Vikrant Shekhawat : Jun 12, 2021, 06:49 AM
Delhi: 7 फरवरी 2021 को उत्तराखंड के चमोली जिले की धौलीगंगा में हुए हादसे की वजह से करीब 200 लोगों की जान गई या लापता हैं। बहुत बड़े इलाके में बाढ़ आई थी। साथ ही 20 फीट गहरा कीचड़ जमा हो गया था। अब जाकर वैज्ञानिकों ने यह पता कर लिया है कि यह हादसा हुआ क्यों? कैसे धौलीगंगा, ऋषिगंगा और अलकनंदा में अचानक बाढ़ आई। कैसे हिमस्खलन हुआ। सिर्फ एक बड़े पत्थर के टूटकर ग्लेशियर पर गिरने की वजह से हिमस्खलन हुआ और यह हिमस्खन नीचे जमा ग्लेशियर से बनी प्राकृतिक झील को तोड़ते हुए नदियों में आ गया।
हादसे की शुरुआत हुई रोंटी पीक (Ronti Peak) से। यहां पर करीब आधा किलोमीटर चौड़े पत्थर, जिसके ऊपर भारी मात्रा में बर्फ जमी थी, वह टूटकर नीचे गिरा। 1 जनवरी 2021 को ली गई सैटेलाइट तस्वीर में रोंटी पीक के ऊपरी हिस्से में एक छोटी सी दरार दिखती है। 5 फरवरी 2021 तक यह दरार और बड़ी हो जाती है। 7 फरवरी को इस दरार की वजह से 500 मीटर चौड़ा एक पत्थर जिसके ऊपर बड़ी मात्रा में बर्फ लदा था, वह टूट गया। 10 फरवरी को आप रोंटी पीक के ऊपरी हिस्से में बड़े तिकोन पत्थर और बर्फ की मोटी चादर को गायब देख सकते हैं। वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में बताया कि रोंटी पीक के ऊपर जो पत्थर टूटा, उसके ऊपर भारी मात्रा में बर्फ जम गई थी। जिसका वजन वह सह नहीं पा रहा था। इस दौरान हिमालय रेंजेंस में आने वाले छोटे-मोटे भूकंपों की वजह से पत्थर में दरार आ गई। इसी दरार ने दर्द का सैलाब ला दिया। हिमालय पर नुकीलीं चोटियां, गहरी खाइयां, भूकंपीय गतिविधियां आदि बेहद खतरनाक होती है। दुनिया में अब तक सबसे बड़ा इस तरह का हादसा पेरू में 1970 में हुआ था। यहां हुआस्कारन हिमस्खलन हुआ था। यह दुनिया का सबसे बड़ा, खतरनाक और जानलेवा हादसा था। इसमें करीब 6 हजार लोग मारे गए थे।इसके बाद साल 2013 में केदारनाथ में हुए हादसे में 4000 लोग मारे गए। 1894 से 2021 तक उत्तराखंड में मौजूद हिमालय की 16 बड़े हादसे हो चुके हैं। इसमें फ्लैश फ्लड, लैंडस्लाइड यानी भूस्खलन, हिमस्खलन और भूकंप शामिल है। हिमालय पर लगातार बढ़ रही इंसानी गतिविधियों से क्रायोस्फेयर यानी बर्फ की चादरों वाले इलाके खतरनाक होते जा रहे हैं। हिमालय पर बन रहे हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट, लगातार बढ़ती ऊर्जा की मांग, आर्थिक विकास और लो-कार्बन सोसाइटी की ओर जाने के प्रयासों से नुकसान हो रहा है।7 फरवरी 2021 को 6063 मीटर ऊंचे रोंटी पीक से बड़ा पत्थर टूटा। यह पत्थर 5500 मीटर नीचे स्थित रोंटी गैड यानी छोटी सी नदी की शाखा से टकराई। यह शाखा जमीन से 1800 मीटर की ऊंचाई पर मौजूद है। टक्कर इतनी जोर की थी कि इससे दो बार भूंकप महसूस हुआ। पहला 4 बजकर 51 मिनट 13 सेकेंड पर और दूसरा 4 बजकर 51 मिनट 21 सेकेंड पर। उसके बाद हिमस्खलन हुआ क्योंकि वहां पर बहुत ज्यादा बर्फ थी। ये सारे तेजी से नीचे आए तो ऋषिगंगा और धौलीगंगा में अचानक से बाढ़ आ गई। इन दोनों नदियों में स्थित हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट पूरी तरह से बर्बाद हो गए।