Vikrant Shekhawat : May 15, 2021, 04:14 PM
Delhi: सूअर अपने मलद्वार (Anus) से भी ऑक्सीजन खींचते हैं। यानी सांस लेते हैं। उनके गुदा द्वार से लगातार ऑक्सीजन से भरपूर तरल पदार्थ निकलता है। एक नया ट्रीटमेंट खोजा गया है जिसका प्रयोग सुअरों पर सफल रहा है। इसमें कमजोर फेफड़ों के बजाय गुदा द्वार से सांस लेने की पद्धत्ति बनाई गई है। आइए जानते हैं कि क्या सुअरों की तरह इंसान भी अपने गुदा द्वार से सांस ले सकते हैं? क्या इससे ऑक्सीजन की कमी की दिक्कत से जूझ रहे लोगों को मदद मिलेगी? क्या ऑक्सीजन की किल्लत से संघर्ष कर रहे कोरोना संक्रमित फेफड़ों का यह विकल्प बन सकता है?
टोक्यो मेडिकल एंड डेंटल यूनिवर्सिटी में के साइंटिस्ट ताकानोरी ताकेबे ने कहा कि कोरोना वायरस की वजह से जिन लोगों के खून में ऑक्सीजन का स्तर कम है। या जो लोग वेंटिलेटर्स पर हैं। उनके लिए दिक्कत की बात ये है कि ICU में वेंटिलेटर्स पर रखे गए लोगों के फेफड़ों के नाजुक ऊतकों (Delicate Tissues) पर जब दबाव के साथ ऑक्सीजन जाता है तो उससे उन्हें नुकसान पहुंचता है। यह स्टडी Cell जर्नल में प्रकाशित हुई है। ताकानोरी ताकेबे ने कहा कि ये बेहद अच्छा होता अगर इंसान भी अपने गुदा द्वार और आंतों के जरिए सांस लेते। ऐसे काम कुछ साफ पानी की मछलियां भी करती है। स्तरधारी जीवों (Mammals) के गुदा द्वार के चारों तरफ एक पतली झिल्ली होती है, जो कुछ खास तरह के कंपाउंड्स को सोखकर खून के प्रवाह में डालते हैं। डॉक्टरों ने इसका उपयोग पहले भी किया है। इसके लिए कुछ खास तरह की दवाओं और सहायता प्रदान करने वाली चीजों की जरूरत होती है।ताकानोरी ने कहा कि हमने सोचा क्यों न सुअरों पर यह परीक्षण किया जाए। हमने सुअरों के गुदाद्वार में एनिमा के जरिए एक खास तरह का तरल पदार्थ परफ्लोरोकार्बन (Perfluorocarbon) डाला। यह तरल पदार्थ उच्च स्तर पर ऑक्सीजन को पकड़ कर रखता है। इस तरल पदार्थ को सांस लेने लायक कहा जा सकता है। इस तरल पदार्थ का उपयोग प्री-मैच्योर बच्चों के फेफड़ों को बचाने के लिए दिया जाता है।परफ्लोरोकार्बन (Perfluorocarbon) एक गैर-विषैला तरल पदार्थ है। ताकानोरी और उनकी टीम ने चार सुअरों को बेहोश किया। उन्हें वेंटिलेटर पर रखा और उन्हें सामान्य से कम ऑक्सीजन स्तर पर रखा। ताकि उनके खून में ऑक्सीजन की कमी हो जाए। जब उन्होंने दो सुअरों को एनिमा के जरिए ऑक्सीजेनेटेड तरल पदार्थ परफ्लोरोकार्बन (Perfluorocarbon) दिया। इसके बाद जो हुआ वो हैरान कर देने वाला था।थोड़ी देर बाद दोनों सुअरों के खून में ऑक्सीजन की बढ़त दर्ज की गई। फिर बाकी दो सुअरों के मलद्वार में ट्यूब डाल रखा था। इस ट्यूब से परफ्लोरोकार्बन (Perfluorocarbon) उनके शरीर में डाला गया। उनके शरीर में भी खून में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ रही थी।