प्रधानमंत्री मोदी ने मन की बात में कही ये खास बातें
मन की बात 2.0’ की
15वीं कड़ी में प्रधानमंत्री
के सम्बोधन का मूल पाठ
(30.08.2020)
मेरे प्यारे देशवासियो, नमस्कार. आमतौर पर ये समय उत्सव का होता है, जगह-जगह मेले लगते हैं, धार्मिक पूजा-पाठ होते हैं. कोरोना के इस संकट काल में लोगों में उमंग तो है, उत्साह भी है, लेकिन, हम सबको मन को छू जाए, वैसा अनुशासन भी है. बहुत एक रूप में देखा जाए तो नागरिकों में दायित्व का एहसास भी है. लोग अपना ध्यान रखते हुए, दूसरों का ध्यान रखते हुए, अपने रोजमर्रा के काम भी कर रहे हैं. देश में हो रहे हर आयोजन में जिस तरह का संयम और सादगी इस बार देखी जा रही है, वो अभूतपूर्व है. गणेशोत्सव भी कहीं ऑनलाइन मनाया जा रहा है, तो, ज्यादातर जगहों पर इस बार इकोफ्रेंडली गणेश जी की प्रतिमा स्थापित की गई है.
साथियो, हम, बहुत बारीकी
से अगर देखेंगे, तो
एक बात अवश्य
हमारे ध्यान में आयेगी - हमारे
पर्व और पर्यावरण. इन
दोनों के बीच एक
बहुत गहरा नाता रहा
है. जहां एक ओर
हमारे पर्वों में पर्यावरण और
प्रकृति के साथ सहजीवन
का सन्देश छिपा होता है
तो दूसरी ओर कई सारे
पर्व प्रकृति की रक्षा के
लिये ही मनाए जाते
हैं. जैसे, बिहार के पश्चिमी चंपारण
में, सदियों से थारु आदिवासी
समाज के लोग 60 घंटे
के lockdown या उनके ही
शब्दों में कहें तो
’60 घंटे के बरना’ का
पालन करते हैं. प्रकृति
की रक्षा के लिये बरना
को थारु समाज ने
अपनी परंपरा का हिस्सा बना
लिया है और सदियों
से बनाया है. इस दौरान
न कोई गाँव में
आता है, न ही
कोई अपने घरों से
बाहर निकलता है और लोग
मानते हैं कि अगर
वो बाहर निकले या
कोई बाहर से आया,
तो उनके आने-जाने
से, लोगों की रोजमर्रा की
गतिविधियों से, नए पेड़-पौधों को नुकसान हो
सकता है. बरना की
शुरुआत में भव्य तरीके
से हमारे आदिवासी भाई-बहन पूजा-पाठ करते हैं
और उसकी समाप्ति पर
आदिवासी परम्परा के गीत,संगीत,
नृत्य जमकर के उसके
कार्यक्रम भी होते हैं.
साथियो, इन दिनों ओणम
का पर्व भी धूम-धाम से मनाया
जा रहा है. ये
पर्व चिनगम महीने में आता है.
इस दौरान लोग कुछ नया
खरीदते हैं, अपने घरों
को सजाते हैं, पूक्क्लम बनाते
हैं, ओनम-सादिया का
आनंद लेते हैं, तरह-तरह के खेल
और प्रतियोगिताएं भी होती हैं.
ओणम की धूम तो,
आज, दूर-सुदूर विदेशों
तक पहुँची हुई है. अमेरिका
हो, यूरोप हो, या खाड़ी
देश हों, ओणम का
उल्लास आपको हर कहीं
मिल जाएगा. ओणम एक International Festival बनता जा रहा
है.
साथियो,
ओणम हमारी कृषि से जुड़ा
हुआ पर्व है. ये
हमारी ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए भी
एक नई शुरुआत का
समय होता है . किसानों
की शक्ति से ही तो
हमारा जीवन, हमारा समाज चलता है.
हमारे पर्व किसानों के
परिश्रम से ही रंग-बिरंगे बनते हैं. हमारे
अन्नदाता को, किसानों की
जीवनदायिनी शक्ति को तो वेदों
में भी बहुत गौरवपूर्ण
रूप से नमन किया
गया है.