रोंटी पीक की ऊंचाई से नीचे गिरने वाले पत्थर और हिमस्खलन की गति 205 से 216 किलोमीटर प्रतिघंटा थी। क्योंकि वहां पर रोंटी पीक का कोण 35 डिग्री है। वैज्ञानिकों ने इसे समझने के लिए डिजिटल एलिवेशन मॉडल (DEM) बनाया। इससे ही पता चला कि रोंटी पीक पर दरार आने की वजह से पत्थर टूटा। इसके ऊपर करीब 80 मीटर ऊंची बर्फ जमा थी। पत्थर के इस टुकड़े की चौड़ाई करीब 550 मीटर थी। अब आप ही सोचिए एक आधा किलोमीटर चौड़ा पत्थर और उसके ऊपर जमा 80 मीटर ऊंची बर्फ की परत 5500 मीटर की ऊंचाई से गिरेंगे तो वो क्या तबाही मचाएंगे?वैज्ञानिकों ने ऑप्टिकल फीचर ट्रैकिंग से पता किया कि आखिरकार यह पत्थर इतनी आसानी से तो टूटा नहीं होगा। तो पता चला कि इस पत्थर में साल 2016 से ही दरार आने लगी थी। यह अपनी जड़ों से हिलना शुरु कर चुका था। साल 2017 और 18 की गर्मियों में इसमें ज्यादा मूवमेंट हुआ। इसकी वजह से पत्थर के ऊपर जमा ग्लेशियर पर 80 मीटर चौड़ी दरार आ गई। ऊपर से मलबा गिरा उसमें 80 फीसदी पत्थर और 20 फीसदी बर्फ थी। जब यह नदियों में मिले तो ये टूटे। कई पत्थर तो 20 फीट चौड़े थे। इनके साथ बर्फ के बड़े-बड़े टुकड़े भी थे।नदियों में पानी रहने की वजह से इनकी गति को और बढ़ावा मिल गया। रोंटी गैड और ऋषिगंगा के संगम पर 40 मीटर मोटा मलबा आकर मिलने लगा। यह पर एक मोड़ था जिसकी वजह से ऊपर से गिरे पत्थर और बर्फ मलबे के साथ नदी के पानी में मिलकर तेज गति से नीचे की ओर आने लगे। लेकिन रोंटी गैड और ऋषिगंगा नदी के संगम के ठीक ऊपर मलबा जमा होने की वजह से वहां एक 700 मीटर व्यास की छोटी सी झील बन गई है। जो अब लगातार अपना आकार बढ़ा रही है। इस संगम से एक किलोमीटर नीचे ही मलबा का ज्यादा बहाव था। यहां पर मलबे की मोटाई करीब 100 मीटर है।वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिकों ने बताया कि अचानक हुए इस हादसे में जो मलबा (बारीक कीचड़, पानी, बर्फ, पत्थर, लकड़िया और पेड़) आया, उसने ऋषिगंगा और धौलीगंगा नदी के संगम पर बहाव को रोक दिया। वहां एक बॉटलनेक बन गया। इससे करीब वहां पर 150 से 200 मीटर ऊंचा मलबा जमा होता गया। लेकिन यह ज्यादा देर टिक नहीं पाया। ऊपर से आ रहे मलबे के दबाव की वजह से यह टूट गया और धौलीगंगा के उत्तरी किनारे पर स्थित मंदिर को ध्वस्त कर दिया।चमोली में हुए हादसे की वजह से नदियों में जो गंदगी आई, उसका असर 900 किलोमीटर दूर तक देखने को मिला। यानी कानपुर तक गंगा नदी में गंदगी देखने को मिली। दिल्ली वाटर क्वालिटी बोर्ड के एक अधिकारी ने बताया कि इस हादसे के बाद गंगा का पानी 8 दिनों तक गंदा था। इसकी वजह से 13।2 मेगावॉट का ऋषिगंगा प्रोजेक्ट और 530 मेगावॉट का तपोवन प्रोजेक्ट ठप हो गया। रोंटी पीक से जो पत्थर टूटा था वह क्षेत्रीय पर्माफ्रॉस्ट से 1 किलोमीटर ऊपर था। लेकिन इसके नीचे के इलाके तापमान के मामले में 0 डिग्री सेल्सियस से कम थे। जबकि इसकी विपरीत दिशा में तापमान ज्यादा था। वह करीब 0 डिग्री सेल्सियस मापा गया। यानी विपरीत दिशा से आने वाली गर्मी की वजह से भी ग्लेशियर पर असर पड़ा होगा। इस समय रोंटी गैड और ऋषिगंगा के संगम पर निगरानी रखने की जरूरत है क्योंकि न जाने वह कब टूटकर जाए। उसके लिए बड़े पैमाने की जांच करनी होगी। वैज्ञानिकों ने चमोली हादसे की जो वजह बताई है उसमें तीन प्रमुख हैं। पहला- ऊंचाई से टूटकर गिरने वाला पत्थर और बर्फ की मोटी चादर, दूसरा- पत्थर और बर्फ का अनुपात, जिसकी वजह से ग्लेशियर पिघली और टूटी, इसकी वजह से ही मलबे में तेज बहाव आया और तीसरा - हाइड्रोपावर स्टेशन की दुर्भाग्यशाली मौजूदगी। यह बहाव के मार्ग में थे। इसलिए यहां कोई चेतावनी जारी ही नहीं हो पाई और सैकड़ों लोग मारे गए या लापता हो गए।
