वो उसे एक सामान्य आसान समझने लायक गोल आकृति समझते हैं। जब इन गोल आकृतियों का अंतर बढ़ता है, तो भी वो समझ जाते हैं।आंद्रिया ने बताया कि जब दोनों कौवे कंप्यूटर स्क्रीन पर गोल डॉट्स देख रहे थे। तब एक के दिमाग के 500 न्यूरॉन्स में से 233 और दूसरे के 268 न्यूरॉन्स सक्रिय थे। जैसे-जैसे स्क्रीन पर जीरो के अलावा अन्य संख्याएं आने लगीं, कौवों के न्यूरॉन्स ने सक्रियता कम कर दी।।।और थोड़ी देर बाद उन्होंने स्क्रीन की तरफ देखना बंद कर दिया। लेकिन जैसे ही जीरो आया वो फिर सक्रिय हो गए। कौवों के लिए जीरो क्या मायने रखता है ये बात तो स्पष्ट नहीं हो पाई। लेकिन वो जीरो को समझते हैं ये बात तो पुख्ता हो चुकी है।आंद्रिया निएडेर कहते हैं कि कई उभयचर या सरिसृप गणितीय गणनाएं कर सकते हैं, जिसमें जीरो शामिल होता है। लेकिन स्तनधारियों और पक्षियों की तरह उनके पास सीखने की क्षमता नहीं होती। चूंकि पक्षी और स्तनधारी एक ही कॉमन पूर्वज से अलग हुए हैं, इसलिए दोनों की संज्ञानात्मक क्षमताएं लगभग एक जैसी होती हैं। यह बेहतरीन होती है।
सबसे पहले यह समझते हैं कि यह अवधारणा क्या है। यानी जीरो का कॉनसेप्ट क्या है। जीरो में किसी अन्य संख्या को जोड़िए, घटाइए, गुणा-भाग करिए।।।लेकिन जीरो का अस्तित्व खत्म नहीं होता। यानी 'कुछ नहीं होने की अवधारणा'। जीरो के मौजूदगी पर किसी भी चीज का कोई असर नहीं होता। हालांकि, पांचवीं सदी के बाद से अब तक गणित में कई तरह के बदलाव आए हैं। लेकिन कौवा जीरो को समझता है। वह जीरो का मतलब जानता है। जर्मनी स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ तुबिनजेन में इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरोबायोलॉजी में एनिमल फिजियोलॉजी के प्रोफेसर आंद्रिया निएडेर ने कहा कि अगर आप गणितज्ञों से पूछेंगे तो वो आपसे कहेंगे कि जीरो की खोज बहुत बड़ा अचीवमेंट था। जीरो के बारे में सबसे खास बात ये है कि जीरो आम दिनचर्या की गिनतियों में कहीं शामिल नहीं होता। जैसे- अगर किसी बास्केट में तीन सेब रखे हैं तो आप उसे एक, दो, तीन करके गिनेंगे। लेकिन बास्केट खाली है तो आप ये नहीं कहेंगे कि जीरो सेब है। आप कहते हैं ये खाली है।आंद्रिया निएडेर कहते हैं कि जीरो (Zero) खालीपन को दर्शाता है। यह अनुभवज्नय वास्तविकता से अलग होता है। हमने जितनी बार कौवों के दिमाग को पढ़ने की कोशिश की तो पता चला कि वो अन्य संख्याओं की तरह ही जीरो को भी समझते हैं। कौवों के दिमाग की गतिविधि का पैटर्न यह बताता है कि वह एक से पहले जीरो को समझता है। ये हैरान करने वाला तथ्य है, लेकिन ये सच है। कौवा जीरो को समझता है।यह स्टडी हाल ही में द जर्नल ऑफ न्यूरोसाइंस में प्रकाशित हुई है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि वैज्ञानिकों ने कौवों के दिमाग का अध्ययन करने के लिए दो प्रयोग किए। इसमें दो नर कैरियन कौवे (Corvus Corone) शामिल किए गए। इसमें कौवों को एक कंप्यूटर स्क्रीन के सामने लकड़ी के टुकड़े पर बिठा दिया गया। हर प्रयोग में कौवों के सामने ग्रे रंग की स्क्रीन आई, जिसमें जीरो और चार काले डॉट्स एकसाथ निकल कर सामने आए।