ऋगवेद
में मन्त्र है –
अन्नानां
पतये नमः, क्षेत्राणाम
पतये नमः.
अर्थात,
अन्नदाता को नमन है,
किसान को नमन है.
हमारे किसानों ने कोरोना की
इस कठिन परिस्थितियों में
भी अपनी ताकत को
साबित किया है. हमारे
देश में इस बार
खरीफ की फसल की
बुआई पिछले साल के मुकाबले
7 प्रतिशत ज्यादा हुई है.
धान
की रुपाई इस बार लगभग
10 प्रतिशत, दालें लगभग 5 प्रतिशत, मोटे अनाज-Coarse Cereals लगभग 3 प्रतिशत,
Oilseeds लगभग 13 प्रतिशत, कपास लगभग 3 प्रतिशत
ज्यादा बोई गई है.
मैं, इसके लिए देश
के किसानों को बधाई देता
हूँ, उनके परिश्रम को
नमन करता हूँ.
मेरे
प्यारे देशवासियो, कोरोना के इस कालखंड
में देश कई मोर्चों
पर एक साथ लड़
रहा है, लेकिन इसके
साथ-साथ, कई बार
मन में ये भी
सवाल आता रहा कि
इतने लम्बे समय तक घरों
में रहने के कारण,
मेरे छोटे-छोटे बाल-मित्रों का समय कैसे
बीतता होगा. और इसी से
मैंने गांधीनगर की Children University जो दुनिया में
एक अलग तरह का
प्रयोग है, भारत सरकार
के महिला और बाल विकास
मंत्रालय, शिक्षा मंत्रालय, सूक्ष्म-लघु और मध्यम
उद्योग मंत्रालय, इन सभी के
साथ मिलकर, हम बच्चों के
लिये क्या कर सकते
हैं, इस पर मंथन
किया, चिंतन किया. मेरे लिए ये
बहुत सुखद था, लाभकारी
भी था क्योंकि एक
प्रकार से ये मेरे
लिए भी कुछ नया
जानने का, नया सीखने
का अवसर बन गया.
साथियो,
हमारे चिंतन का विषय था-
खिलौने और विशेषकर भारतीय
खिलौने. हमने इस बात
पर मंथन किया कि
भारत के बच्चों को
नए-नए Toys कैसे मिलें, भारत,
Toy Production का बहुत बड़ा hub कैसे
बने. वैसे मैं ‘मन
की बात’ सुन रहे
बच्चों के माता-पिता
से क्षमा माँगता हूँ, क्योंकि हो
सकता है, उन्हें, अब,
ये ‘मन की बात’
सुनने के बाद खिलौनों
की नयी-नयी demand सुनने
का शायद एक नया
काम सामने आ जाएगा.
साथियो,
खिलौने जहां activity को बढ़ाने वाले
होते हैं, तो खिलौने
हमारी आकांक्षाओं को भी उड़ान
देते हैं. खिलौने केवल
मन ही नहीं बहलाते,
खिलौने मन बनाते भी
हैं और मकसद गढ़ते
भी हैं. मैंने कहीं
पढ़ा, कि, खिलौनों के
सम्बन्ध में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ
टैगोर ने कहा था
कि best Toy वो होता है
जो Incomplete हो. ऐसा खिलौना,
जो अधूरा हो, और, बच्चे
मिलकर खेल-खेल में
उसे पूरा करें. गुरुदेव टैगोर ने कहा था
कि जब वो छोटे
थे तो खुद की
कल्पना से, घर में
मिलने वाले सामानों से
ही, अपने दोस्तों के
साथ, अपने खिलौने और
खेल बनाया करते थे. लेकिन,
एक दिन बचपन के
उन मौज-मस्ती भरे
पलों में बड़ों का
दखल हो गया. हुआ
ये था कि उनका
एक साथी, एक बड़ा और
सुंदर सा, विदेशी खिलौना
लेकर आ गया. खिलौने
को लेकर इतराते हुए
अब सब साथी का
ध्यान खेल से ज्यादा
खिलौने पर रह गया.
