News18 : May 22, 2020, 12:37 PM
कर्नाटक: दुनियाभर के डॉक्टर्स बर्बादी फैला रहे कोरोना वायरस (Coronavirus) के इलाज में अलग-अलग दवाइयों और थेरैपी का इस्तेमाल कर रहे हैं। भारत में कुछ समय पहले कोरोना के गंभीर मरीजों के इलाज में प्लाज्मा थेरैपी के क्लीनिकल ट्रायल को मंजूरी दी गई थी। इसके बाद कर्नाटक (Karnataka) और दिल्ली (Delhi) समेत कुछ राज्यों में प्लाज्मा थेरैपी की मदद से कई मरीजों को बचाया गया। वहीं, अब स्वास्थ्य महानिदेशालय (DGHC) ने कोविड-19 के इलाज में साइटोकाइन थेरैपी (Cytokine Therapy) के ट्रायल को मंजूरी दे दी है।
साइटोकाइन थेरैपी की सबसे अहम खासियत ये है कि इसका इस्तेमाल संक्रमण की शुरुआत (Early Stage) होने पर सामने आने वाले मामूली लक्षणों के दौरान ही किया जा सकता है। यानी इसके इस्तेमाल के लिए मरीज की हालत खराब होने का इंतजार करने की जरूरत नहीं है। आइए जानते हैं कि साइटोकाइन थेरैपी क्या है और इसका इस्तेमाल कैसे किया जाता है?कब कोरोना मरीजों के इलाज में होने लगेगा इस्तेमालस्वास्थ्य महानिदेशालय ने कर्नाटक में बेंगलुरु के एचसीजी कैंसर हॉस्पिटल को न्यू ड्रग्स एंड क्लीनिकल ट्रायल रूल्स, 2019 के तहत साइटोकाइन थेरैपी के ट्रायल की अनुमति दी है। दरअसल, कर्नाटक में कोरोना वायरस के कारण होने वाली मौतों को सीमित करने के लिए स्वास्थ्य अधिकारी काफी समय से साइटोकाइन थेरैपी के जरिये इलाज करने की कवायद शुरू कर चुके थे।अगर सभी चरण के परीक्षण पूरी तरह से सफल रहे तो साइटोकाइन थेरैपी को कोविड-19 के मरीजों के इलाज के तौर पर जून में कभी भी पेश कर दिया जाएगा।हॉस्पिटल को इससे पहले प्लाज्मा थेरैपी (Plasma Therapy) के जरिये कोरोना मरीजों के इलाज की भी मंजूरी मिल चुकी है। इस समय साइटोकाइन थेरैपी को लेकर सेफ्टी ट्रायल्स (Safety Trials) के पहले पहले चरण के परीक्षण जारी हैं। उम्मीद की जा रही है कि अगर सभी चरण के परीक्षण पूरी तरह से सफल रहे तो इस थेरैपी को कोविड-19 के मरीजों के इलाज के तौर पर जून में कभी भी पेश कर दिया जाएगा।शुरुआती लक्षणों के साथ ही थेरैपी का इस्तेमाल क्योंसाइटोकाइन थेरैपी का इस्तेमाल उन बुजुर्ग मरीजों पर किया जाएगा, जिनमें संक्रमण की पहचान शुरुआती लक्षणों के साथ ही कर ली गई हो। कर्नाटक में अब तक हुईं 41 मौतों में 26 कोरोना मरीज 60 साल से ज्यादा उम्र के थे। इंटरनेशनल स्टेेमसेल सर्विसेस और एचसीजी हॉस्पिटल्स की साझा पहल आईक्रेस्ट (iCREST) के डायरेक्टर डॉ। गुरुराज ने कहा कि इस थेरैपी के जरिये हम कोविड-19 के बुजुर्ग मरीजों के शरीर में संक्रमण फैलने से पहले ही उनकी रोगप्रतिरोधी क्षमता में इजाफा कर मुकाबले के लिए तैयार कर देना चाहते हैं।