News18 : Aug 22, 2020, 08:15 AM
नई दिल्ली। कोरोना वायरस के खौफ के बीच जो सबसे ज्यादा तेजी से लोगों के पास पहुंचा वह था मास्क। देश में छह महीने पहले तक गारमेंट की दुकानों से लेकर लोगों के वार्डरोब और अलमारियों से दूर रहा मास्क अचानक ही सबसे जरूरी चीज में शामिल हो गया। इसकी जरूरत बीमारी से बचाव के अलावा तब और भी ज्यादा बढ़ गई जब मास्क न पहनना लोगों के लिए जुर्माने और सजा का कारण बन गया।
कोरोना से बचाव के लिए जरूरी माने गए मास्क को लेकर न केवल केंद्र सरकार ने लोगों से अपील की बल्कि राज्य सरकारों ने मास्क न पहनने पर जुर्माना लगाने का प्रावधान कर दिया। सबसे भारी-भरकम जुर्माना मास्क को लेकर झारखंड सरकार ने लगाया। झारखंड में सार्वजनिक रूप से मास्क न पहनने पर एक लाख रुपये जुर्माने का प्रावधान किया गया। वहीं दो साल की सजा का भी ऐलान किया गया।इसके साथ ही यूपी सरकार ने सार्वजनिक रूप से मास्क न पहनने पर 100 रुपये के जुर्माने की घोषणा की। उसके बाद जुलाई में इसे बढ़ाकर 500 रुपये कर दिया। वहीं उत्तराखंड सरकार ने मास्क को लेकर 200 रुपये चालान काटने का आदेश दिया। हालांकि पहली बार में 200 रुपये के बाद तीसरी बार में एक हजार रुपये का जुर्माना लगाने का आदेश दिया ताकि लोग मास्क को लेकर लापरवाही न बरतें। गुजरात में भी बिना मास्क पहने पकड़े जाने पर एक हजार रुपये के जुर्माने का आदेश दिया गया।भारी मांग और जरूरत ने बाजार को मौका दिया और कारोबारियों ने मास्क को हाथों हाथ लिया। नतीजा यह हुआ कि बड़ी कंपनियों से लेकर घरों तक में मास्क बनाने का काम चल पड़ा और छह महीने में ही मास्क का विदेशों में निर्यात होने लगा। इतना ही नहीं जानकारों का मानना है कि आने वाले दिनों में सिर्फ मास्क का ही कारोबार (Face Mask Industry) 20,000 करोड़ रुपये तक पहुंच जाएगा। आज बाजार में 10 रुपये से लेकर 1000 रुपये से ज्यादा कीमत के साधारण से लेकर डिजायनर मास्क मौजूद हैं।भारत में मास्क बनाने में जुट गईं बड़ी सरकारी और निजी कंपनियांकोरोना आने से पहले तक अन्य उत्पादों के लिए जानी जाने वाली सरकारी और निजी कंपनियां अब फेस मास्क बना रही हैं। इन कंपनियों की ओर से कहा गया है कि देश में मास्क की जरूरत को देखते हुए उन्होंने स्थानीय स्तर पर मास्क निर्माण करने का फैसला किया है और इस पर तेजी से काम भी चल रहा है।हाल ही में एम एंड एम, मारुति सुजुकी, टाटा मोटर्स आदि कोरोना से संबंधित उत्पाद बना रही हैं। वहीं रिलायंस कंपनी एक लाख मास्क रोजाना तैयार कर रही है। कुछ ऐसी कंपनियां जिनका भारत में काफी बिजनेस है जैसे एडिडास (Adidas), डनलप (Dunlop) समेत कई नामी कंपनियां आजकल मास्क बना रही हैं। भारत की कई बड़ी टैक्सटाइल कंपनियां और गारमेंट फैक्ट्रियां मास्क बनाने का काम कर रही हैं।डनलप ब्रांड (Dunlop Brand) नाम से गद्दों का कारोबार करने वाले और टायर के लिए मशहूर इस कंपनी ने एन-95 मास्क का निर्माण शुरू किया है। वहीं खेल का सामान, जूते और कपड़े बनाने वाली जर्मन कम्पनी Adidas ने फेस कवर बनाए हैं। एडिडास ने तीन तरह के फेस कवर लांच किए हैं।