हर किसी के आकर्षण
का केंद्र खेल नहीं रहा,
खिलौना बन गया. जो बच्चा कल
तक सबके साथ खेलता
था, सबके साथ रहता
था, घुलमिल जाता था, खेल
में डूब जाता था,
वो अब दूर रहने
लगा. एक तरह से
बाकी बच्चों से भेद का
भाव उसके मन में
बैठ गया. महंगे खिलौने
में बनाने के लिये भी
कुछ नहीं था, सीखने
के लिये भी कुछ
नहीं था. यानी कि,
एक आकर्षक खिलौने ने एक उत्कृष्ठ
बच्चे को कहीं दबा
दिया, छिपा दिया, मुरझा
दिया. इस खिलौने ने
धन का, सम्पत्ति का,
जरा बड़प्पन का प्रदर्शन कर
लिया लेकिन उस बच्चे की
Creative Spirit को बढ़ने और संवरने
से रोक दिया. खिलौना
तो आ गया, पर
खेल ख़त्म हो गया
और बच्चे का खिलना भी
खो गया. इसलिए, गुरुदेव
कहते थे, कि, खिलौने
ऐसे होने चाहिए जो
बच्चे के बचपन को
बाहर लाये, उसकी creativity को
सामने लाए. बच्चों के
जीवन के अलग-अलग
पहलू पर खिलौनों का
जो प्रभाव है, इस पर
राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भी
बहुत ध्यान दिया गया है.
खेल-खेल में सीखना,
खिलौने बनाना सीखना, खिलौने जहां बनते हैं
वहाँ की visit करना, इन सबको curriculum का
हिस्सा बनाया गया है.
साथियो, हमारे देश में Local खिलौनों
की बहुत समृद्ध परंपरा
रही है. कई प्रतिभाशाली
और कुशल कारीगर हैं,
जो अच्छे खिलौने बनाने में महारत रखते
हैं. भारत के कुछ
क्षेत्र Toy Clusters यानी खिलौनों के
केन्द्र के रूप में
भी विकसित हो रहे हैं.
जैसे, कर्नाटक के रामनगरम में
चन्नापटना, आन्ध्र प्रदेश के कृष्णा में
कोंडापल्ली, तमिलनाडु में तंजौर, असम
में धुबरी, उत्तर प्रदेश का वाराणसी -
कई ऐसे स्थान हैं,
कई नाम गिना सकते
हैं. आपको ये जानकार
आश्चर्य होगा कि Global Toy Industry, 7 लाख करोड़ रुपये
से भी अधिक की
है. 7 लाख करोड़ रुपयों
का इतना बड़ा कारोबार,
लेकिन, भारत का हिस्सा
उसमें बहुत कम है. अब
आप सोचिए कि जिस राष्ट्र
के पास इतनी विरासत
हो, परम्परा हो, विविधता हो,
युवा आबादी हो, क्या खिलौनों
के बाजार में उसकी हिस्सेदारी
इतनी कम होनी, हमें,
अच्छा लगेगा क्या? जी नहीं, ये
सुनने के बाद आपको
भी अच्छा नहीं लगेगा. देखिये
साथियो, Toy Industry बहुत व्यापक है.
गृह उद्योग हो, छोटे और
लघु उद्योग हो, MSMEs हों, इसके साथ-साथ बड़े उद्योग
और निजी उद्यमी भी
इसके दायरे में आते हैं.
इसे आगे बढ़ाने के
लिए देश को मिलकर
मेहनत करनी होगी. अब
जैसे आन्ध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम में
श्रीमान सी.वी. राजू
हैं . उनके गांव के
एति-कोप्पका Toys एक समय में
बहुत प्रचलित थे. इनकी खासियत
ये थी कि ये
खिलौने लकड़ी से बनते
थे, और दूसरी बात
ये कि इन खिलौनों
में आपको कहीं कोई
angle या कोण नहीं मिलता
था. ये खिलौने हर
तरफ से round होते थे, इसलिए,
बच्चों को चोट की
भी गुंजाइश नहीं होती थी.