हादसे की शुरुआत हुई रोंटी पीक (Ronti Peak) से। यहां पर करीब आधा किलोमीटर चौड़े पत्थर, जिसके ऊपर भारी मात्रा में बर्फ जमी थी, वह टूटकर नीचे गिरा। 1 जनवरी 2021 को ली गई सैटेलाइट तस्वीर में रोंटी पीक के ऊपरी हिस्से में एक छोटी सी दरार दिखती है। 5 फरवरी 2021 तक यह दरार और बड़ी हो जाती है। 7 फरवरी को इस दरार की वजह से 500 मीटर चौड़ा एक पत्थर जिसके ऊपर बड़ी मात्रा में बर्फ लदा था, वह टूट गया। 10 फरवरी को आप रोंटी पीक के ऊपरी हिस्से में बड़े तिकोन पत्थर और बर्फ की मोटी चादर को गायब देख सकते हैं। वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में बताया कि रोंटी पीक के ऊपर जो पत्थर टूटा, उसके ऊपर भारी मात्रा में बर्फ जम गई थी। जिसका वजन वह सह नहीं पा रहा था। इस दौरान हिमालय रेंजेंस में आने वाले छोटे-मोटे भूकंपों की वजह से पत्थर में दरार आ गई। इसी दरार ने दर्द का सैलाब ला दिया। हिमालय पर नुकीलीं चोटियां, गहरी खाइयां, भूकंपीय गतिविधियां आदि बेहद खतरनाक होती है। दुनिया में अब तक सबसे बड़ा इस तरह का हादसा पेरू में 1970 में हुआ था। यहां हुआस्कारन हिमस्खलन हुआ था। यह दुनिया का सबसे बड़ा, खतरनाक और जानलेवा हादसा था। इसमें करीब 6 हजार लोग मारे गए थे।इसके बाद साल 2013 में केदारनाथ में हुए हादसे में 4000 लोग मारे गए। 1894 से 2021 तक उत्तराखंड में मौजूद हिमालय की 16 बड़े हादसे हो चुके हैं। इसमें फ्लैश फ्लड, लैंडस्लाइड यानी भूस्खलन, हिमस्खलन और भूकंप शामिल है। हिमालय पर लगातार बढ़ रही इंसानी गतिविधियों से क्रायोस्फेयर यानी बर्फ की चादरों वाले इलाके खतरनाक होते जा रहे हैं। हिमालय पर बन रहे हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट, लगातार बढ़ती ऊर्जा की मांग, आर्थिक विकास और लो-कार्बन सोसाइटी की ओर जाने के प्रयासों से नुकसान हो रहा है।7 फरवरी 2021 को 6063 मीटर ऊंचे रोंटी पीक से बड़ा पत्थर टूटा। यह पत्थर 5500 मीटर नीचे स्थित रोंटी गैड यानी छोटी सी नदी की शाखा से टकराई। यह शाखा जमीन से 1800 मीटर की ऊंचाई पर मौजूद है। टक्कर इतनी जोर की थी कि इससे दो बार भूंकप महसूस हुआ। पहला 4 बजकर 51 मिनट 13 सेकेंड पर और दूसरा 4 बजकर 51 मिनट 21 सेकेंड पर। उसके बाद हिमस्खलन हुआ क्योंकि वहां पर बहुत ज्यादा बर्फ थी। ये सारे तेजी से नीचे आए तो ऋषिगंगा और धौलीगंगा में अचानक से बाढ़ आ गई। इन दोनों नदियों में स्थित हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट पूरी तरह से बर्बाद हो गए।रोंटी पीक की ऊंचाई से नीचे गिरने वाले पत्थर और हिमस्खलन की गति 205 से 216 किलोमीटर प्रतिघंटा थी। क्योंकि वहां पर रोंटी पीक का कोण 35 डिग्री है। वैज्ञानिकों ने इसे समझने के लिए डिजिटल एलिवेशन मॉडल (DEM) बनाया। इससे ही पता चला कि रोंटी पीक पर दरार आने की वजह से पत्थर टूटा। इसके ऊपर करीब 80 मीटर ऊंची बर्फ जमा थी। पत्थर के इस टुकड़े की चौड़ाई करीब 550 मीटर थी। अब आप ही सोचिए एक आधा किलोमीटर चौड़ा पत्थर और उसके ऊपर जमा 80 मीटर ऊंची बर्फ की परत 5500 मीटर की ऊंचाई से गिरेंगे तो वो क्या तबाही मचाएंगे?