हाल ही में यूपी के गाजियाबाद में ही मास्क बनाने वाली 32 फैक्ट्रियां शुरू की गई है। जबकि कोरोना से पहले सिर्फ तीन फैक्ट्रियों में ही मास्क बनाने का काम होता था और इतनी बड़ी मात्रा में भी नहीं होता था।जब एन-95 मास्क को लेकर मची मारामारी और फिर एक बयान से बदल गया सब।।।कोरोना को रोकने के लिए सर्जिकल मास्क के साथ ही एंटी माइक्रो बैक्टीरियल एन 95 मास्क का चलन बढ़ा। फ्रंटलाइन कोरोना वॉरियर्स या कोविड स्टाफ के लिए उपयोगी बताए गए इस मास्क को लेकर आम लोगों की आपाधापी बढ़ गई। एक समय ऐसा आया कि एन-95 मास्क की बाजार में कमी पड़ गई। हर व्यक्ति इसी मास्क को खोजने लगा। बाजार के रुख को देखते हुए एकाएक कंपनियां मास्क बनाने के कारोबार में उतर गईं। कई बड़ी कंपनियों ने एन-95 मास्क बनाने की घोषणा कर दी।हालांकि डब्ल्यूएचओ की तरफ से आए बयान और फिर भारत सरकार स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की तरफ से सभी राज्यों को जारी एडवाइजरी में एन-95 मास्क को सुरक्षित न होने की बात कहने के बाद से इसकी मांग में अचानक कमी आ गई। जबकि बाजार में मिल रहे अन्य मास्क की बिक्री बढ़ गई। वहीं चिकित्सा सेवाओं में लगे लोगों ने रेस्पिरेटरी मास्क का उपयोग जारी रखा।
ये होता है एन-95 मास्कओकिनावा इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी ग्रेजुएट यूनिवर्सिटी के एक रिसर्च पेपर के अनुसार साधारण फेस मास्क एक ट्रिपल लेयर फिल्टरेशन प्रिंसिपल पर काम करता है। हालांकि कपड़ों के लेयर में दिए गए छेद इतने छोटे होते हैं कि लोगों को सांस लेने में दिक्कत आ सकती है। जबकि N95 मास्क तीन तरह के प्रिंसिपल पर काम करता है। इसमें छह लेयर होती हैं। इस मास्क में हवा को फिल्टर करने की पर्याप्त क्षमता होती है। यह मास्क 0।3 माइक्रोन के डायमीटर वाले पार्टिकल को भी फिल्टर कर सकता है साथ ही, ये एलर्जेन्ट वायरस, बैक्टिरिया, डस्ट, ड्रॉपलेट्स और अन्य हानिकारक ऑयस बेस्ड पार्टिकल्स को फिल्टर कर सकता है।
कपड़े के मास्क को मिली हरी झंडी और घर-घर में बनने लगे मास्ककेंद्र सरकार की एडवाइजरी में कहा गया कि स्वास्थ्य महानिदेशालय ने स्वास्थ्य मंत्रालय की वेबसाइट पर होममेड मास्क को सुरक्षात्मक कवर के उपयोग के बारे में सलाह दी है। साथ ही कहा है कि रेस्पिरेटर एन -95 मास्क का उपयोग हानिकारक है क्योंकि यह वायरस को मास्क से बाहर निकलने से नहीं रोकता है। इसके बाद से ही कपड़े के मास्क बनाने का काम शुरू हो गया। न केवल घरों में मास्क बनने लगे बल्कि कई बड़ी टैक्सटाइल कंपनियों ने भी इनहाउस सैटअप का उपयोग करते हुए फैब्रिक के मास्क बनाना शुरू कर दिया। कपड़े के मास्क देशभर में बाजारों में बिकने के साथ ही इनका कई देशों में निर्यात भी किया गया। इस दौरान कपड़े के मास्क की कई डिजायनें भी बाजार में आईं।उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश सहित कई राज्यों में स्थानीय स्तर पर लोगों ने कपड़े के मास्क बैंक बनाए और लोगों में सार्वजनिक रूप से बांटे। वहीं सुलभ इंटरनेशनल जैसी संस्थाएं भी इसमें आगे आईं और वृंदावन की विधवाओं के साथ मिलकर कृष्ण भक्ति से जुड़े मास्क बनाए।