सी.वी. राजू ने
एति-कोप्पका toys के
लिये, अब, अपने गाँव
के कारीगरों के साथ मिलकर
एक तरह से नया
movement शुरू कर दिया है.
बेहतरीन quality के एति-कोप्पका
Toys बनाकर सी.वी. राजू
ने स्थानीय खिलौनों की खोई हुई
गरिमा को वापस ला
दिया है. खिलौनों के
साथ हम दो चीजें
कर सकते हैं – अपने
गौरवशाली अतीत को अपने
जीवन में फिर से
उतार सकते हैं और
अपने स्वर्णिम भविष्य को भी सँवार
सकते हैं. मैं अपने
start-up मित्रों को, हमारे नए
उद्यमियों से कहता हूँ
- Team up for toys… आइए
मिलकर खिलौने बनाएं. अब सभी के
लिये Local खिलौनों के लिये Vocal होने
का समय है. आइए,
हम अपने युवाओं के
लिये कुछ नए प्रकार
के, अच्छी quality वाले, खिलौने बनाते हैं. खिलौना
वो हो जिसकी मौजूदगी
में बचपन खिले भी,
खिलखिलाए भी. हम ऐसे
खिलौने बनाएं, जो पर्यावरण के
भी अनुकूल हों.
साथियो, इसी तरह, अब
कंप्यूटर और स्मार्टफ़ोन के
इस जमाने में कंप्यूटर गेम्स
का भी बहुत trend है.
ये गेम्स बच्चे भी खेलते हैं,
बड़े भी खेलते हैं.
लेकिन, इनमें भी जितने गेम्स
होते हैं, उनकी themes भी
अधिकतर बाहर की ही
होती हैं. हमारे
देश में इतने ideas हैं,
इतने concepts हैं, बहुत समृद्ध
हमारा इतिहास रहा है. क्या
हम उन पर games बना
सकते हैं ? मैं देश के
युवा talent से कहता हूँ,
आप, भारत में भी
games बनाइये, और, भारत के
भी games बनाइये. कहा भी जाता
है - Let the games
begin ! तो चलो, खेल शुरू
करते हैं !
साथियो, आत्मनिर्भर भारत अभियान में
Virtual Games हों,
Toys का Sector हो, सबने, बहुत
महत्वपूर्ण भूमिका निभानी है और ये
अवसर भी है . जब
आज से सौ वर्ष
पहले, असहयोग आंदोलन शुरू हुआ, तो
गांधी जी ने लिखा
था कि – “असहयोग आन्दोलन, देशवासियों में आत्मसम्मान और
अपनी शक्ति का बोध कराने
का एक प्रयास है.”
आज, जब हम देश को आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास कर रहे हैं, तो, हमें, पूरे आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ना है, हर क्षेत्र में देश को आत्मनिर्भर बनाना है. असहयोग आंदोलन के रूप में जो बीज बोया गया था,उसे, अब, आत्मनिर्भर भारत के वट वृक्ष में परिवर्तित करना हम सब का दायित्व है.
मेरे प्यारे देशवासियो,
भारतीयों के innovation और solution देने की क्षमता
का लोहा हर कोई
मानता है और जब
समर्पण भाव हो, संवेदना
हो तो ये शक्ति
असीम बन जाती है.
इस महीने की शुरुआत में,
देश के युवाओं के
सामने, एक app innovation challenge रखा गया. इस
आत्मनिर्भर भारत app innovation
challenge में हमारे युवाओं ने बढ़-चढ़कर
के हिस्सा
लिया. करीब, 7 हजार entries आईं, उसमें भी,
करीब-करीब दो तिहाई
apps tier two और tier
three शहरों के युवाओं ने
बनाए हैं. ये आत्मनिर्भर
भारत के लिए, देश
के भविष्य के लिए, बहुत
ही शुभ संकेत है.
आत्मनिर्भर app
innovation challenge के
results देखकर आप ज़रूर प्रभावित
होंगे. काफी जाँच-परख
के बाद, अलग-अलग category में,
लगभग दो दर्जन Apps को
award भी दिए गये हैं.
आप जरुर इन Apps के बारे में
जाने और उनसे जुडें.
