Live Vns : Aug 02, 2020, 07:13 AM
Delhi: कोरोना के कारण बीते चार महीनों में अस्पतालों में हार्ट अटैक के मरीजों की संख्या में गिरावट आई है। एम्स से लेकर राम मनोहर लोहिया अस्पताल, सफदरजंग अस्पताल सहित कई दूसरे अस्पतालों में हार्ट अटैक के मरीजों के मामलों में कमी देखने को मिली है। लॉकडाउन खुलने के बाद भी हार्ट अटैक वाले मरीजों की संख्या में कोई वृद्धि नहीं हुई है। इसे लेकर चिकित्सकों के अलग-अलग तर्क है।
आरएमएल अस्पताल के कार्डियोलॉजी विभाग में कार्यरत एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. तरुण कुमार ने बताया कि आरएमएल अस्पताल में 60-70 फीसदी की गिरावट हार्ट अटैक के मरीजों में देखने को मिली है। सिर्फ 3-4 हार्ट अटैक के मरीज ही अस्पताल पहुंच रहे है। लॉकडाउन खुल जाने के बाद भी स्थिति में कोई बदलाव नहीं हुआ है, जबकि कोरोना से पहले 15 हार्ट अटैक के मरीज इलाज के लिए पहुंचते थे।
अमेरिका में भी हुई 48 फीसदी की गिरावट दर्जडॉक्टर के मुताबिक, हार्ट अटैक के मरीज कम होने का असर दिल्ली ही नहीं, बल्कि वैश्विक तौर पर भी देखने को मिला है। खासतौर पर जब से कोरोना का प्रकोप फैला है। उन्होंने एक शोध का हवाला देते हुए बताया कि अमेरिका के एक शहर में इस संबंध में अध्ययन किया गया, जिसमें कोरोना से पहले और कोरोना काल की अवधि में शोध हुआ। शोध में सामने आया कि हार्ट अटैक के मामलों में 48 फीसदी तक की गिरावट दर्ज हुई है।
कई कारणडॉ. तरुण बताते है कि इसके कई कारण हो सकते हैं। लॉकडाउन की अवधि में लोगों का घरों पर रहना, कोरोना के डर से अस्पताल न आना, योग, प्रदूषण का स्तर कम होना, घर पर आरामदायक माहौल मिलना, दवा का नियमित सेवन, यात्रा कम से कम करना, घरवालों की मौजूदगी के चलते धूम्रपान से दूरी जैसे कई दूसरे कारण हैं।
दिल को भी पहुंच रहा नुकसानकोरोना को हराने के बाद मरीज भले ही स्वस्थ्य हो गया हो, लेकिन बीमारी के संक्रमण ने शरीर के दूसरे अंगों को भी नुकसान पहुंचाया है। हाल ही में प्रकाशित एक शोध में यह जानकारी आई है कि कोरोना फेफड़ों को ही नहीं दिल को भी क्षति पहुंचा रहा है। हार्ट अटैक की संभावना प्रबल हो जाती है। कोरोना को हराने वाले 100 मरीजों पर शोध किया गया था, जिनकी उम्र 45 से 53 के बीच में थी। उनकी एमआरआई कराने पर सामने आया कि 78 मरीजों के दिल के आकार में बदलाव देखने को मिला है। इस तरह के बदलाव केवल हार्ट अटैक के आने के बाद ही किसी मरीज में देखने को मिलते हैं।
डर मुख्य कारणसफदरजंग अस्पताल में भी हार्ट अटैक के मरीजों की संख्या में गिरावट आई है। अस्पताल के एक डॉक्टर के अनुसार, पहले रोजाना दस हार्ट अटैक के मरीज इलाज के लिए आते थे। अब संख्या पांच पर सिमट गई है। इसका मुख्य कारण कोरोना के डर से अस्पताल इलाज के लिए न आना है। हल्का हार्ट अटैक होने पर मरीज उसे कोरोना के डर से दरकिनार कर रहा है। जब उसे दोबारा तकलीफ महसूस होती है तो हार्ट अटैक होने के बारे में पता चलता है। साथ ही कोरोना के कारण परिवार के सब लोगों का एक साथ रहना भी किसी मरीज हार्ट अटैक के स्तर को अप्रत्यक्ष तौर पर कम करता है।
एम्स में भी कमीएम्स अस्पताल के कार्डियोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डॉ. अंबुज रॉय बताते है कि एम्स ही नहीं दूसरे जगहों पर भी हार्ट अटैक के मरीजों में कमी आई है। कोरोना के डर से अस्पताल न आना इसकी मुख्य वजह हो सकती है। साथ ही लॉकडाउन में प्रदूषण का स्तर कम होने से भी जीवनशैली पर प्रभाव पड़ा है। एम्स अस्पताल के कार्डियोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डॉ. अंबुज रॉय बताते है कि एम्स ही नहीं दूसरे जगहों पर भी हार्ट अटैक के मरीजों में कमी आई है। कोरोना के डर से अस्पताल न आना इसकी मुख्य वजह हो सकती है। साथ ही लॉकडाउन में प्रदूषण का स्तर कम होने से भी जीवनशैली पर प्रभाव पड़ा है।
