नई दिल्ली / पाठ्यक्रम का अनिवार्य हिस्सा होना चाहिए कविता पाठ: उप-राष्ट्रपति नायडू

उप-राष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने रविवार को विद्यालयों से कविताओं को पाठ्यक्रम का अनिवार्य हिस्सा बनाने का अनुरोध करते हुए कहा कि यह सामाजिक बदलाव का एक सशक्त ज़रिया हो सकती हैं। शांति को प्रगति के लिए ज़रूरी बताते हुए उप-राष्ट्रपति ने कहा कि शांति, प्रसन्नता, भाईचारा और सद्भाव सुनिश्चित करने के लिए कविता एक शक्तिशाली माध्यम हो सकती है।

Vikrant Shekhawat : Oct 07, 2019, 04:45 PM
उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने आज कहा कि कविता सामाजिक बदलाव की प्रक्रिया को तेज करने के लिए एक शक्तिशाली उत्प्रेरक के रूप में काम कर सकती है।

नायडू ने आज ओडिशा के भुवनेश्वर में कवियों के 39वें विश्‍व कांग्रेस (डब्ल्यूसीपी) के समापन सत्र को संबोधित करते हुए कहा कि कवियों में प्रभाव डालने और विचारधारा का निर्माण की क्षमता होती है। उन्‍होंने उनसे अपनी इस अनूठी क्षमता का उपयोग लोगों के विचारों, भावनाओं और प्रवृत्तियों को आकार देने के लिए करने का आग्रह किया जिससे कि एक बेहतर विश्‍व का निर्माण किया जा सके। विभिन्न देशों के कवियों ने इस सम्मेलन में भाग लिया।

कलिंग औद्योगिक प्रौद्योगिकी संस्‍थान (केआईआईटी) और कलिंग सामाजिक विज्ञान संस्‍थान (केआईएसएस) को प्रतिभाशाली कवियों का संगम आयोजित करने पर बधाई देते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि कवि सम्मेलन की विषय वस्‍तु- "कविता के माध्यम से करुणा" ने उनके हृदय को छू लिया है।      

यह देखते हुए कि करुणा हम सभी के लिए जन्‍मजात भावना है, उन्होंने कहा, “हमें निश्चित रूप से इसे महसूस करना चाहिए और और चैतन्‍य रूप से तब तक इसका अभ्यास करना चाहिए जब तक कि यह हमारी आदत न बन जाए और हमारे सारे कार्य, अवचेतन रूप से, करुणा, दया और सकारात्मकता का प्रदर्शन न करे। उन्होंने कहा कि 'करुणा से करुणा उत्‍पन्‍न होती है।

उपराष्ट्रपति ने उत्कृष्टता के प्रति इसकी प्रतिबद्धता के लिए संस्थान की सराहना की और लाखों आदिवासी लोगों के जीवन को सुधारने और उनमें बदलाव लाने के लिए उनके अथक प्रयासों के लिए इसके उत्‍साही संस्थापक श्री अच्युत सामंत की सराहना की।

नायडू ने कहा कि कविता मानवीय भावनाओं की बेहतरीन अभिव्यक्तियों में से एक है और सबसे गहरी अंतर्दृष्टि, भावनाओं की एक व्‍यापक श्रृंखला व्‍यक्‍त करती है और मानवीय अनुभव को चेतना के उच्चतम स्तर तक पहुंचाती है। उन्‍होंने कहा, ‘’कविता का मानवीय भावनाओं के आंतरिक रसायन पर महान प्रभाव पड़ता है। उन्होंने कहा कि हम कैसे अनुभव करते हैं, हम कैसी प्रतिक्रिया देते हैं और हम कैसे व्यवहार करते हैं- यह सब कुछ बहुत हद तक साहित्य और ललित कलाओं पर निर्भर करता है।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि कविता के साथ भारत का साहचर्य इसकी सभ्यता जितनी पुरानी है। उन्होंने महान भारतीय महाकाव्यों रामायण और महाभारत का उल्‍लेख किया और कहा कि वे अब तक लिखे गए काव्य के बेहतरीन नमूनों में से एक हैं, जो अपने विषयों की भव्यता, असाधारण साहित्यिक ऊंचाइयों और संदेशों की गहराई के लिए दुनिया भर में विख्‍यात हैं।