ताकानोरी ने कहा कि कोरोना से संक्रमित लोगों को इसी तरह से मलद्वार के जरिए ऑक्सीजेनेटेड तरल पदार्थ दिया जा सकता है। इससे उनके खून में ऑक्सीजन की कमी पूरी होगी। ताकि उन्हें ऑक्सीजन सिलेंडर की जरूरत न पड़े। ताकानोरी ने कहा कि इस तरीके से लोगों की जान बचाई जा सकती है। ये तरीका गरीब और कम आय वाले देशों में बेहतरीन साबित हो सकता है। ताकानोरी ने कहा कि इससे ICU में भर्ती और वेंटिलेटर्स पर मौजूद कोरोना मरीजों को फायदा हो सकता है। क्योंकि वेंटिलेटर्स महंगे होते हैं। साथ ही एक वेंटिलेटर पर कई मेडिकल स्टाफ की तैनाती करनी पड़ती है। ताकि उसे सही समय मॉनिटर किया जा सके और मरीज का ख्याल रखा जा सके। ताकानोरी ताकेबे ने बताया कि परफ्लोरोकार्बन (Perfluorocarbon) प्रोसेस के साथ एक दिक्कत आ सकती है। वो ये है कि जिन मरीजों को कोरोना का संक्रमण हो रहा है, उसे डायरिया हो जाता है। ऐसे में उसके शरीर की आंतें कमजोर होती हैं। इसलिए मलद्वार से ऑक्सीजेनेटेड तरल पदार्थ देने में दिक्कत आ सकती है।इंपीरियल कॉलेज लंदन के साइंटिस्ट स्टीफन ब्रेट कहते हैं कि ताकनोरी और उनकी टीम का अध्ययन अभी प्राइमरी स्तर पर है। इतनी जल्दी इसके बारे में कुछ भी कहना ठीक नहीं होगा। वहीं येल स्कूल ऑफ मेडिसिन में कालेब केली ने लेख लिखा है कि ताकानोरी का आइडिया आंदोलनकारी है। लेकिन इलाज से पहले यह हैरान कर रही है। फीकल ट्रांसप्लांट कराने के लिए लोगों को पहले आंतों में संक्रमण होना जरूरी है। कायदे से ताकानोरी का आइडिया फिलहाल स्वीकृत नहीं किया जा सकता था।
टोक्यो मेडिकल एंड डेंटल यूनिवर्सिटी में के साइंटिस्ट ताकानोरी ताकेबे ने कहा कि कोरोना वायरस की वजह से जिन लोगों के खून में ऑक्सीजन का स्तर कम है। या जो लोग वेंटिलेटर्स पर हैं। उनके लिए दिक्कत की बात ये है कि ICU में वेंटिलेटर्स पर रखे गए लोगों के फेफड़ों के नाजुक ऊतकों (Delicate Tissues) पर जब दबाव के साथ ऑक्सीजन जाता है तो उससे उन्हें नुकसान पहुंचता है। यह स्टडी Cell जर्नल में प्रकाशित हुई है। ताकानोरी ताकेबे ने कहा कि ये बेहद अच्छा होता अगर इंसान भी अपने गुदा द्वार और आंतों के जरिए सांस लेते। ऐसे काम कुछ साफ पानी की मछलियां भी करती है। स्तरधारी जीवों (Mammals) के गुदा द्वार के चारों तरफ एक पतली झिल्ली होती है, जो कुछ खास तरह के कंपाउंड्स को सोखकर खून के प्रवाह में डालते हैं। डॉक्टरों ने इसका उपयोग पहले भी किया है। इसके लिए कुछ खास तरह की दवाओं और सहायता प्रदान करने वाली चीजों की जरूरत होती है।