- भारत,
- 25-Apr-2025 02:29 PM IST
Pahalgam Terrorist Attack: पिछले कुछ समय से भारत और पाकिस्तान के बीच संबंधों में तनाव की लहरें उठती रही हैं, लेकिन हाल ही में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए बर्बर आतंकी हमले ने इस तनाव को एक खतरनाक मोड़ दे दिया है। इस हमले में निर्दोष नागरिकों और सुरक्षाबलों को निशाना बनाया गया, जिसने देशभर में आक्रोश की लहर दौड़ा दी।
इस हमले की पृष्ठभूमि में पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ का एक बयान सामने आया है, जिसने दोनों देशों के बीच तनाव को और भड़का दिया है। आसिफ ने एक इंटरव्यू में स्वीकार किया है कि पाकिस्तान ने बीते दशकों में आतंकियों को समर्थन, प्रशिक्षण और पनाह दी है—और वह भी सिर्फ अपने हितों के लिए नहीं, बल्कि अमेरिका और पश्चिमी देशों की रणनीति के तहत।
कबूलनामा जिसने उड़ा दी दुनिया की नींद
ब्रिटिश चैनल स्काई न्यूज की पत्रकार यल्दा हकीम के साथ एक इंटरव्यू में जब आसिफ से पूछा गया कि क्या पाकिस्तान का आतंकवादियों को समर्थन देने का लंबा इतिहास रहा है, तो उन्होंने साफ शब्दों में कहा, "हां, हम पिछले तीन दशकों से अमेरिका और पश्चिम के लिए यह गंदा काम करते आ रहे हैं।" यह बयान न केवल पाकिस्तान के दोहरे चरित्र को उजागर करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि कैसे अंतरराष्ट्रीय राजनीति में आतंक को एक उपकरण की तरह इस्तेमाल किया गया है।
आसिफ ने यह भी कहा कि यदि पाकिस्तान ने सोवियत संघ के खिलाफ जंग और 9/11 के बाद के युद्ध में भाग न लिया होता, तो उसका रिकॉर्ड बेदाग होता। लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि इन तथ्यों को खुद पाकिस्तान के एक वरिष्ठ मंत्री ने स्वीकार किया है, जिससे उसकी विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं।
भारत का निर्णायक रुख
पाकिस्तानी कबूलनामे और पहलगाम हमले के बाद भारत ने अब पहले से कहीं ज्यादा कड़ा रुख अपना लिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि, "अब समय आ गया है कि आतंक के बचे हुए गढ़ों को नेस्तनाबूद किया जाए।" उन्होंने वादा किया कि हमले के दोषियों और इसकी साजिश रचने वालों को ऐसी सजा दी जाएगी, जिसकी उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की होगी।
इस बीच, भारत ने 1960 की सिंधु जल संधि को निलंबित कर पाकिस्तान को यह संदेश भी दे दिया है कि अब 'पुराने नियमों' का युग खत्म हो चुका है। पाकिस्तान को यह समझ लेना होगा कि आतंकवाद अब उसकी रणनीतिक संपत्ति नहीं, बल्कि उसकी अंतरराष्ट्रीय अलगाव का कारण बन चुका है।
आगे की राह
पाकिस्तान के मंत्री की स्वीकारोक्ति न केवल भारत को, बल्कि पूरे अंतरराष्ट्रीय समुदाय को एक चेतावनी देती है। यह समय है जब वैश्विक ताकतों को यह सोचने की जरूरत है कि आखिर कब तक आतंकवाद को नजरअंदाज किया जाएगा, जब वह राजनीतिक हितों के लिए इस्तेमाल हो रहा है।
भारत ने अब निर्णायक मोर्चा खोल दिया है। सवाल यह है कि क्या पाकिस्तान अपने रास्ते में बदलाव लाएगा या फिर वह खुद को वैश्विक परिदृश्य से अलग-थलग कर लेगा?
यह घटना न केवल उपमहाद्वीप की सुरक्षा रणनीति में बदलाव लाएगी, बल्कि वैश्विक आतंकवाद के खिलाफ एक सख्त और सामूहिक रुख की भी मांग करेगी।