हो सकता है आप
भी ऐसा कुछ बनाने
के लिए प्रेरित हो
जायें. इनमें एक App है, कुटुकी kids learning app. ये
छोटे बच्चों के लिए ऐसा
interactive app है जिसमें गानों और कहानियों के
जरिए बात-बात में
ही बच्चे math science में बहुत कुछ
सीख सकते हैं. इसमें
activities भी हैं, खेल भी
हैं. इसी तरह एक
micro blogging platform का
भी app है. इसका नाम है कू
- K OO
कू . इसमें, हम, अपनी मातृभाषा
में text, video और audio के जरिए अपनी
बात रख सकते हैं,
interact कर सकते हैं. इसी
तरह चिंगारी App भी युवाओं के
बीच काफी popular हो रहा है.
एक app है Ask सरकार. इसमें chat boat के
जरिए आप interact कर सकते हैं
और किसी भी सरकारी
योजना के बारे में
सही जानकारी हासिल कर सकते हैं,
वो भी text, audio और video तीनों तरीकों से. ये आपकी
बड़ी मदद कर सकता
है. एक और app है,
step set go. ये fitness App है.
आप कितना चले, कितनी calories burn की, ये
सारा हिसाब ये app रखता है, और
आपको fit रहने के लिये
motivate भी करता है. मैंने
ये कुछ ही उदाहरण
दिये हैं. कई और
apps ने भी इस challenge को
जीता है. कई
Business Apps हैं,
games के App है, जैसे ‘Is
EqualTo’, Books & Expense, Zoho (जोहो)
Workplace, FTC Talent. आप
इनके बारे में net पर
search करिए, आपको बहुत जानकारी
मिलेगी. आप भी आगे
आएं, कुछ innovate करें, कुछ implement करें. आपके प्रयास, आज
के छोटे-छोटे start-ups, कल
बड़ी-बड़ी कंपनियों में
बदलेंगे और दुनिया में
भारत की पहचान बनेंगे.
और आप ये मत
भूलिये कि आज जो
दुनिया में बहुत बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ नज़र
आती हैं ना, ये
भी, कभी, startup हुआ करती थी.
प्रिय देशवासियो, हमारे यहाँ के बच्चे,
हमारे विद्यार्थी, अपनी पूरी क्षमता
दिखा पाएं, अपना सामर्थ्य दिखा
पाएं, इसमें बहुत बड़ी भूमिका
Nutrition की भी होती है,
पोषण की भी होती
है. पूरे देश में
सितम्बर महीने को पोषण माह
- Nutrition Month के रूप में
मनाया जाएगा. Nation और
Nutrition का बहुत गहरा सम्बन्ध
होता है. हमारे यहाँ
एक कहावत है – “यथा अन्नम तथा
मन्न्म”
यानी,
जैसा अन्न होता है,
वैसा ही हमारा मानसिक
और बौद्धिक विकास भी होता है.
Experts कहते हैं कि शिशु
को गर्भ में, और
बचपन में, जितना अच्छा
पोषण मिलता है, उतना अच्छा
उसका मानसिक विकास होता है और
वो स्वस्थ रहता है. बच्चों
के पोषण के लिये
भी उतना ही जरुरी
है कि माँ को
भी पूरा पोषण मिले
और पोषण या Nutrition का
मतलब केवल इतना ही
नहीं होता कि आप
क्या खा रहे हैं,
कितना खा रहे हैं,
कितनी बार खा रहे
हैं. इसका मतलब है
आपके शरीर को कितने
जरुरी पोषक तत्व, nutrients मिल
रहे हैं. आपको Iron, Calcium मिल रहे
हैं या नहीं, Sodium मिल
रहा है या नहीं,
vitamins मिल रहे हैं या
नहीं, ये सब Nutrition के
बहुत Important aspects
हैं. Nutrition के इस आन्दोलन
में People Participation
भी बहुत जरुरी है.
जन-भागीदारी ही इसको सफल
करती है. पिछले कुछ
वर्षों में, इस दिशा
में, देश में, काफी
प्रयास किए गये हैं.