ताकानोरी ने कहा कि हमने सोचा क्यों न सुअरों पर यह परीक्षण किया जाए। हमने सुअरों के गुदाद्वार में एनिमा के जरिए एक खास तरह का तरल पदार्थ परफ्लोरोकार्बन (Perfluorocarbon) डाला। यह तरल पदार्थ उच्च स्तर पर ऑक्सीजन को पकड़ कर रखता है। इस तरल पदार्थ को सांस लेने लायक कहा जा सकता है। इस तरल पदार्थ का उपयोग प्री-मैच्योर बच्चों के फेफड़ों को बचाने के लिए दिया जाता है।परफ्लोरोकार्बन (Perfluorocarbon) एक गैर-विषैला तरल पदार्थ है। ताकानोरी और उनकी टीम ने चार सुअरों को बेहोश किया। उन्हें वेंटिलेटर पर रखा और उन्हें सामान्य से कम ऑक्सीजन स्तर पर रखा। ताकि उनके खून में ऑक्सीजन की कमी हो जाए। जब उन्होंने दो सुअरों को एनिमा के जरिए ऑक्सीजेनेटेड तरल पदार्थ परफ्लोरोकार्बन (Perfluorocarbon) दिया। इसके बाद जो हुआ वो हैरान कर देने वाला था।थोड़ी देर बाद दोनों सुअरों के खून में ऑक्सीजन की बढ़त दर्ज की गई। फिर बाकी दो सुअरों के मलद्वार में ट्यूब डाल रखा था। इस ट्यूब से परफ्लोरोकार्बन (Perfluorocarbon) उनके शरीर में डाला गया। उनके शरीर में भी खून में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ रही थी।ताकानोरी ने कहा कि कोरोना से संक्रमित लोगों को इसी तरह से मलद्वार के जरिए ऑक्सीजेनेटेड तरल पदार्थ दिया जा सकता है। इससे उनके खून में ऑक्सीजन की कमी पूरी होगी। ताकि उन्हें ऑक्सीजन सिलेंडर की जरूरत न पड़े। ताकानोरी ने कहा कि इस तरीके से लोगों की जान बचाई जा सकती है। ये तरीका गरीब और कम आय वाले देशों में बेहतरीन साबित हो सकता है। ताकानोरी ने कहा कि इससे ICU में भर्ती और वेंटिलेटर्स पर मौजूद कोरोना मरीजों को फायदा हो सकता है। क्योंकि वेंटिलेटर्स महंगे होते हैं। साथ ही एक वेंटिलेटर पर कई मेडिकल स्टाफ की तैनाती करनी पड़ती है। ताकि उसे सही समय मॉनिटर किया जा सके और मरीज का ख्याल रखा जा सके। ताकानोरी ताकेबे ने बताया कि परफ्लोरोकार्बन (Perfluorocarbon) प्रोसेस के साथ एक दिक्कत आ सकती है। वो ये है कि जिन मरीजों को कोरोना का संक्रमण हो रहा है, उसे डायरिया हो जाता है। ऐसे में उसके शरीर की आंतें कमजोर होती हैं। इसलिए मलद्वार से ऑक्सीजेनेटेड तरल पदार्थ देने में दिक्कत आ सकती है।इंपीरियल कॉलेज लंदन के साइंटिस्ट स्टीफन ब्रेट कहते हैं कि ताकनोरी और उनकी टीम का अध्ययन अभी प्राइमरी स्तर पर है। इतनी जल्दी इसके बारे में कुछ भी कहना ठीक नहीं होगा। वहीं येल स्कूल ऑफ मेडिसिन में कालेब केली ने लेख लिखा है कि ताकानोरी का आइडिया आंदोलनकारी है। लेकिन इलाज से पहले यह हैरान कर रही है। फीकल ट्रांसप्लांट कराने के लिए लोगों को पहले आंतों में संक्रमण होना जरूरी है। कायदे से ताकानोरी का आइडिया फिलहाल स्वीकृत नहीं किया जा सकता था।