Rupee vs Dollar: दुनिया में भले ही डॉलर की दादागिरी चलती हो, लेकिन भारत में रुपये ने इस दबदबे को चुनौती दी है। खास बात यह है कि जहां डॉलर इंडेक्स बीते दो महीनों में लगभग 6 फीसदी गिर चुका है, वहीं भारतीय रुपये में डॉलर के मुकाबले उल्लेखनीय मजबूती देखने को मिली है। इस मजबूती की बदौलत रुपया दो महीने की ऊँचाई पर पहुंच चुका है।
रुपये की लगातार मजबूती
गुरुवार को भारतीय रुपया डॉलर के मुकाबले 1 पैसे की मजबूती के साथ 86.36 (अनंतिम) पर बंद हुआ। यह लगातार पांचवां दिन था जब रुपये में मजबूती दर्ज की गई। इन पांच दिनों में रुपये ने डॉलर के मुकाबले लगभग 1 फीसदी की बढ़त हासिल कर ली है। विदेशी मुद्रा व्यापारियों का मानना है कि भारतीय रुपये ने बाहरी दबावों के खिलाफ अपनी स्थिति को मजबूत किया है, जिसे मजबूत विदेशी प्रवाह और घरेलू बाजारों में सकारात्मक रुझान से समर्थन मिला है।
करेंसी मार्केट के प्रमुख आंकड़े
इंटरबैंक फॉरेन करेंसी मार्केट में रुपया 86.39 पर खुला और कारोबार के दौरान 86.20 के उच्चतम स्तर और 86.41 के निम्नतम स्तर को छूने के बाद अंततः 86.36 पर बंद हुआ। इससे पहले, बुधवार को रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 19 पैसे मजबूत होकर 86.37 पर बंद हुआ था।
डॉलर इंडेक्स और वैश्विक बाजार की स्थिति
डॉलर इंडेक्स, जो छह प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले अमेरिकी डॉलर की ताकत को मापता है, 0.46 फीसदी बढ़कर 103.90 पर कारोबार कर रहा था। फेडरल रिजर्व के अध्यक्ष जेरोम पॉवेल के बयान के अनुसार, यदि महंगाई बनी रहती है तो अमेरिकी केंद्रीय बैंक ब्याज दरें ऊंची रखने के लिए तैयार रहेगा।
शेयर बाजार में बढ़त
भारतीय इक्विटी बाजार में भी मजबूती देखी गई। 30 शेयरों वाला बीएसई सेंसेक्स 899.01 अंक या 1.19 फीसदी बढ़कर 76,348.06 पर बंद हुआ, जबकि निफ्टी 283.05 अंक या 1.24 फीसदी की तेजी के साथ 23,190.65 अंक पर बंद हुआ। वहीं, विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) ने बुधवार को शुद्ध आधार पर 1,096.50 करोड़ रुपये की इक्विटी बेची।
आगे की संभावनाएँ
विशेषज्ञों का मानना है कि भारतीय रुपये की यह मजबूती जारी रह सकती है, लेकिन विदेशी संस्थागत निवेशकों की बिकवाली और वैश्विक अनिश्चितताओं के चलते इसमें अस्थिरता भी देखने को मिल सकती है।
निष्कर्ष
डॉलर की वैश्विक दादागिरी के बावजूद, भारतीय रुपये ने हाल के दिनों में अपनी स्थिति मजबूत की है। यदि यह रुझान जारी रहता है, तो रुपये की मजबूती से भारतीय अर्थव्यवस्था को लाभ होगा और आयात पर निर्भरता कम होने से व्यापार घाटा भी नियंत्रित किया जा सकेगा।