स्थानीय स्तर पर बने मास्क के कपड़े की जांच जरूरीगुरुग्राम में टैक्सटाइल कंपनी चला रहे विष्ण् शर्मा कहते हैं कि उनकी कंपनी ने लॉकडाउन में चैरिटी के लिए कपड़े के मास्क बनाए।चूंकि पहले से गारमेंट का काम था तो पूरा सैटअप था। साथ ही गारमेंट के लिए ही लेबोरेटरीज में जांच के बाद कपड़ा आया था। उसमें कोई खतरनाक कैमिकल नहीं था। ऐसे में मास्क बनाने में कोई दिक्कत नहीं आई। हालांकि कारीगरों की संख्या काफी कम रही।
उन्होंने कहा कि टैक्सटाइल कंपनियां पहले से कपड़े में मौजूद कैमिकल की जांच कराती हैं और पीएच वैल्यू तक का ध्यान रखती हैं लेकिन स्थानीय स्तर पर बन रहे मास्क के लिए कोई पैरामीटर नहीं है। लिहाजा इस पर ध्यान देने की जरूरत है।
खादी, कॉटन और रेजा फैब्रिक के मास्क की भारी मांगकपड़े के मास्क को बेहतर बताए जाने के बाद से कई फैशन डिजाइनर भी इस काम में जुट गए। दौरान रेजा फैब्रिक पर काम कर रहीं इकलौती फैशन डिजायनर ललिता ने बताया कि कॉटन, खादी और रेजा फैब्रिक के मास्क की भारी मांग बढ़ी है। उन्होंने खुद खादी और रेजा के मास्क बनाकर दक्षिण भारत के कई राज्यों में सप्लाई किए हैं। लॉकडाउन और उसके बाद से फैब्रिक का ज्यादातर काम मास्क पर ही हुआ है।
विशेषज्ञ बोले- स्वास्थ्य अपनी जगह है पर बाजार हमेशा अवसर देखता है।।ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के पूर्व निदेशक एमसी मिश्र कहते हैं कि कोरोना बीमारी के बाद से मास्क का बाजार में छा जाना इस बात का सबूत है कि बाजार हमेशा अवसर देखता है। आपने देखा होगा कि पहले सर्जिकल मास्क और एन-95 मास्क को लेकर मारामारी रही, फिर कपड़े के मास्क का कारोबार हुआ। इसके बाद कपड़ों की मैचिंग के डिजायनर मास्क आज बाजार में मौजूद हैं। इससे आगे भी कुछ हो सकता है। हालांकि स्वास्थ्य को लेकर बात करें तो मास्क संपर्क में आने वाले दोनों लोगों के लिए जरूरी है लेकिन उससे भी ज्यादा जरूरी है दूरी। अगर दूरी नहीं है तो आप मास्क पहनकर भी कोरोना की चपेट में आ जाएंगे। मास्क पहनना 100 फीसदी सुरक्षा की गारंटी नहीं है लेकिन सामाजिक दूरी इस बीमारी से खुद को बचाने का सटीक उपाय है। हालांकि मास्क काफी हद तक ड्रॉपलेट्स को दूसरे तक पहुंचने से रोकता है इसलिए जरूरी है।रही बात मास्क में दम घुटने की, परेशानी होने की तो यह मास्क पहनने के बाद स्वाभाविक है। इसके साथ ही एक जरूरी बात यह भी है कि एन-95 मास्क आम लोगों के लिए नहीं है यह समझना होगा। यह फ्रंटलाइन कोविड वॉरियर्स या हेल्थ वर्कर्स के लिए है। आम लोग साधारण कपड़े का मास्क लगाएं, यह बेहतर है। इससे उन्हें सांस संबंधी परेशानियां भी नहीं होंगी।
सुरक्षित नहीं है कोई भी मास्क, बचाव के लिए करें उपायइंद्रप्रस्थ अपोलो में रेस्पिरेटरी एवं क्रिटिकल केयर विभाग के डॉ। राजेश चावला कहते हैं कि अगर लोगों को लगता है कि वे मास्क पहनकर सेफ हैं तो ऐसा नहीं है। कोई भी मास्क 100 फीसदी सेफ नहीं है। हां लेकिन दूरी के साथ संपर्क में आने वाले दोनों लोग मास्क पहन रहे हैं तो इससे संक्रमण का खतरा बहुत हद तक कम हो जाता है। अगर अस्थमा या सांस की बीमारी नहीं है तो मास्क पहनने से दिक्कतें भी बहुत ज्यादा नहीं हैं। मास्क पहनकर व्यायाम करना, सीढ़ी चढ़ना या कोई शारीरिक मेहनत का काम करना खतरनाक है। मास्क पहनने से सामने वाला सुरक्षित हो सकता है, यह समझकर मास्क पहनना चाहिए।