डॉ। गुरुराज ने कहा कि अगर इस थेरैपी का इस्तेमाल मरीज की हालत खराब होने पर किया जाएगा तो इम्यून सिस्टम ओवरएक्टिव हो सकता है। इम्यून सिस्टम के ओवर-रिएक्शन के कारण मरीज के अंदरूनी अंगों में बहुत ज्यादा सूजन, निमोनिया या दूसरी समस्याएं पैदा हो सकती हैं। इससे हालात बद से बदतर हो सकते हैं। इसलिए इस थेरैपी का इस्तेमाल संक्रमण के शुरुआती लक्षण सामने आते ही करना जरूरी है।साइटोकाइन थेरैपी के जरिये इलाज में साइटोकाइंस को इंटरमस्क्युलर इंजेक्ट किया जाता है। इससे मरीज की रोग प्रतिरोधी क्षमता में सुधार होने लगता है।कैसे किया जाता है साइटोकाइन थेरैपी का इस्तेमालकैंसर विशेषज्ञ डॉ। विशाल राव ने मार्च के आखिरी सप्ताह में ही दावा किया था कि वह कोविड-19 के इलाज पर काम कर रहे हैं। उसी समय उन्होंने साइटोकाइल थेरैपी का जिक्र भी किया था। उन्होंने बताया था कि किसी भी तरह के संक्रमण के जवाब में मरीज का इम्यून सिस्टम खास प्रोटीन बनाना शुरू कर देता है, जिन्हें साइटोकाइंस कहते हैं। मानव शरीर किसी भी वायरस को मारने के लिए इंटरफेरॉन केमेकिल रिलीज करता है, लेकिन कोविड-19 के मामले में सेल्स ऐसा नहीं कर पाती हैं। इससे कोरोना मरीज की रोग प्रतिरोधी क्षमता कमजोर होने लगती है।इसका सीधा मतलब है कि इंटरफेरॉन कोविड-19 के इलाज में प्रभावी हो सकते हैं। इस तकनीक के जरिये इलाज में साइटोकाइंस को इंटरमस्क्युलर इंजेक्ट किया जाता है। इससे मरीज की रोग प्रतिरोधी क्षमता में सुधार होने लगता है और उसका शरीर कोरोना वायरस से मुकाबला करना शुरू कर देता है। डॉ। राव ने कहा कि हम कोरोना वायरस को संक्रमण के शुरुआती चरण में ही खत्म करने की कोशिश कर रहे हैं। इसे हम कोरोना वायरस के कारण कमजोर हो रही रोग प्रतिरोधी क्षमता का साइटोकाइन थेरैपी की मदद से संतुलन बनाना भी कह सकते हैं।
साइटोकाइन थेरैपी की सबसे अहम खासियत ये है कि इसका इस्तेमाल संक्रमण की शुरुआत (Early Stage) होने पर सामने आने वाले मामूली लक्षणों के दौरान ही किया जा सकता है। यानी इसके इस्तेमाल के लिए मरीज की हालत खराब होने का इंतजार करने की जरूरत नहीं है। आइए जानते हैं कि साइटोकाइन थेरैपी क्या है और इसका इस्तेमाल कैसे किया जाता है?कब कोरोना मरीजों के इलाज में होने लगेगा इस्तेमालस्वास्थ्य महानिदेशालय ने कर्नाटक में बेंगलुरु के एचसीजी कैंसर हॉस्पिटल को न्यू ड्रग्स एंड क्लीनिकल ट्रायल रूल्स, 2019 के तहत साइटोकाइन थेरैपी के ट्रायल की अनुमति दी है। दरअसल, कर्नाटक में कोरोना वायरस के कारण होने वाली मौतों को सीमित करने के लिए स्वास्थ्य अधिकारी काफी समय से साइटोकाइन थेरैपी के जरिये इलाज करने की कवायद शुरू कर चुके थे।अगर सभी चरण के परीक्षण पूरी तरह से सफल रहे तो साइटोकाइन थेरैपी को कोविड-19 के मरीजों के इलाज के तौर पर जून में कभी भी पेश कर दिया जाएगा।