Vikrant Shekhawat : Dec 31, 2020, 10:38 PM
नई दिल्ली | नये साल में भारत को विदेश नीति पर नयी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। कोविड के बाद उपजे हालात और दूसरे देशों में नेतृत्व परिवर्तन के बाद भारत को नये समीकरण से खुद को एडजस्ट करने की चुनौती होगी। जानते हैं इस साल भारत की कूटनीतिक मोर्चे पर 4 सबसे बड़ी चुनौती-1-बाइडेन सरकार से रिश्ताअमेरिका में जनवरी में बाइडेन सत्ता संभाल लेंगे। ट्रंप के चार सालों के शासन के बाद अमेरिकी नीतियों में बड़ा बदलाव आने की उम्मीद है। भारत अमेरिकी सत्ता परिवर्तन के साथ किस तरह खुद को आगे बढ़ाता है वह चुनौतीपूर्ण् होगा। हालांकि नरेन्द्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार का ओबामा प्रशासन से बेहतर संबंध रहा है। लेकिन पिछले चार सालों में बड़ा बदलाव हो गया है। साथ ही बाइडेन का कश्मीर और कुछ दूसरी नीतियों पर मतभेद रहने के संकेत दिख चुके हैं। ट्रंप ने अब तक हर बड़े मसलों पर भारत का समर्थन दिया था।2- चीन का मसला किस तरह आगे बढ़ेगावहीं भारत इस साल चीन के साथ कूटनीतिक और सैन्य मोर्चे पर जूझता रहा। और यह संघर्ष जारी रहा। दोनों देशों के बीच कूटनीतिक माइंड गेम भी जारी रहा। अगले साल इस माइंड गेम के और जारी रहने की उम्मीद है। चीन अपनी आर्थिक ताकत की बदौलत भारत को अलग-थलग करने का दांव खेता तो भारत ने पिछले कई मौकों पर काउंटर दांव से चीन को उसी की जवाब में भाषा दे दिया। नये साल में जब कोविड के बाद तमाम देश आर्थिक चुनौतियां झेल रहा है,दोनों का माइंड गेम अगला साल जारी रहेगा और इसके बहुआयामी असर देखा जा सकता है।3-पड़ोसी देशों से संबंधपिछला साल भारत ने अपने पड़ोंसी देशों,खासकर नेपाल,बांग्लादेश के साथ उतार-चढ़ाव भरे रिश्ते देखे। पाकिस्तान की तल्खी तो पिछले कई सालों की कहानी रही है। भारत ने साल के अंत में खासकर नेपाल और बांग्लादेश से अपने संबंध को पहले की तरह बेहतर करने की दिशा में पहल की। नये साल में पड़ोंसी देशों के रिश्ते किस तरह आगे बढ़ते हैं और यह देश के हित में बना रहता है,इस मोर्चे पर भी चुनौती बनी रहेगी।4- यूरोपीय देशों के साथ संबंधसाल के अंत में ब्रेक्जिट डील होने के बाद अगले साल यूराेपीय देशों के हालात अगले साल बदल जाएंगे। इसके अलावा बीत साल यूरोपीय देशों ने कूटनीतिक स्तर पर कई उतार-चढ़ाव देखा। भारत के साथ रिश्तों पर इसका प्रभाव पड़ा। अब बदले हालात में भारत काे यूरोपीय देशों से नये स्तर पर शुरू करना होगा। खासकर आर्थिक मोर्चे