Vikrant Shekhawat : Jul 09, 2020, 07:43 AM
जीण माता राजस्थान के सीकर जिले में स्थित एक गांव का नाम है। सीकर से जीण माता गांव 29 किमी दूर है। यहीं पर प्राचीन जीण माता मंदिर है। माता रानी का ये मंदिर हजाराें साल पुराना बताया जाता है। नवरात्र में यहां जीणमाता के दर्शन करने के लिए लाखाें भक्त आते हैं। जीण माता के मंदिर के पास ही पहाड़ की चाेटी पर उनके भार्इ हर्ष भैरव नाथ का मंदिर है।
जीण माता का वास्तविक नाम जयंती माता:
जीण माता का वास्तविक नाम जयंती माता बताया जाता है। माना जाता है कि माता दुर्गा की अवतार है। जीण माता शेखावाटी के यादव, पंडित, राजपूत, अग्रवाल, जांगिड़ आैर मीणा जाति के लाेगाें की कुलदेवी हैं। बड़ी संख्या में जीणमाता के अनुयायी काेलकाता में भी रहते हैं जाे कि माता रानी के दर्शन के लिए आते रहते हैं। जीण माता के मंदिर में बच्चाें के जड़ूले कराने के लिए भी भारी तादाद में भक्तगण आते हैं।मंदिर काे तोड़ना चाहता था मुगल सम्राट औरंगजेब:
लाेक मान्यता के अनुसार, मुगल सम्राट औरंगजेब ने जीण माता आैर भैराे जी के मंदिर काे तोड़ना चाहता था। लेकिन उसके मंसूबे पूरे नहीं हाे सके। आैरंगजेब ने मंदिर को तोड़ने के लिए अपने सैनिकों को भेजा। इस बात का पता चलने पर स्थानीय लाेग जीणमाता से प्रार्थना करने लगे। इसके बाद जीणमाता ने अपना चमत्कार दिखाया। मधुमक्खियों के एक झुंड ने मुगल सेना पर टूट पड़ा। मधुमक्खियों के काटने से सेना भाग गई। कहा जाता है कि खुद आैरंगजेब की हालत बहुत गंभीर हो गई तब बादशाह ने अपनी गलती मानकर माता को अखंड ज्योज जलाने का वचन दिया। इसके बाद औरंगजेब की सेहत में सुधार होने लगा। कहा जाता है कि बादशाह ने कई सालों तक तेल दिल्ली से भेजा। फिर जयपुर से भेजा जाने लगा। औरंगजेब के बाद भी यह परंपरा जारी रही और जयपुर के महाराजा ने इस तेल को मासिक के बजाय वर्ष में दो बार नवरात्र के समय भिजवाना शुरू कर दिया।
राजपूत परिवार में हुआ था जीणमाता का जन्म:
माना जाता है कि जीण माता का जन्म चौहान वंश के राजपूत परिवार में हुआ था। वह अपने भाई से बहुत स्नेह करती थीं। माता जीण अपनी भाभी के साथ तालाब से पानी लेने गई। पानी लेते समय भाभी और ननद में इस बात को लेकर झगड़ा शुरू हो गया कि हर्ष किसे ज्यादा स्नेह करता है। इस बात को लेकर दोनों में यह निश्चय हुआ कि हर्ष जिसके सिर से पानी का मटका पहले उतारेगा वही उसका अधिक प्रिय होगा। भाभी और ननद दोनों मटका लेकर घर पहुंची, लेकिन हर्ष ने पहले अपनी पत्नी के सिर से पानी का मटका उतारा। इससे जीणमाता नाराज हो गई आैर वह आरावली के काजल शिखर पर पहुंच कर तपस्या करने लगीं। तपस्या के प्रभाव से यहीं जीण माता का वास हो गया। अभी तक हर्ष इस विवाद से अनभिज्ञ था। इस शर्त के बारे में जब उन्हें पता चला तो वह अपनी बहन की नाराजगी को दूर करने उन्हें मनाने काजल शिखर पर पहुंचे और अपनी बहन को घर चलने के लिए कहा लेकिन माता ने घर जाने से मना कर दिया। बहन को वहां पर देख हर्ष भी पहाड़ी पर भैरो की तपस्या करने लगे और उन्होंने भैरो पद प्राप्त कर लिया।
