Vikrant Shekhawat : Dec 24, 2021, 12:57 PM
कोरोना की दूसरी लहर: कोरोना की विनाशकारी दूसरी लहर के दौरान उत्तर प्रदेश में गंगा नदी ‘लाशों को फेंकने की आसान जगह’ बन गई थी। ये दावा एक नई किताब में किया गया है जिसके लेखक NMCG के महानिदेशक और नमामि गंगे परियोजना के चीफ राजीव रंजन मिश्रा और IDAS अधिकारी पुष्कल उपाध्याय हैं। कोरोना की दूसरी लहर के दौरान गंगा में तैरती लाशों के कारण यूपी की भाजपा सरकार की काफी आलोचना हुई थी, लेकिन सरकार इससे बार-बार इनकार करती रही है।कोरोना वायरस महामारी की दूसरी लहर ने पूरे देश में तबाही मचाई थी। उत्तर प्रदेश में भी इस महामारी की चपेट में आने से हजारों लोगों की मौत हुई थी। इस दौरान अनगिनत लाशें गंगा में बहती नजर आई थीं, माना जा रहा था कि ये शव कोविड से मरने वालों के हैं जिन्हें इस तरह नदी में बहा दिया है, हालांकि, सरकार इससे बार-बार इनकार करती रही है।राजीव रंजन मिश्रा 1987 बैच के तेलंगाना-कैडर के आईएएस अधिकारी हैं और दो कार्यकालों के दौरान पांच साल से अधिक समय तक एनएमसीजी में सेवाएं दे चुके हैं और 31 दिसंबर को रिटायर होने वाले हैं। किताब ‘गंगा- रीमेजिनिंग, रीजुवेनेटिंग, रीकनेक्टिंग” का विमोचन गुरुवार को प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष विवेक देबरॉय ने किया।इस किताब में महामारी के दौरान गंगा की स्थिति के बारे में जिक्र किया गया है। इसमें कहा गया है कि कोरोना महामारी की दूसरी लहर के दौरान मरने वालों की संख्या बढ़ने के साथ अंतिम संस्कार करने के लिए दायरा बढ़ने लगा था, यूपी और बिहार के श्मशान घाटों पर जलती चिताओं के बीच, गंगा नदी शवों के लिए एक ‘आसान डंपिंग ग्राउंड’ बन गई।जिलों द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा गया है कि ‘300 से अधिक शव नदी में नहीं’ फेंके गए थे। किताब के कुछ अंश यह स्पष्ट करते हैं कि वे राजीव रंजन मिश्रा द्वारा लिखे गए हैं। उदाहरण के लिए, किताब में बताया गया है: “मैं गुरुग्राम स्थित मेदांता अस्पताल में कोविड-19 के खिलाफ लड़ रहा था, जब मैंने मई की शुरुआत में पवित्र गंगा नदी में तैरती लावारिस और अधजली लाशों के बारे में सुना।”इसमें आगे कहा गया है ”टीवी चैनलों, अखबारों और सोशल मीडिया साइट्स पर भयानक तस्वीरों और शवों को नदी में फेंके जाने की खबरों की भरमार थी। यह मेरे लिए दर्दनाक और दिल तोड़ने वाला अनुभव था।”