कोरोना से बचाव के लिए जरूरी माने गए मास्क को लेकर न केवल केंद्र सरकार ने लोगों से अपील की बल्कि राज्य सरकारों ने मास्क न पहनने पर जुर्माना लगाने का प्रावधान कर दिया। सबसे भारी-भरकम जुर्माना मास्क को लेकर झारखंड सरकार ने लगाया। झारखंड में सार्वजनिक रूप से मास्क न पहनने पर एक लाख रुपये जुर्माने का प्रावधान किया गया। वहीं दो साल की सजा का भी ऐलान किया गया।इसके साथ ही यूपी सरकार ने सार्वजनिक रूप से मास्क न पहनने पर 100 रुपये के जुर्माने की घोषणा की। उसके बाद जुलाई में इसे बढ़ाकर 500 रुपये कर दिया। वहीं उत्तराखंड सरकार ने मास्क को लेकर 200 रुपये चालान काटने का आदेश दिया। हालांकि पहली बार में 200 रुपये के बाद तीसरी बार में एक हजार रुपये का जुर्माना लगाने का आदेश दिया ताकि लोग मास्क को लेकर लापरवाही न बरतें। गुजरात में भी बिना मास्क पहने पकड़े जाने पर एक हजार रुपये के जुर्माने का आदेश दिया गया।भारी मांग और जरूरत ने बाजार को मौका दिया और कारोबारियों ने मास्क को हाथों हाथ लिया। नतीजा यह हुआ कि बड़ी कंपनियों से लेकर घरों तक में मास्क बनाने का काम चल पड़ा और छह महीने में ही मास्क का विदेशों में निर्यात होने लगा। इतना ही नहीं जानकारों का मानना है कि आने वाले दिनों में सिर्फ मास्क का ही कारोबार (Face Mask Industry) 20,000 करोड़ रुपये तक पहुंच जाएगा। आज बाजार में 10 रुपये से लेकर 1000 रुपये से ज्यादा कीमत के साधारण से लेकर डिजायनर मास्क मौजूद हैं।भारत में मास्क बनाने में जुट गईं बड़ी सरकारी और निजी कंपनियांकोरोना आने से पहले तक अन्य उत्पादों के लिए जानी जाने वाली सरकारी और निजी कंपनियां अब फेस मास्क बना रही हैं। इन कंपनियों की ओर से कहा गया है कि देश में मास्क की जरूरत को देखते हुए उन्होंने स्थानीय स्तर पर मास्क निर्माण करने का फैसला किया है और इस पर तेजी से काम भी चल रहा है।हाल ही में एम एंड एम, मारुति सुजुकी, टाटा मोटर्स आदि कोरोना से संबंधित उत्पाद बना रही हैं। वहीं रिलायंस कंपनी एक लाख मास्क रोजाना तैयार कर रही है। कुछ ऐसी कंपनियां जिनका भारत में काफी बिजनेस है जैसे एडिडास (Adidas), डनलप (Dunlop) समेत कई नामी कंपनियां आजकल मास्क बना रही हैं। भारत की कई बड़ी टैक्सटाइल कंपनियां और गारमेंट फैक्ट्रियां मास्क बनाने का काम कर रही हैं।डनलप ब्रांड (Dunlop Brand) नाम से गद्दों का कारोबार करने वाले और टायर के लिए मशहूर इस कंपनी ने एन-95 मास्क का निर्माण शुरू किया है। वहीं खेल का सामान, जूते और कपड़े बनाने वाली जर्मन कम्पनी Adidas ने फेस कवर बनाए हैं। एडिडास ने तीन तरह के फेस कवर लांच किए हैं।हाल ही में यूपी के गाजियाबाद में ही मास्क बनाने वाली 32 फैक्ट्रियां शुरू की गई है। जबकि कोरोना से पहले सिर्फ तीन फैक्ट्रियों में ही मास्क बनाने का काम होता था और इतनी बड़ी मात्रा में भी नहीं होता था।