खासकर हमारे गाँवों में इसे जनभागीदारी
से जन-आन्दोलन बनाया
जा रहा है. पोषण
सप्ताह हो, पोषण माह
हो, इनके माध्यम से
ज्यादा से ज्यादा जागरूकता
पैदा की जा रही
है. स्कूलों को जोड़ा गया
है. बच्चों के लिये प्रतियोगिताएं
हों, उनमें Awareness बढ़े, इसके लिये
भी लगातार प्रयास जारी हैं. जैसे Class में
एक Class Monitor होता है, उसी
तरह Nutrition Monitor भी हो,
report card की तरह Nutrition Card भी बने, इस
तरह की भी शुरुआत
की जा रही है.
पोषण माह – Nutrition Month के दौरान MyGov portal पर एक
food and nutrition quiz भी
आयोजित की जाएगी, और
साथ ही एक मीम
competition भी होगा. आप ख़ुद participate करें
और दूसरों को भी motivate करें.
साथियो
अगर आपको गुजरात में
सरदार वल्लभभाई पटेल के Statue of Unity जाने का
अवसर मिला होगा, और
कोविड के बाद जब
वो खुलेगा और आपको जाने
का अवसर मिलेगा, तो,
वहां एक unique प्रकार का Nutrition Park बनाया गया है. खेल-खेल में ही
Nutrition की शिक्षा आनंद-प्रमोद के
साथ वहां जरुर देख
सकते हैं.
साथियो, भारत एक विशाल
देश है, खान-पान
में ढेर सारी विविधता
है. हमारे देश में छह
अलग-अलग ऋतुयें होती
हैं, अलग-अलग क्षेत्रों
में वहाँ के मौसम
के हिसाब से अलग-अलग
चीजें पैदा होती हैं.
इसलिए यह बहुत ही
महत्वपूर्ण है कि हर
क्षेत्र के मौसम, वहाँ
के स्थानीय भोजन और वहाँ
पैदा होने वाले अन्न,
फल, सब्जियों के अनुसार एक
पोषक, nutrient rich,
diet plan बने. अब जैसे
Millets – मोटे अनाज – रागी है, ज्वार
है, ये बहुत उपयोगी
पोषक आहार हैं. एक
“भारतीय कृषि कोष’ तैयार
किया जा रहा है,
इसमें हर एक जिले
में क्या-क्या फसल
होती है, उनकी nutrition value कितनी है,
इसकी पूरी जानकारी होगी.
ये आप सबके लिए
बहुत बड़े काम का
कोष हो सकता है.
आइये, पोषण माह में
पौष्टिक खाने और स्वस्थ
रहने के लिए हम
सभी को प्रेरित करें.
प्रिय
देशवासियो, बीते दिनों, जब
हम अपना स्वतंत्रता दिवस
मना रहे थे, तब
एक दिलचस्प खबर पर मेरा
ध्यान गया. ये खबर
है हमारे सुरक्षाबलों के दो जांबाज
किरदारों की. एक है
सोफी और दूसरी विदा.
सोफी और विदा, Indian Army के श्वान
हैं, Dogs हैं और उन्हें
Chief of Army Staff ‘Commendation Cards’ से
सम्मानित किया गया है.
सोफी और विदा को
ये सम्मान इसलिए मिला, क्योंकि इन्होंने, अपने देश की
रक्षा करते हुए, अपना
कर्तव्य बखूबी निभाया है. हमारी सेनाओं
में, हमारे सुरक्षाबलों के पास, ऐसे,
कितने ही बहादुर श्वान
है Dogs हैं जो देश
के लिये जीते हैं
और देश के लिये
अपना बलिदान भी देते हैं.