आरएमएल अस्पताल के कार्डियोलॉजी विभाग में कार्यरत एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. तरुण कुमार ने बताया कि आरएमएल अस्पताल में 60-70 फीसदी की गिरावट हार्ट अटैक के मरीजों में देखने को मिली है। सिर्फ 3-4 हार्ट अटैक के मरीज ही अस्पताल पहुंच रहे है। लॉकडाउन खुल जाने के बाद भी स्थिति में कोई बदलाव नहीं हुआ है, जबकि कोरोना से पहले 15 हार्ट अटैक के मरीज इलाज के लिए पहुंचते थे।
अमेरिका में भी हुई 48 फीसदी की गिरावट दर्जडॉक्टर के मुताबिक, हार्ट अटैक के मरीज कम होने का असर दिल्ली ही नहीं, बल्कि वैश्विक तौर पर भी देखने को मिला है। खासतौर पर जब से कोरोना का प्रकोप फैला है। उन्होंने एक शोध का हवाला देते हुए बताया कि अमेरिका के एक शहर में इस संबंध में अध्ययन किया गया, जिसमें कोरोना से पहले और कोरोना काल की अवधि में शोध हुआ। शोध में सामने आया कि हार्ट अटैक के मामलों में 48 फीसदी तक की गिरावट दर्ज हुई है।
कई कारणडॉ. तरुण बताते है कि इसके कई कारण हो सकते हैं। लॉकडाउन की अवधि में लोगों का घरों पर रहना, कोरोना के डर से अस्पताल न आना, योग, प्रदूषण का स्तर कम होना, घर पर आरामदायक माहौल मिलना, दवा का नियमित सेवन, यात्रा कम से कम करना, घरवालों की मौजूदगी के चलते धूम्रपान से दूरी जैसे कई दूसरे कारण हैं।
दिल को भी पहुंच रहा नुकसानकोरोना को हराने के बाद मरीज भले ही स्वस्थ्य हो गया हो, लेकिन बीमारी के संक्रमण ने शरीर के दूसरे अंगों को भी नुकसान पहुंचाया है। हाल ही में प्रकाशित एक शोध में यह जानकारी आई है कि कोरोना फेफड़ों को ही नहीं दिल को भी क्षति पहुंचा रहा है। हार्ट अटैक की संभावना प्रबल हो जाती है। कोरोना को हराने वाले 100 मरीजों पर शोध किया गया था, जिनकी उम्र 45 से 53 के बीच में थी। उनकी एमआरआई कराने पर सामने आया कि 78 मरीजों के दिल के आकार में बदलाव देखने को मिला है। इस तरह के बदलाव केवल हार्ट अटैक के आने के बाद ही किसी मरीज में देखने को मिलते हैं।
डर मुख्य कारणसफदरजंग अस्पताल में भी हार्ट अटैक के मरीजों की संख्या में गिरावट आई है। अस्पताल के एक डॉक्टर के अनुसार, पहले रोजाना दस हार्ट अटैक के मरीज इलाज के लिए आते थे। अब संख्या पांच पर सिमट गई है। इसका मुख्य कारण कोरोना के डर से अस्पताल इलाज के लिए न आना है। हल्का हार्ट अटैक होने पर मरीज उसे कोरोना के डर से दरकिनार कर रहा है। जब उसे दोबारा तकलीफ महसूस होती है तो हार्ट अटैक होने के बारे में पता चलता है। साथ ही कोरोना के कारण परिवार के सब लोगों का एक साथ रहना भी किसी मरीज हार्ट अटैक के स्तर को अप्रत्यक्ष तौर पर कम करता है।
एम्स में भी कमीएम्स अस्पताल के कार्डियोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डॉ. अंबुज रॉय बताते है कि एम्स ही नहीं दूसरे जगहों पर भी हार्ट अटैक के मरीजों में कमी आई है। कोरोना के डर से अस्पताल न आना इसकी मुख्य वजह हो सकती है। साथ ही लॉकडाउन में प्रदूषण का स्तर कम होने से भी जीवनशैली पर प्रभाव पड़ा है। एम्स अस्पताल के कार्डियोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डॉ. अंबुज रॉय बताते है कि एम्स ही नहीं दूसरे जगहों पर भी हार्ट अटैक के मरीजों में कमी आई है। कोरोना के डर से अस्पताल न आना इसकी मुख्य वजह हो सकती है। साथ ही लॉकडाउन में प्रदूषण का स्तर कम होने से भी जीवनशैली पर प्रभाव पड़ा है।