BRICS Summit / BRICS से भारत को कितना फायदा, इस बार सबकी नजरें PM मोदी पर क्यों?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 16वें ब्रिक्स सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए रूस जा रहे हैं। 22-23 अक्टूबर को कजान में होने वाले इस सम्मेलन की अध्यक्षता रूस करेगा। ब्रिक्स का यह सम्मेलन महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि यह पिछले साल ब्रिक्स के विस्तार के बाद पहली बार आयोजित हो रहा है।

Vikrant Shekhawat : Oct 21, 2024, 03:59 PM
BRICS Summit: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस साल दूसरी बार रूस का दौरा कर रहे हैं, जहां वह 16वें ब्रिक्स (BRICS) सम्मेलन में हिस्सा लेंगे। यह सम्मेलन 22 और 23 अक्तूबर को रूस के तातारस्तान की राजधानी कजान में वोल्गा नदी के किनारे आयोजित किया जाएगा। इस साल का सम्मेलन इसलिए खास है क्योंकि यह पिछले साल ब्रिक्स के विस्तार के बाद होने वाला पहला सम्मेलन है, जिसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है। आइए जानते हैं कि ब्रिक्स क्या है और भारत के लिए इसकी क्या अहमियत है।

ब्रिक्स का गठन: एक वैश्विक मंच की शुरुआत

ब्रिक्स एक अंतर-सरकारी अनौपचारिक संगठन है, जिसमें ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका शामिल हैं। इसकी शुरुआत साल 2009 में रूस की पहल पर BRIC के रूप में हुई थी, जिसमें दक्षिण अफ्रीका शामिल नहीं था। 2010 में दक्षिण अफ्रीका की सदस्यता के बाद इसे "ब्रिक्स" कहा जाने लगा। ब्रिक्स सम्मेलन का आयोजन हर साल होता है, और इसके सदस्य देशों के राष्ट्राध्यक्ष इसमें हिस्सा लेते हैं।

पिछले साल ब्रिक्स सम्मेलन दक्षिण अफ्रीका के जोहानिसबर्ग में हुआ था, जिसमें मिस्र, ईरान, इथियोपिया और संयुक्त अरब अमीरात को नई सदस्यता दी गई थी। इसके बाद, कजान में आयोजित होने वाला यह सम्मेलन और भी अहम हो गया है।

BRICS के उद्देश्य

BRICS शब्द की उत्पत्ति 2001 में गोल्डमैन सैक्स के विश्लेषक जिम-ओ नील द्वारा की गई थी, जिन्होंने ब्राजील, रूस, इंडिया और चीन की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं को ध्यान में रखते हुए यह नाम दिया था। ब्रिक्स का मुख्य उद्देश्य विकासशील देशों के बीच आपसी आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देना है, ताकि पश्चिमी देशों की नीतियों का प्रभुत्व कम हो सके और विकासशील देशों की आवाज को अंतरराष्ट्रीय मंच पर जगह मिल सके।

इस संगठन का एक और मकसद यह है कि यह एक ऐसा वैश्विक मंच हो जहां सदस्य देश आपसी राजनीतिक और सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत कर सकें और एक-दूसरे के हितों की रक्षा कर सकें। सीधा कहें तो ब्रिक्स का लक्ष्य अमेरिका और पश्चिमी देशों के आधिपत्य वाली वैश्विक व्यवस्था को चुनौती देना है, हालांकि यह किसी देश के खिलाफ नहीं है बल्कि विकासशील देशों के लिए एक सशक्त मंच है।

ब्रिक्स की वैश्विक ताकत

ब्रिक्स की सामूहिक ताकत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसके सदस्य देश दुनिया के कुल तेल उत्पादन का 44 प्रतिशत हिस्सा करते हैं। नए सदस्यों के जुड़ने के बाद ब्रिक्स की कुल जनसंख्या 3.5 बिलियन हो गई है, जो दुनिया की कुल आबादी का लगभग 45 प्रतिशत है। इसके सदस्य देशों की संयुक्त अर्थव्यवस्था 28.5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से भी अधिक है, जो वैश्विक अर्थव्यवस्था का 28 प्रतिशत है।

ब्रिक्स का लक्ष्य अंतरराष्ट्रीय व्यापार में एक ऐसा बहुपक्षीय व्यापारिक सिस्टम विकसित करना है जो खुला, पारदर्शी और नियम आधारित हो। यह समूह अमेरिकी डॉलर के प्रभुत्व को कम करना चाहता है, और सदस्य देशों के बीच व्यापार में उनकी अपनी-अपनी मुद्राओं का उपयोग बढ़ाने पर जोर देता है। हालांकि, अब तक ब्रिक्स की साझा मुद्रा पर कोई ठोस निर्णय नहीं हो पाया है।

भारत के लिए BRICS की अहमियत

भारत लंबे समय से ब्रिक्स जैसे संगठनों के प्रति प्रतिबद्ध रहा है, और यह एक बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था का समर्थक है, जहां पश्चिमी देशों का वर्चस्व न हो। भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भी ब्रिक्स के मंच से यह स्पष्ट संदेश दिया है कि दुनिया अब बहुध्रुवीय हो गई है और इसे पुराने नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए।

भारत के लिए ब्रिक्स एक ऐसा मंच है जो उसे वैश्विक स्तर पर अपनी आवाज उठाने का अवसर देता है। इसके जरिए भारत खुद को वैश्विक साउथ की आवाज के रूप में स्थापित कर रहा है।

ब्रिक्स सम्मेलन में भारत की भूमिका

इस बार के ब्रिक्स सम्मेलन में दुनिया की नजरें भारत पर टिकी हुई हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते अमेरिका और यूरोप ने रूस पर प्रतिबंध लगाए हैं, लेकिन रूस और भारत की दोस्ती किसी से छिपी नहीं है। वहीं, चीन और अमेरिका के बीच तनातनी बनी हुई है, जबकि रूस और चीन आपस में काफी करीब हैं। ऐसे में अमेरिका और यूरोप चाहते हैं कि भारत रूस के खिलाफ खड़ा हो, लेकिन भारत अपनी स्वतंत्र नीति के लिए जाना जाता है।

ब्रिक्स सम्मेलन में भारत रूस और चीन के साथ अपने मुद्दों को खुलकर उठा सकता है। खासकर चीन के साथ संबंधों को लेकर भारत अपनी स्थिति स्पष्ट कर सकता है। यदि चीन अपनी आक्रामकता से पीछे हटे, तो इस सम्मेलन से भारत और चीन दोनों के लिए फायदे की स्थिति बन सकती है।

इस प्रकार, ब्रिक्स भारत के लिए न केवल आर्थिक बल्कि रणनीतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है।