हॉस्पिटल को इससे पहले प्लाज्मा थेरैपी (Plasma Therapy) के जरिये कोरोना मरीजों के इलाज की भी मंजूरी मिल चुकी है। इस समय साइटोकाइन थेरैपी को लेकर सेफ्टी ट्रायल्स (Safety Trials) के पहले पहले चरण के परीक्षण जारी हैं। उम्मीद की जा रही है कि अगर सभी चरण के परीक्षण पूरी तरह से सफल रहे तो इस थेरैपी को कोविड-19 के मरीजों के इलाज के तौर पर जून में कभी भी पेश कर दिया जाएगा।शुरुआती लक्षणों के साथ ही थेरैपी का इस्तेमाल क्योंसाइटोकाइन थेरैपी का इस्तेमाल उन बुजुर्ग मरीजों पर किया जाएगा, जिनमें संक्रमण की पहचान शुरुआती लक्षणों के साथ ही कर ली गई हो। कर्नाटक में अब तक हुईं 41 मौतों में 26 कोरोना मरीज 60 साल से ज्यादा उम्र के थे। इंटरनेशनल स्टेेमसेल सर्विसेस और एचसीजी हॉस्पिटल्स की साझा पहल आईक्रेस्ट (iCREST) के डायरेक्टर डॉ। गुरुराज ने कहा कि इस थेरैपी के जरिये हम कोविड-19 के बुजुर्ग मरीजों के शरीर में संक्रमण फैलने से पहले ही उनकी रोगप्रतिरोधी क्षमता में इजाफा कर मुकाबले के लिए तैयार कर देना चाहते हैं।डॉ। गुरुराज ने कहा कि अगर इस थेरैपी का इस्तेमाल मरीज की हालत खराब होने पर किया जाएगा तो इम्यून सिस्टम ओवरएक्टिव हो सकता है। इम्यून सिस्टम के ओवर-रिएक्शन के कारण मरीज के अंदरूनी अंगों में बहुत ज्यादा सूजन, निमोनिया या दूसरी समस्याएं पैदा हो सकती हैं। इससे हालात बद से बदतर हो सकते हैं। इसलिए इस थेरैपी का इस्तेमाल संक्रमण के शुरुआती लक्षण सामने आते ही करना जरूरी है।साइटोकाइन थेरैपी के जरिये इलाज में साइटोकाइंस को इंटरमस्क्युलर इंजेक्ट किया जाता है। इससे मरीज की रोग प्रतिरोधी क्षमता में सुधार होने लगता है।कैसे किया जाता है साइटोकाइन थेरैपी का इस्तेमालकैंसर विशेषज्ञ डॉ। विशाल राव ने मार्च के आखिरी सप्ताह में ही दावा किया था कि वह कोविड-19 के इलाज पर काम कर रहे हैं। उसी समय उन्होंने साइटोकाइल थेरैपी का जिक्र भी किया था। उन्होंने बताया था कि किसी भी तरह के संक्रमण के जवाब में मरीज का इम्यून सिस्टम खास प्रोटीन बनाना शुरू कर देता है, जिन्हें साइटोकाइंस कहते हैं। मानव शरीर किसी भी वायरस को मारने के लिए इंटरफेरॉन केमेकिल रिलीज करता है, लेकिन कोविड-19 के मामले में सेल्स ऐसा नहीं कर पाती हैं। इससे कोरोना मरीज की रोग प्रतिरोधी क्षमता कमजोर होने लगती है।इसका सीधा मतलब है कि इंटरफेरॉन कोविड-19 के इलाज में प्रभावी हो सकते हैं। इस तकनीक के जरिये इलाज में साइटोकाइंस को इंटरमस्क्युलर इंजेक्ट किया जाता है। इससे मरीज की रोग प्रतिरोधी क्षमता में सुधार होने लगता है और उसका शरीर कोरोना वायरस से मुकाबला करना शुरू कर देता है। डॉ। राव ने कहा कि हम कोरोना वायरस को संक्रमण के शुरुआती चरण में ही खत्म करने की कोशिश कर रहे हैं। इसे हम कोरोना वायरस के कारण कमजोर हो रही रोग प्रतिरोधी क्षमता का साइटोकाइन थेरैपी की मदद से संतुलन बनाना भी कह सकते हैं।