जब एन-95 मास्क को लेकर मची मारामारी और फिर एक बयान से बदल गया सब।।।कोरोना को रोकने के लिए सर्जिकल मास्क के साथ ही एंटी माइक्रो बैक्टीरियल एन 95 मास्क का चलन बढ़ा। फ्रंटलाइन कोरोना वॉरियर्स या कोविड स्टाफ के लिए उपयोगी बताए गए इस मास्क को लेकर आम लोगों की आपाधापी बढ़ गई। एक समय ऐसा आया कि एन-95 मास्क की बाजार में कमी पड़ गई। हर व्यक्ति इसी मास्क को खोजने लगा। बाजार के रुख को देखते हुए एकाएक कंपनियां मास्क बनाने के कारोबार में उतर गईं। कई बड़ी कंपनियों ने एन-95 मास्क बनाने की घोषणा कर दी।हालांकि डब्ल्यूएचओ की तरफ से आए बयान और फिर भारत सरकार स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की तरफ से सभी राज्यों को जारी एडवाइजरी में एन-95 मास्क को सुरक्षित न होने की बात कहने के बाद से इसकी मांग में अचानक कमी आ गई। जबकि बाजार में मिल रहे अन्य मास्क की बिक्री बढ़ गई। वहीं चिकित्सा सेवाओं में लगे लोगों ने रेस्पिरेटरी मास्क का उपयोग जारी रखा।
ये होता है एन-95 मास्कओकिनावा इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी ग्रेजुएट यूनिवर्सिटी के एक रिसर्च पेपर के अनुसार साधारण फेस मास्क एक ट्रिपल लेयर फिल्टरेशन प्रिंसिपल पर काम करता है। हालांकि कपड़ों के लेयर में दिए गए छेद इतने छोटे होते हैं कि लोगों को सांस लेने में दिक्कत आ सकती है। जबकि N95 मास्क तीन तरह के प्रिंसिपल पर काम करता है। इसमें छह लेयर होती हैं। इस मास्क में हवा को फिल्टर करने की पर्याप्त क्षमता होती है। यह मास्क 0।3 माइक्रोन के डायमीटर वाले पार्टिकल को भी फिल्टर कर सकता है साथ ही, ये एलर्जेन्ट वायरस, बैक्टिरिया, डस्ट, ड्रॉपलेट्स और अन्य हानिकारक ऑयस बेस्ड पार्टिकल्स को फिल्टर कर सकता है।
कपड़े के मास्क को मिली हरी झंडी और घर-घर में बनने लगे मास्ककेंद्र सरकार की एडवाइजरी में कहा गया कि स्वास्थ्य महानिदेशालय ने स्वास्थ्य मंत्रालय की वेबसाइट पर होममेड मास्क को सुरक्षात्मक कवर के उपयोग के बारे में सलाह दी है। साथ ही कहा है कि रेस्पिरेटर एन -95 मास्क का उपयोग हानिकारक है क्योंकि यह वायरस को मास्क से बाहर निकलने से नहीं रोकता है। इसके बाद से ही कपड़े के मास्क बनाने का काम शुरू हो गया। न केवल घरों में मास्क बनने लगे बल्कि कई बड़ी टैक्सटाइल कंपनियों ने भी इनहाउस सैटअप का उपयोग करते हुए फैब्रिक के मास्क बनाना शुरू कर दिया। कपड़े के मास्क देशभर में बाजारों में बिकने के साथ ही इनका कई देशों में निर्यात भी किया गया। इस दौरान कपड़े के मास्क की कई डिजायनें भी बाजार में आईं।उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश सहित कई राज्यों में स्थानीय स्तर पर लोगों ने कपड़े के मास्क बैंक बनाए और लोगों में सार्वजनिक रूप से बांटे। वहीं सुलभ इंटरनेशनल जैसी संस्थाएं भी इसमें आगे आईं और वृंदावन की विधवाओं के साथ मिलकर कृष्ण भक्ति से जुड़े मास्क बनाए।