कितने ही बम धमाकों
को, कितनी ही आंतकी साजिशों
को रोकने में ऐसे Dogs ने
बहुत अहम् भूमिका निभाई
है. कुछ समय पहले
मुझे देश की सुरक्षा
में dogs की
भूमिका के बारे में
बहुत विस्तार से जानने को
मिला. कई किस्से भी
सुने. एक dog बलराम ने 2006 में अमरनाथ यात्रा
के रास्ते में, बड़ी मात्रा
में, गोला-बारूद खोज
निकाला था. 2002 में dog भावना ने IED खोजा था. IED निकालने
के दौरान आंतकियों ने विस्फोट कर
दिया, और श्वान शहीद
हो गये. दो-तीन
वर्ष पहले, छत्तीसगढ़ के बीजापुर में
CRPF का sniffer dog
‘Cracker’ भी IED blast
में शहीद हो गया
था. कुछ दिन पहले
ही आपने शायद TV पर
एक बड़ा भावुक करने
वाला दृश्य देखा होगा, जिसमें,
बीड पुलिस अपने साथी Dog रॉकी
को पूरे सम्मान के
साथ आख़िरी विदाई दे रही थी.
रॉकी ने 300 से ज्यादा केसों
को सुलझाने में पुलिस की
मदद की थी. Dogs की
Disaster Management और
Rescue Missions में भी बहुत बड़ी
भूमिका होती हैं. भारत
में तो National Disaster
Response Force – NDRF ने
ऐसे दर्जनों Dogs को Specially Train किया है. कहीं
भूकंप आने पर, ईमारत
गिरने पर, मलबे में
दबे जीवित लोगों को खोज निकालने
में ये dogs बहुत expert होते हैं.
साथियो,
मुझे यह भी बताया
गया कि Indian Breed के Dogs भी बहुत अच्छे
होते हैं, बहुत सक्षम
होते हैं. Indian Breeds में मुधोल हाउंड
हैं, हिमाचली हाउंड है, ये बहुत
ही अच्छी नस्लें हैं. राजापलायम, कन्नी,
चिप्पीपराई, और कोम्बाई भी
बहुत शानदार Indian breeds हैं. इनको पालने
में खर्च भी काफी
कम आता है, और
ये भारतीय माहौल में ढ़ले भी
होते हैं. अब हमारी
सुरक्षा एजेंसियों ने भी इन Indian breed के
dogs को अपने सुरक्षा दस्ते
में शामिल कर रही हैं.
पिछले कुछ समय में
आर्मी, CISF, NSG ने मुधोल हाउंड
dogs को trained करके dog squad में शामिल किया
है, CRPF ने कोम्बाई dogs को
शामिल किया है.
Indian Council of Agriculture Research भी
भारतीय नस्ल के Dogs पर
research कर रही है. मकसद
यही है कि Indian breeds को
और बेहतर बनाया जा सके, और,
उपयोगी बनाया जा सके. आप
internet पर इनके नाम search करिए,
इनके बारे में जानिए,
आप इनकी खूबसूरती, इनकी
qualities देखकर हैरान हो जाएंगे. अगली
बार, जब भी आप,
dog पालने की सोचें, आप
जरुर इनमें से ही किसी
Indian breed के dog को घर लाएँ.
आत्मनिर्भर भारत, जब जन-मन
का मन्त्र बन ही रहा
है, तो कोई भी
क्षेत्र इससे पीछे कैसे
छूट सकता है.
मेरे
प्रिय देशवासियो, कुछ दिनों बाद, पांच
सितम्बर को हम शिक्षक
दिवस मनायेगें. हम सब जब
अपने जीवन की सफलताओं
को अपनी जीवन यात्रा
को देखते है तो हमें
अपने किसी न किसी
शिक्षक की याद अवश्य
आती है| तेज़ी
से बदलते हुए समय और
कोरोना के संकट काल
में हमारे शिक्षकों के सामने भी
समय के साथ बदलाव
की एक चुनौती लगती
है. मुझे ख़ुशी है
कि हमारे शिक्षकों ने इस चुनौती
को न केवल स्वीकार
किया, बल्कि, उसे अवसर में
बदल भी दिया है| पढाई
में तकनीक का ज्यादा से
ज्यादा उपयोग कैसे हो, नए
तरीकों को कैसे अपनाएँ,
छात्रों को मदद कैसे
करें यह हमारे शिक्षकों
ने सहजता से अपनाया है
और अपने students को भी सिखाया
है| आज,
देश में, हर जगह
कुछ न कुछ innovation हो
रहे हैं. शिक्षक और
छात्र मिलकर कुछ नया कर
रहे हैं. मुझे भरोसा
है जिस तरह देश
में राष्ट्रीय शिक्षा नीति के जरिये
एक बड़ा बदलाव होने
जा रहा है, हमारे
शिक्षक इसका भी लाभ
छात्रों तक पहुचाने में
अहम भूमिका निभायेंगे.