उन्होंने जोर देते हुए कहा कि एक प्रबुद्ध और स्वस्थ समाज का निर्माण करने के लिए कला और संस्कृति को बढ़ावा देना महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि “कला समाज में रचनात्मकता का पोषण करती है। बिना किसी सृजनशील आवाज के समाज निष्क्रिय हो जाएगा। कलाकारों ने जीवन को जीवंत किया। वे हमारे जीवन में बदलाव लेकर आए और उन्‍होंने हमारी धारणा को बदल दिया।

नायडू ने कलाकारों को समाज की चेतना के पालकों के रूप में उल्‍लेख किया और कहा कि वे सतत रूप से बेतुके और अतार्किक बातों पर सवाल उठाते हैं और समाज में सकारात्मक मूल्य भरने में सहायता करते हैं। उन्‍होंने कहा कि “सामान्य सांस्कृतिक सूत्रों को  साझा करने के द्वारा, कला हृदयों को एकजुट करती है। यह सुषुप्‍त चारित्रिक विशेषताओं को सामने लाती है।

उन्‍होंने जोर देकर कहा कि कविता मूल्‍यों एवं ज्ञान का अंतर-पीढ़ीगत हस्‍तांतरण का एक शक्तिशाली माध्‍यम है। उपराष्ट्रपति ने कहा कि भारतीय परंपरा ने ज्ञान और यहां तक ​​कि वैज्ञानिक ज्ञान के प्रसारण के लिए कविता पर भरोसा किया है।

उन्होंने स्कूलों से कविता पाठ और प्रशंसा करने को पाठ्यक्रम का अनिवार्य भाग बनाने का आग्रह किया। उन्होंने विश्वविद्यालयों से साहित्य, कला और मानविकी शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए कहा। उन्होंने रेखांकित किया, "हमें कवियों और लेखकों और कलाकारों और गायकों की भी उतनी ही आवश्यकता है जितनी हमें डॉक्टरों, इंजीनियरों और वैज्ञानिकों की आवश्यकता है।"

उपराष्‍ट्रपति ने सुझाव दिया कि साहित्‍य का प्रोत्‍साहन भाषाओं को संरक्षित करने और उन्‍हें बढ़ावा देने का भी एक प्रभावशाली माध्‍यम है। उन्‍होंने कहा कि किसी भी भाषा के संरक्षण या प्रोत्‍साहन का सर्वश्रेष्‍ठ तरीका यह है कि इसे व्‍यापक रूप से रोजमर्रा के जीवन में उपयोग में लाया जाए। उन्‍होंने विचार व्‍यक्‍त किया कि अधिक से अधिक लोगों को उनकी अपनी भाषाओं में कविता, कहानी, उपन्‍यास या नाटक लिखने के लिए प्रोत्‍साहित किया जाना चाहिए। उन्‍होंने मातृभाषा को संरक्षित करने, उनकी रक्षा करने एवं उन्‍हें बढ़ावा देने के लिए समर्पित उपायों की भी अपील की।

उन्होंने उम्मीद जताई कि विश्व कवि सम्मेलन जैसे आयोजन काव्य कृतियों को दुनिया के साथ साझा करने के लिए मंच के रूप में काम करेंगे और साथ ही नवोदित कवियों को अन्य कवियों से प्रेरणा लेने के लिए प्रेरित करेंगे।

उपराष्ट्रपति ने आशा जताई कि व्‍यापक सार्वजनिक कार्य प्रेरणा के अंतर्निहित स्रोत बनेंगे क्योंकि कवियों ने कविता के रेशमी धागों को बुनना और दुनिया भर के लोगों के ज्ञानवर्धक लोगों को रोमांचित करना जारी रखा है।

इस अवसर पर ओडिशा के माननीय राज्यपाल प्रो. गणेशी लाल, भारत सरकार के माननीय पशुपालन, डेयरी और मत्स्य पालन एवं एमएसएमई राज्य मंत्री प्रताप चन्द्र सारंगी, ओडिशा के माननीय ओडिया भाषा, साहित्य और संस्कृति, पर्यटन राज्य मंत्री (स्‍वतंत्र प्रभार) ज्योति प्रकाश पाणिग्रही, कवियों के 39वें विश्‍व कांग्रेस के अध्‍यक्ष प्रो. अच्युत सामंत और अन्य गणमान्‍य व्‍यक्ति उपस्थित थे।