स्थानीय स्तर पर बने मास्क के कपड़े की जांच जरूरीगुरुग्राम में टैक्सटाइल कंपनी चला रहे विष्ण् शर्मा कहते हैं कि उनकी कंपनी ने लॉकडाउन में चैरिटी के लिए कपड़े के मास्क बनाए।चूंकि पहले से गारमेंट का काम था तो पूरा सैटअप था। साथ ही गारमेंट के लिए ही लेबोरेटरीज में जांच के बाद कपड़ा आया था। उसमें कोई खतरनाक कैमिकल नहीं था। ऐसे में मास्क बनाने में कोई दिक्कत नहीं आई। हालांकि कारीगरों की संख्या काफी कम रही।
उन्होंने कहा कि टैक्सटाइल कंपनियां पहले से कपड़े में मौजूद कैमिकल की जांच कराती हैं और पीएच वैल्यू तक का ध्यान रखती हैं लेकिन स्थानीय स्तर पर बन रहे मास्क के लिए कोई पैरामीटर नहीं है। लिहाजा इस पर ध्यान देने की जरूरत है।
खादी, कॉटन और रेजा फैब्रिक के मास्क की भारी मांगकपड़े के मास्क को बेहतर बताए जाने के बाद से कई फैशन डिजाइनर भी इस काम में जुट गए। दौरान रेजा फैब्रिक पर काम कर रहीं इकलौती फैशन डिजायनर ललिता ने बताया कि कॉटन, खादी और रेजा फैब्रिक के मास्क की भारी मांग बढ़ी है। उन्होंने खुद खादी और रेजा के मास्क बनाकर दक्षिण भारत के कई राज्यों में सप्लाई किए हैं। लॉकडाउन और उसके बाद से फैब्रिक का ज्यादातर काम मास्क पर ही हुआ है।
विशेषज्ञ बोले- स्वास्थ्य अपनी जगह है पर बाजार हमेशा अवसर देखता है।।ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के पूर्व निदेशक एमसी मिश्र कहते हैं कि कोरोना बीमारी के बाद से मास्क का बाजार में छा जाना इस बात का सबूत है कि बाजार हमेशा अवसर देखता है। आपने देखा होगा कि पहले सर्जिकल मास्क और एन-95 मास्क को लेकर मारामारी रही, फिर कपड़े के मास्क का कारोबार हुआ। इसके बाद कपड़ों की मैचिंग के डिजायनर मास्क आज बाजार में मौजूद हैं। इससे आगे भी कुछ हो सकता है। हालांकि स्वास्थ्य को लेकर बात करें तो मास्क संपर्क में आने वाले दोनों लोगों के लिए जरूरी है लेकिन उससे भी ज्यादा जरूरी है दूरी। अगर दूरी नहीं है तो आप मास्क पहनकर भी कोरोना की चपेट में आ जाएंगे। मास्क पहनना 100 फीसदी सुरक्षा की गारंटी नहीं है लेकिन सामाजिक दूरी इस बीमारी से खुद को बचाने का सटीक उपाय है। हालांकि मास्क काफी हद तक ड्रॉपलेट्स को दूसरे तक पहुंचने से रोकता है इसलिए जरूरी है।रही बात मास्क में दम घुटने की, परेशानी होने की तो यह मास्क पहनने के बाद स्वाभाविक है। इसके साथ ही एक जरूरी बात यह भी है कि एन-95 मास्क आम लोगों के लिए नहीं है यह समझना होगा। यह फ्रंटलाइन कोविड वॉरियर्स या हेल्थ वर्कर्स के लिए है। आम लोग साधारण कपड़े का मास्क लगाएं, यह बेहतर है। इससे उन्हें सांस संबंधी परेशानियां भी नहीं होंगी।
सुरक्षित नहीं है कोई भी मास्क, बचाव के लिए करें उपायइंद्रप्रस्थ अपोलो में रेस्पिरेटरी एवं क्रिटिकल केयर विभाग के डॉ। राजेश चावला कहते हैं कि अगर लोगों को लगता है कि वे मास्क पहनकर सेफ हैं तो ऐसा नहीं है। कोई भी मास्क 100 फीसदी सेफ नहीं है। हां लेकिन दूरी के साथ संपर्क में आने वाले दोनों लोग मास्क पहन रहे हैं तो इससे संक्रमण का खतरा बहुत हद तक कम हो जाता है। अगर अस्थमा या सांस की बीमारी नहीं है तो मास्क पहनने से दिक्कतें भी बहुत ज्यादा नहीं हैं। मास्क पहनकर व्यायाम करना, सीढ़ी चढ़ना या कोई शारीरिक मेहनत का काम करना खतरनाक है। मास्क पहनने से सामने वाला सुरक्षित हो सकता है, यह समझकर मास्क पहनना चाहिए।