साथियो,
और विशेषकर मेरे शिक्षक साथियो,
वर्ष 2022 में हमारा देश
स्वतंत्रता के 75 वर्ष का पर्व
मनायेगा| स्वतंत्रता
के पहले अनेक वर्षों
तक हमारे देश में आज़ादी
की जंग उसका एक
लम्बा इतिहास रहा है. इस
दौरान देश का कोई
कोना ऐसा नहीं था
जहाँ आजादी के मतवालों ने
अपने प्राण न्योछावर न किये हों,
अपना सर्वस्व त्याग न दिया हो.
यह बहुत आवश्यक है
कि हमारी आज की पीढ़ी,
हमारे विद्यार्थी, आज़ादी की जंग हमारे
देश के नायकों से
परिचित रहे, उसे उतना
ही महसूस करे. अपने जिले
से, अपने क्षेत्र में,
आज़ादी के आन्दोलन के
समय क्या हुआ, कैसे
हुआ, कौन शहीद हुआ,
कौन कितने समय तक देश
के लिए ज़ेल में
रहा. यह बातें हमारे
विद्यार्थी जानेंगे तो उनके व्यक्तित्व
में भी इसका प्रभाव
दिखेगा इसके लिये बहुत
से काम किये जा
सकते हैं, जिसमें हमारे
शिक्षकों का बड़ा दायित्व
है. जैसे, आप जिस जिले
में हैं वहाँ शताब्दियों
तक जो आजादी का
जंग चला उन
आजादियों के जंग में
वहाँ कोई घटनाएं घटी
हैं क्या ? इसे लेकर विद्यार्थियों
से research करवाई जा सकती है.
उसे स्कूल के हस्तलिखित अंक
के रूप में तैयार
किया जा सकता है
आप के शहर में
स्वतंत्रता आन्दोलन से जुड़ा कोई
स्थान हो तो छात्र
छात्राओं को वहाँ ले
जा सकते हैं. किसी स्कूल के
विद्यार्थी ठान सकते हैं
कि वो आजादी के
75 वर्ष में अपने क्षेत्र
के आज़ादी के 75 नायकों पर कवितायें लिखेंगे,
नाट्य कथाएँ लिखेंगे. आप के प्रयास
देश के हजारों लाखों
unsung heroes को सामने लायेंगे जो देश के
लिए जिये, जो देश के
लिए खप गए जिनके
नाम समय के साथ
विस्मृत हो गए, ऐसे
महान व्यक्तित्वों को अगर हम
सामने लायेंगे आजादी के 75 वर्ष में उन्हें
याद करेंगे तो उनको सच्ची
श्रद्धांजलि होगी और जब
5 सितम्बर को शिक्षक दिवस
मना रहे हैं तब
मैं मेरे शिक्षक साथियों
से जरूर आग्रह करूँगा
कि वे इसके लिए
एक माहोल बनाएं सब को जोड़ें
और सब मिल करके
जुट जाएँ.
मेरे
प्रिय देशवासियो, देश आज जिस
विकास यात्रा पर चल रहा
है इसकी सफलता सुखद
तभी होगी जब हर
एक देशवासी इसमें शामिल हो, इस यात्रा
का यात्री हो, इस पथ
का पथिक हो, इसलिए,
ये जरूरी है कि हर
एक देशवासी स्वस्थ रहे सुखी रहे
और हम मिलकर के
कोरोना को पूरी तरह
से हराएं. कोरोना तभी हारेगा जब
आप सुरक्षित रहेंगे, जब आप “दो
गज की दूरी, मास्क
जरुरी”, इस संकल्प का
पूरी तरह से पालन
करेंगे आप सब स्वस्थ
रहिये, सुखी रहिये, इन्हीं
शुभकामनाओं के साथ अगली
‘मन की बात’ में
फिर मिलेंगे.
बहुत
बहुत धन्यवाद. नमस्कार.