Holika Dahan 2021 Date & Time / कब है होलिका दहन, जानें तिथि, शुभ मुहूर्त और पौराणिक कथा

होलिका दहन मुहूर्त (Holika Dahan 2021 Shubh Muhurat) होलिका दहन रविवार, मार्च 28, 2021 को होलिका दहन मुहूर्त – 06:37 पी एम से 08:56 पी एम अवधि – 02 घण्टे 20 मिनट्स भद्रा पूँछ – 10:13 ए एम से 11:16 ए एम भद्रा मुख – 11:16 ए एम से 01:00 पी एम

Vikrant Shekhawat : Mar 27, 2021, 11:16 PM
होलिका दहन, हिन्दुओं का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसमें होली के एक दिन पहले यानी पूर्व संध्या को होलिका का सांकेतिक रूप से दहन किया जाता है. होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत के पर्व के रूप में मनाया जाता है. होलिका दहन (Kab Hai Holika Dahan), होली त्योहार का पहला दिन, फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है. इसके अगले दिन रंगों से खेलने की परंपरा है जिसे धुलेंडी, धुलंडी और धूलि आदि नामों से भी जाना जाता है. इस साल होलिका दहन (Holika Dahan Shubh Muhurat) 28 मार्च को है. ऐसे में आइए जानते हैं इस दौरान किस मुहूर्त पर करें पूजा- Also Read - Holika Dahan 2021: होलिका दहन के समय भूलकर भी ना जलाएं ये लकड़ियां, माना जाता है अशुभ, बरतें ये सावधानियां


होलिका दहन, जिसे होलिका दीपक और छोटी होली के नाम से भी जाना जाता है. होलिका दहन का मुहूर्त किसी त्यौहार के मुहूर्त से ज्यादा महवपूर्ण और आवश्यक है. यदि किसी अन्य त्यौहार की पूजा उपयुक्त समय पर न की जाये तो मात्र पूजा के लाभ से वञ्चित होना पड़ेगा परन्तु होलिका दहन की पूजा अगर अनुपयुक्त समय पर हो जाये तो यह दुर्भाग्य और पीड़ा देती है. Also Read - Holi 2021 Dhruv Yog: होली पर इस साल बनने जा रहा है ध्रुव योग, जानें किस शुभ मुहूर्त पर करें पूजा


होलिका दहन मुहूर्त (Holika Dahan 2021 Shubh Muhurat)

होलिका दहन रविवार, मार्च 28, 2021 को

होलिका दहन मुहूर्त – 06:37 पी एम से 08:56 पी एम

अवधि – 02 घण्टे 20 मिनट्स

भद्रा पूँछ – 10:13 ए एम से 11:16 ए एम

भद्रा मुख – 11:16 ए एम से 01:00 पी एम

होलिका दहन प्रदोष के दौरान उदय व्यापिनी पूर्णिमा के साथ

पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ – मार्च 28, 2021 को 03:27 ए एम बजे

पूर्णिमा तिथि समाप्त – मार्च 29, 2021 को 12:17 ए एम बजे


होलिका दहन की कहानी पुराणों में होली से जुड़ी एक कहानी है, जो बहुत ही रोचक है. एक असुर राजा हिरण्यकश्यप चाहता था कि हर कोई उसकी पूजा करे. लेकिन उसका पुत्र प्रह्लाद राजा के शत्रु भगवान नारायण का भक्त था और उससे छुटकारा पाने के लिए क्रोधित राजा चाहता था कि उसकी बहन होलिका यह काम करे. आग का सामना करने के लिए तैयार, होलिका एक जलती हुई चिता पर प्रह्लाद को अपनी गोद में लिये बैठी. लेकिन प्रह्लाद के बजाय होलिका आग में जल गयी और प्रह्लाद बिना कोई नुकसान आग से बाहर आ गया


हिरण्यकश्यप उसका प्रतीक है, जो स्थूल है. प्रह्लाद मासूमियत, विश्वास और आनंद का प्रतीक है. भावना केवल प्रेम तक सीमित नहीं रह सकती. व्यक्तिगत जीवात्मा हमेशा के लिए भौतिकता से बाध्य नहीं रह सकती. अंततः नारायण जो एक का उच्च स्वर है, उसकी ओर बढ़ना स्वाभाविक है.


होलिका गत जीवन के बोझों का प्रतीक है, जिसने प्रह्लाद की मासूमियत को जलाने की कोशिश की. लेकिन नारायण भक्ति में गहराई से निहित प्रह्लाद की रक्षा करते हैं.


जो भक्ति में गहरा है, उसके लिए खुशी नये रंगों के साथ बहती है और जीवन एक उत्सव बन जाता है. अतीत को जलाते हुए आप एक नयी शुरुआत के लिए तैयार होते हैं. आपकी भावनाएं, आग की तरह आपको जलाती हैं, लेकिन जब वे रंगों के फव्वारे होती हैं, तो वे आपके जीवन में आकर्षण जोड़ती हैं. अज्ञानता में भावनाएं आपको परेशान करती हैं, ज्ञान में वही भावनाएं आपके जीवन में रंग जोड़ती हैं.


होली की तरह जीवन भी रंगीन होना चाहिए, उबाऊ नहीं. जब प्रत्येक रंग को स्पष्ट रूप से देखा जाता है, तो वह रंगीन होता है. सभी रंगों का मिश्रण काला रंग बनता है. इसी तरह, जीवन में भी हम सभी विभिन्न भूमिकाएं निभाते हैं.


प्रत्येक भूमिका और भावना को स्पष्ट रूप से परिभाषित करने की आवश्यकता है. भावनात्मक भ्रम से समस्याएं पैदा होती हैं. जब आप एक पिता हैं, तो आपको एक पिता की भूमिका निभानी होगी. आप कार्यालय में पिता नहीं हो सकते. जब आप अपने जीवन में भूमिकाओं को मिलाते हैं, तो आप गलतियां करने लगते हैं. जीवन में आप जो भी भूमिका निभाते हैं, अपने आप को पूरी तरह से उसके लिए दे दें.


जीवन में आपको जो भी आनंद का अनुभव होता है, वह आपके स्वयं की गहराई से होता है, जब आप उन सब को छोड़ देते हैं. जो आपने पकड़ रखा है और उस जगह में स्थिर या शांत हो जाते हैं, उसे ध्यान कहते हैं.


ध्यान कोई कृत्य नहीं है, यह कुछ न करने की कला है. ध्यान, बाकी गहरी नींद की तुलना में सबसे ज्यादा गहरा विश्राम देनेवाला है, क्योंकि ध्यान में आप सभी इच्छाओं को पार करते हैं. यह मस्तिष्क में शीतलता लाता है और शरीर-मन के भवन की पूरी मरम्मत करता है.


उत्सव आत्मा का स्वभाव है और मौन से निकला उत्सव सच्चा उत्सव है. यदि पवित्रता किसी उत्सव से जुड़ जाती है, तो वह परिपूर्ण हो जाती है, सिर्फ शरीर और मन ही नहीं, बल्कि आत्मा भी उत्सव मनाती है.