इसके बाद कौवों को दूसरी संख्याओं के साथ भी डॉट्स दिखाए गए। कौवे स्क्रीन पर जैसे ही किसी दो तस्वीर को एक समान देखते तो वो तुरंत स्क्रीन पर चोंच मारते या फिर उस इमेज के साथ अपना सिर हिलाते। अगर संख्या मिलती नहीं तो वो चुपचाप बैठे रहते। इससे पहले साल 2015 में जो स्टडी हुई उसमें भी यह बात सामने आई कौवे मिलती-जुलती तस्वीरों को और नहीं मिलने वाली तस्वीरों में अंतर को 75 फीसदी तक समझ लेते हैं। लेकिन इसके लिए कठिन ट्रेनिंग देनी पड़ती है। यह स्टडी प्रोसिडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेस में प्रकाशित हुई थी। साल 2015 की स्टडी में कंप्यूटर को शामिल नहीं किया गया था। न ही उसमें जीरो था। लेकिन कौवे तीन डॉट वाली तस्वीर को पांच डॉट वाली तस्वीर से अलग करने में सफल हो रहे थे। वो दोनों तस्वीरों के डॉट्स में अंतर को समझ पा रहे थे। डॉट्स के दो सेट्स के बीच में जितना ज्यादा अंतर होता था, कौवे उसे उतनी ही आसानी से समझ लेते हैं। आम भाषा में कहे तो पक्षी नजदीक रखी हुई चीजों को मिलाकर देखते हैं। या फिर उनके आकार को एक ही मानते हैं, जैसे एक और चार। उनके लिए ये दोनों ही संख्याएं किसी काम की नहीं है। उनके लिए इसमें कोई अंतर नहीं है। इस प्रक्रिया को न्यूमेरिकल डिस्टेंस इफेक्ट (Numerical Distance Effect) कहते हैं। आंद्रिया कहते हैं कि इस इफेक्ट को बंदर और इंसान भी समझते हैं। लेकिन कौवे जीरो को अन्य संख्याओं से अलग करने में माहिर होते हैं। उनके दिमाग में यह खासियत होती है कि वो इस अंतर को समझते हैं। कौवे 'कुछ नहीं' और 'कुछ है' के बीच का अंतर समझते हैं। जहां तक बात रही जीरो की तो वो उसे एक सामान्य आसान समझने लायक गोल आकृति समझते हैं। जब इन गोल आकृतियों का अंतर बढ़ता है, तो भी वो समझ जाते हैं।आंद्रिया ने बताया कि जब दोनों कौवे कंप्यूटर स्क्रीन पर गोल डॉट्स देख रहे थे। तब एक के दिमाग के 500 न्यूरॉन्स में से 233 और दूसरे के 268 न्यूरॉन्स सक्रिय थे। जैसे-जैसे स्क्रीन पर जीरो के अलावा अन्य संख्याएं आने लगीं, कौवों के न्यूरॉन्स ने सक्रियता कम कर दी।।।और थोड़ी देर बाद उन्होंने स्क्रीन की तरफ देखना बंद कर दिया। लेकिन जैसे ही जीरो आया वो फिर सक्रिय हो गए। कौवों के लिए जीरो क्या मायने रखता है ये बात तो स्पष्ट नहीं हो पाई। लेकिन वो जीरो को समझते हैं ये बात तो पुख्ता हो चुकी है।आंद्रिया निएडेर कहते हैं कि कई उभयचर या सरिसृप गणितीय गणनाएं कर सकते हैं, जिसमें जीरो शामिल होता है। लेकिन स्तनधारियों और पक्षियों की तरह उनके पास सीखने की क्षमता नहीं होती। चूंकि पक्षी और स्तनधारी एक ही कॉमन पूर्वज से अलग हुए हैं, इसलिए दोनों की संज्ञानात्मक क्षमताएं लगभग एक जैसी होती हैं। यह बेहतरीन होती है।