वैज्ञानिकों ने ऑप्टिकल फीचर ट्रैकिंग से पता किया कि आखिरकार यह पत्थर इतनी आसानी से तो टूटा नहीं होगा। तो पता चला कि इस पत्थर में साल 2016 से ही दरार आने लगी थी। यह अपनी जड़ों से हिलना शुरु कर चुका था। साल 2017 और 18 की गर्मियों में इसमें ज्यादा मूवमेंट हुआ। इसकी वजह से पत्थर के ऊपर जमा ग्लेशियर पर 80 मीटर चौड़ी दरार आ गई। ऊपर से मलबा गिरा उसमें 80 फीसदी पत्थर और 20 फीसदी बर्फ थी। जब यह नदियों में मिले तो ये टूटे। कई पत्थर तो 20 फीट चौड़े थे। इनके साथ बर्फ के बड़े-बड़े टुकड़े भी थे।नदियों में पानी रहने की वजह से इनकी गति को और बढ़ावा मिल गया। रोंटी गैड और ऋषिगंगा के संगम पर 40 मीटर मोटा मलबा आकर मिलने लगा। यह पर एक मोड़ था जिसकी वजह से ऊपर से गिरे पत्थर और बर्फ मलबे के साथ नदी के पानी में मिलकर तेज गति से नीचे की ओर आने लगे। लेकिन रोंटी गैड और ऋषिगंगा नदी के संगम के ठीक ऊपर मलबा जमा होने की वजह से वहां एक 700 मीटर व्यास की छोटी सी झील बन गई है। जो अब लगातार अपना आकार बढ़ा रही है। इस संगम से एक किलोमीटर नीचे ही मलबा का ज्यादा बहाव था। यहां पर मलबे की मोटाई करीब 100 मीटर है।वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिकों ने बताया कि अचानक हुए इस हादसे में जो मलबा (बारीक कीचड़, पानी, बर्फ, पत्थर, लकड़िया और पेड़) आया, उसने ऋषिगंगा और धौलीगंगा नदी के संगम पर बहाव को रोक दिया। वहां एक बॉटलनेक बन गया। इससे करीब वहां पर 150 से 200 मीटर ऊंचा मलबा जमा होता गया। लेकिन यह ज्यादा देर टिक नहीं पाया। ऊपर से आ रहे मलबे के दबाव की वजह से यह टूट गया और धौलीगंगा के उत्तरी किनारे पर स्थित मंदिर को ध्वस्त कर दिया।चमोली में हुए हादसे की वजह से नदियों में जो गंदगी आई, उसका असर 900 किलोमीटर दूर तक देखने को मिला। यानी कानपुर तक गंगा नदी में गंदगी देखने को मिली। दिल्ली वाटर क्वालिटी बोर्ड के एक अधिकारी ने बताया कि इस हादसे के बाद गंगा का पानी 8 दिनों तक गंदा था। इसकी वजह से 13।2 मेगावॉट का ऋषिगंगा प्रोजेक्ट और 530 मेगावॉट का तपोवन प्रोजेक्ट ठप हो गया। रोंटी पीक से जो पत्थर टूटा था वह क्षेत्रीय पर्माफ्रॉस्ट से 1 किलोमीटर ऊपर था। लेकिन इसके नीचे के इलाके तापमान के मामले में 0 डिग्री सेल्सियस से कम थे। जबकि इसकी विपरीत दिशा में तापमान ज्यादा था। वह करीब 0 डिग्री सेल्सियस मापा गया। यानी विपरीत दिशा से आने वाली गर्मी की वजह से भी ग्लेशियर पर असर पड़ा होगा। इस समय रोंटी गैड और ऋषिगंगा के संगम पर निगरानी रखने की जरूरत है क्योंकि न जाने वह कब टूटकर जाए। उसके लिए बड़े पैमाने की जांच करनी होगी। वैज्ञानिकों ने चमोली हादसे की जो वजह बताई है उसमें तीन प्रमुख हैं। पहला- ऊंचाई से टूटकर गिरने वाला पत्थर और बर्फ की मोटी चादर, दूसरा- पत्थर और बर्फ का अनुपात, जिसकी वजह से ग्लेशियर पिघली और टूटी, इसकी वजह से ही मलबे में तेज बहाव आया और तीसरा - हाइड्रोपावर स्टेशन की दुर्भाग्यशाली मौजूदगी। यह बहाव के मार्ग में थे। इसलिए यहां कोई चेतावनी जारी ही नहीं हो पाई और सैकड़ों लोग मारे गए या लापता हो गए।