जीण माता से 26 किलाेमीटर दूर खाटू श्याम जी मंदिर:
सीकर जिले का एक आैर प्रसिद्घ श्री खाटू श्याम जी मंदिर यहां ये 26 किलाेमीटर दूर है।
जीण माता का वास्तविक नाम जयंती माता:
जीण माता का वास्तविक नाम जयंती माता बताया जाता है। माना जाता है कि माता दुर्गा की अवतार है। जीण माता शेखावाटी के यादव, पंडित, राजपूत, अग्रवाल, जांगिड़ आैर मीणा जाति के लाेगाें की कुलदेवी हैं। बड़ी संख्या में जीणमाता के अनुयायी काेलकाता में भी रहते हैं जाे कि माता रानी के दर्शन के लिए आते रहते हैं। जीण माता के मंदिर में बच्चाें के जड़ूले कराने के लिए भी भारी तादाद में भक्तगण आते हैं।मंदिर काे तोड़ना चाहता था मुगल सम्राट औरंगजेब:
लाेक मान्यता के अनुसार, मुगल सम्राट औरंगजेब ने जीण माता आैर भैराे जी के मंदिर काे तोड़ना चाहता था। लेकिन उसके मंसूबे पूरे नहीं हाे सके। आैरंगजेब ने मंदिर को तोड़ने के लिए अपने सैनिकों को भेजा। इस बात का पता चलने पर स्थानीय लाेग जीणमाता से प्रार्थना करने लगे। इसके बाद जीणमाता ने अपना चमत्कार दिखाया। मधुमक्खियों के एक झुंड ने मुगल सेना पर टूट पड़ा। मधुमक्खियों के काटने से सेना भाग गई। कहा जाता है कि खुद आैरंगजेब की हालत बहुत गंभीर हो गई तब बादशाह ने अपनी गलती मानकर माता को अखंड ज्योज जलाने का वचन दिया। इसके बाद औरंगजेब की सेहत में सुधार होने लगा। कहा जाता है कि बादशाह ने कई सालों तक तेल दिल्ली से भेजा। फिर जयपुर से भेजा जाने लगा। औरंगजेब के बाद भी यह परंपरा जारी रही और जयपुर के महाराजा ने इस तेल को मासिक के बजाय वर्ष में दो बार नवरात्र के समय भिजवाना शुरू कर दिया।
राजपूत परिवार में हुआ था जीणमाता का जन्म:
माना जाता है कि जीण माता का जन्म चौहान वंश के राजपूत परिवार में हुआ था। वह अपने भाई से बहुत स्नेह करती थीं। माता जीण अपनी भाभी के साथ तालाब से पानी लेने गई। पानी लेते समय भाभी और ननद में इस बात को लेकर झगड़ा शुरू हो गया कि हर्ष किसे ज्यादा स्नेह करता है। इस बात को लेकर दोनों में यह निश्चय हुआ कि हर्ष जिसके सिर से पानी का मटका पहले उतारेगा वही उसका अधिक प्रिय होगा। भाभी और ननद दोनों मटका लेकर घर पहुंची, लेकिन हर्ष ने पहले अपनी पत्नी के सिर से पानी का मटका उतारा। इससे जीणमाता नाराज हो गई आैर वह आरावली के काजल शिखर पर पहुंच कर तपस्या करने लगीं। तपस्या के प्रभाव से यहीं जीण माता का वास हो गया। अभी तक हर्ष इस विवाद से अनभिज्ञ था। इस शर्त के बारे में जब उन्हें पता चला तो वह अपनी बहन की नाराजगी को दूर करने उन्हें मनाने काजल शिखर पर पहुंचे और अपनी बहन को घर चलने के लिए कहा लेकिन माता ने घर जाने से मना कर दिया। बहन को वहां पर देख हर्ष भी पहाड़ी पर भैरो की तपस्या करने लगे और उन्होंने भैरो पद प्राप्त कर लिया।
जीण माता से 26 किलाेमीटर दूर खाटू श्याम जी मंदिर:
सीकर जिले का एक आैर प्रसिद्घ श्री खाटू श्याम जी मंदिर यहां ये 26 किलाेमीटर दूर है।