देश / वैक्सीन से प्राप्त इम्युनिटी से बचने में 8 गुना अधिक सक्षम है डेल्टा वैरिएंट: अध्ययन

एक अध्ययन के मुताबिक, सर्वप्रथम भारत में मिला कोविड-19 का डेल्टा वैरिएंट, वैक्सीन से प्राप्त इम्युनिटी से बचने में अल्फा वैरिएंट से 8 गुना अधिक सक्षम है। अध्ययन में शामिल लोगों ने एस्ट्राज़ेनेका या फाइज़र की वैक्सीन लगवाई थी। अध्ययन के अनुसार, डेल्टा में संक्रमण से ठीक हो चुके लोगों को दोबारा संक्रमित करने की 5.45 गुना अधिक क्षमता है।

Vikrant Shekhawat : Sep 08, 2021, 09:42 AM
नई दिल्ली: कोरोना (Coronavirus) के डेल्टा वेरिएंट (Delta Variant) के ज्यादा संक्रामक होने के कारणों पर एक नया खुलासा हुआ है. दरअसल नेचर पत्रिका में प्रकाशित एक लेख में शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि डेल्टा वेरिएंट के पास इम्यून रेस्पांस (Immune Response) को चकमा देने की क्षमता कोरोना के अन्य वेरिएंट के मुकाबले कहीं ज्यादा है. चाहे ये इम्यून रेस्पांस वैक्सीनेशन (Covid-19 Vaccination) से पैदा हुआ हो, या कोविड संक्रमण के चलते. कोविड-19 का स्वरूप ‘बी.1.617.2’ या ‘डेल्टा’ का पहला मामला 2020 अंत में भारत में सामने आया था और इसके बाद यह पूरे विश्व में फैला. नेचर पत्रिका में छपे इस लेख को भारत और दुनिया के अन्य देशों के शोधकर्ताओं ने मिलकर लिखा है.

शोधकर्ताओं ने कहा है कि डेल्टा वेरिएंट (B.1.617.2) के पास ऐस्ट्राजेनेका और फाइजर वैक्सीन से पैदा हुए इम्यून रेस्पांस को मूल कोरोना वायरस के मुकाबले चकमा देने की क्षमता 8 गुना है. इसके अलावा पहले संक्रमित हो चुके लोगों के डेल्टा वेरिएंट से दोबारा संक्रमित होने की संभावना 6 गुना है. शोध में पाया गया है कि डेल्टा वेरिएंट के पास अपनी प्रतिकृति बनाने की बेहद उच्च क्षमता है. इससे लोगों को संक्रमित करने में वायरस की क्षमता बढ़ जाती है और यही वजह है कि डेल्टा वेरिएंट (B.1.617.2) दुनिया भर में बेहद संक्रामक है.

अध्ययन में कहा गया है कि प्राकृतिक संक्रमण या टीकों के माध्यम से निर्मित एंटीबॉडीज को निष्क्रिय करने के लिए ‘प्रतिकृति फिटनेस में वृद्धि’ और ‘संवेदनशीलता में कमी’ ने 90 से अधिक देशों में डेल्टा संस्करण के तेजी से प्रसार में योगदान दिया था.

शोधकर्ताओं ने दिल्ली स्थित तीन अस्पतालों के 9 हजार स्वास्थ्य कर्मियों में ब्रेक थ्रू इंफेक्शन का अध्ययन किया है, जो पूर्ण टीकाकरण करवाने के बाद भी संक्रमित हुए. इन कर्मियों में 218 ऐसे थे, जिनमें कोविशील्ड वैक्सीन की दोनों डोज लेने के बाद भी ब्रेक थ्रू इंफेक्शन में संक्रमण के लक्षण थे. इस कोहोर्ट ग्रुप में डेल्टा वेरिएंट का प्रिवैलेंस अन्य वेरिएंट के मुकाबले 5.45 गुना ज्यादा था. ब्रिटेन में ‘कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय’ के प्रोफेसर एवं अध्ययन के वरिष्ठ लेखकों में से एक रवींद्र गुप्ता ने कहा, ‘भारत में 2021 में संक्रमण की दूसरी लहर के कहर के दौरान इन कारकों की भूमिका बहुत रही होगी, जहां कम से कम आधे मरीज वे थे, जो पहले भी संक्रमण के अन्य स्वरूप की चपेट में आ चुके थे.’

यह जांचने के लिए कि ‘डेल्टा’ स्वरूप प्रतिरोधक प्रतिक्रिया से बचने में कितना सक्षम था, टीम ने ब्रिटेन के ‘नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ रिसर्च (एनआईएचआर) बायोरिसोर्स’ के कोविड​-19 ‘कोहोर्ट’ (जांच के) के हिस्से के रूप में एकत्र किए गए रक्त के नमूनों से सीरम निकाला. ये नमूने उन लोगों के थे, जो पहले कोरोना वायरस से संक्रमित हो चुके थे या जिन्हें ऑक्सफोर्ड/एस्ट्राजेनेका (जिसे भारत में कोविशील्ड कहा जाता है) का टीका या फाइजर का टीका लगा था. सीरम में संक्रमण या टीकाकरण के बाद बनी प्रतिरोधक क्षमता होती है.

अध्ययन में पाया गया कि ‘डेल्टा’ स्वरूप पहले से संक्रमित लोगों के ‘सीरा’ की तुलना में 5.7 गुना कम संवेदनशील है और ‘अल्फा’ स्वरूप की तुलना में टीके के ‘सीरा’ के प्रति आठ गुना कम संवेदनशील है. अन्य शब्दों में, टीका लगे किसी व्यक्ति को इससे संक्रमित होने से रोकने के लिए आठ गुना प्रतिरोधक क्षमता चाहिए.