दुनिया / इस ग्रह पर बहती हैं लावा की नदियां, 400 से ज्यादा सक्रिय ज्वालामुखी

हमारी धरती पर करीब 1500 सक्रिय ज्वालामुखी हैं। धरती के ये ज्वालामुखी तो कभी-कभी फटते हैं। लेकिन धरती से करीब 62।83 करोड़ किलोमीटर दूर एक ऐसा ग्रह है, जिसपर मौजूद 400 से ज्यादा सक्रिय ज्वालामुखी हर रोज फटते हैं। इस ग्रह पर लावा का नदियां और नहरें बहती हैं। यह हमारे सौर मंडल का सबसे ज्यादा सक्रिय ग्रह है यानी इसकी जमीन के अंदर हमेशा हलचल होती रहती है।

AajTak : May 01, 2020, 01:20 PM
अमेरिका:  हमारी धरती पर करीब 1500 सक्रिय ज्वालामुखी हैं। धरती के ये ज्वालामुखी तो कभी-कभी फटते हैं। लेकिन धरती से करीब 62।83 करोड़ किलोमीटर दूर एक ऐसा ग्रह है, जिसपर मौजूद 400 से ज्यादा सक्रिय ज्वालामुखी हर रोज फटते हैं। इस ग्रह पर लावा का नदियां और नहरें बहती हैं। यह हमारे सौर मंडल का सबसे ज्यादा सक्रिय ग्रह है यानी इसकी जमीन के अंदर हमेशा हलचल होती रहती है। 

इस ग्रह का नाम है आयो (IO)। यह हमारे सौर मंडल के सबसे बड़े ग्रह बृहस्पति का सबसे बड़ा चंद्रमा है। जो बृहस्पति के चारों तरफ 4।23 लाख किलोमीटर की दूरी पर चक्कर लगाता रहता है। यह हमारी धरती के चांद से थोड़ा ही बड़ा है।

आयो पर एक दिन धरती के 32 घंटे के बराबर होता है। इसकी जमीन की ऊपरी सतह दलदली है। या यूं कहें कि हमेशा बहती रहती है। क्योंकि इसके ऊपर कभी भी कहीं से भी लावे की नदी बह जाती है। आयो की सतह पर लगातार परिवर्तन होता रहता है। इस तस्वीर के बाएं हिस्से में बहते हुए गर्म लावा की नदी दिख रही 

इस ग्रह की खोज 410 साल पहले गैलीलियो गैलिली ने की थी। यानी 8 जनवरी 1610 में गैलीलियो गैलिली ने बृहस्पति ग्रह के चारों तरफ आयो के साथ-साथ तीन और चंद्रमाओं की खोज की थी। ये हैं आयो, यूरोपा, गैनीमेडे और कैलिस्टो। फोटो यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन में रखी गैलीलियो के उस दस्तावेज की है, जिसमें उन्होंने बृहस्पति ग्रह के चारों चंद्रमाओं का जिक्र किया था।

इस ग्रह पर जीवन संभव नहीं है। क्योंकि यहां का तापमान हमेशा बहुत ज्यादा रहता है। ज्वालामुखी से निकलने वाले लावे की वजह से सल्फर डाइऑक्साइड गैस ग्रह के चारों तरफ घना बादल बना लेता है। कई बार तो सल्फर डाइऑक्साइड का गुबार अंतरिक्ष में 200 किलोमीटर दूर तक चला जाता है। 

इस ग्रह के सबसे बड़े ज्वालामुखी का नाम है लोकी पटेरा। इस ज्वालामुखी का फैलाव 202 किलोमीटर तक है। अकेला यही ज्वालामुखी आयो की गर्मी का 25 फीसदी हिस्सा पैदा करता है। इसकी वजह से बहुत बड़े इलाके में लावा की झीलें बनी हुई हैं। लावा की नदियां बहती रहती हैं।

आयो ग्रह के ज्वालामुखी कई बार इतनी तेज फटते हैं कि आप उन्हें बड़ी स्पेस दूरबीन की मदद से देख सकते हैं। अगर धरती से आयो के लिए रोशनी भेजी जाए तो उसे आयो पहुंचने में करीब 40।23 मिनट लगेंगे। 

आयो ग्रह पर गुरुत्वाकर्षण शक्ति बहुत कम है। यह धरती की तुलना में करीब सात गुना कम है। इसलिए यहां इंसान जाए तो वह चलेगा नहीं बल्कि उड़ेगा। 

आयो के ज्वालामुखियों के बारे में सबसे पहले 1979 में पता चला था। उसके बाद से अब तक इतने सैटेलाइट्स ने इसका अध्ययन किया है। ये हैं उलीसिस, कैसिनी, न्यू होराइजंस, जूनो, वॉयजर, पायोनियर और गैलीलियो स्पेसक्राफ्ट।