Vikrant Shekhawat : May 10, 2022, 09:43 AM
हरियाणा के हिसार में स्थित हड़प्पा स्थल राखीगढ़ी पर चल रही खोदाई के दौरान रोज कोई न कोई रहस्य उजागर हो रहा है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को गांव राखीगढ़ी में टीले नंबर सात में खोदाई के दौरान दफन दो महिलाओं के करीब सात हजार साल पुराने दो कंकाल मिले हैं। एएसआई के संयुक्त महानिदेशक संजय मंजुल ने बताया कि वर्ष 1998 से लेकर अब तक की खोदाई के दौरान 56 कंकाल मिले हैं।
डेक्कन कॉलेज पुणे ने वर्ष 2015-16 खोदाई अभ्यास में 36 कंकालों की खोज की थी। विभाग कंकालों में से एक के डीएनए को घटाने में सफल रहा है। डीएनए रिपोर्ट के आधार पर डेक्कन कॉलेज पुणे के पुरातत्वविदों द्वारा प्रकाशित विश्लेषणात्मक रिपोर्ट ने दक्षिण एशियाई में आक्रमण या प्रवास के आर्य सिद्धांत का पता करने की कोशिश की थी।
खोदाई का नेतृत्व कर रहे एएसआई के संयुक्त महानिदेशक संजय मंजुल ने बताया कि डीएनए विश्लेषण के लिए कंकालों की अस्थायी हड्डी के पेट्रो हिस्से के नमूने एकत्र किए थे। नमूनों को संरक्षण के लिए बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट ऑफ पैलियोसाइंसेस भेजा है। बाद में घटाव और विश्लेषण के लिए सीसीएमबी हैदराबाद भेजा जाएगा। दोनों कंकालों के हाथों में खोल की चूड़ियां, एक तांबे का दर्पण और अर्द्ध कीमती पत्थरों के मनके भी मिले हैं।
खोल की चूड़ियां मिलने से यह आशंका जताई जा रही है कि इन लोगों के दूरदराज के स्थानों से व्यापारिक संबंध थे। क्योंकि शैल चूड़ियां स्वदेशी रूप से उपलब्ध नहीं हैं। उम्मीद है कि पांच से सात हजार साल पहले राखीगढ़ी में रहने वाले लोगों के भौतिक और जैविक लक्षणों का विश्लेषण करने में सफल होंगे।
संजय मंजुल ने स्थल पर नगर नियोजन का खुलासा करते हुए कहा कि उन्हें प्राचीन वस्तुएं, तांबे की वस्तुएं, तांबे का एक लघु दर्पण, तांबे के मोती, सुलेमानी ब्लेड, खोल की चूड़ियां, टेराकोटा की चूड़ियां, पशु मूर्तियां मिली हैं। हड़प्पा की जीवन शैली और संस्कृति इन लोगों की कलाकृतियों और नगर नियोजन में परिलक्षित होती है। शहर के विकास की सावधानीपूर्वक योजना हड़प्पा युग में उत्कृष्ट सिविल इंजीनियरिंग का एक उदाहरण है।
डेक्कन कॉलेज पुणे ने वर्ष 2015-16 खोदाई अभ्यास में 36 कंकालों की खोज की थी। विभाग कंकालों में से एक के डीएनए को घटाने में सफल रहा है। डीएनए रिपोर्ट के आधार पर डेक्कन कॉलेज पुणे के पुरातत्वविदों द्वारा प्रकाशित विश्लेषणात्मक रिपोर्ट ने दक्षिण एशियाई में आक्रमण या प्रवास के आर्य सिद्धांत का पता करने की कोशिश की थी।
खोदाई का नेतृत्व कर रहे एएसआई के संयुक्त महानिदेशक संजय मंजुल ने बताया कि डीएनए विश्लेषण के लिए कंकालों की अस्थायी हड्डी के पेट्रो हिस्से के नमूने एकत्र किए थे। नमूनों को संरक्षण के लिए बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट ऑफ पैलियोसाइंसेस भेजा है। बाद में घटाव और विश्लेषण के लिए सीसीएमबी हैदराबाद भेजा जाएगा। दोनों कंकालों के हाथों में खोल की चूड़ियां, एक तांबे का दर्पण और अर्द्ध कीमती पत्थरों के मनके भी मिले हैं।
खोल की चूड़ियां मिलने से यह आशंका जताई जा रही है कि इन लोगों के दूरदराज के स्थानों से व्यापारिक संबंध थे। क्योंकि शैल चूड़ियां स्वदेशी रूप से उपलब्ध नहीं हैं। उम्मीद है कि पांच से सात हजार साल पहले राखीगढ़ी में रहने वाले लोगों के भौतिक और जैविक लक्षणों का विश्लेषण करने में सफल होंगे।
संजय मंजुल ने स्थल पर नगर नियोजन का खुलासा करते हुए कहा कि उन्हें प्राचीन वस्तुएं, तांबे की वस्तुएं, तांबे का एक लघु दर्पण, तांबे के मोती, सुलेमानी ब्लेड, खोल की चूड़ियां, टेराकोटा की चूड़ियां, पशु मूर्तियां मिली हैं। हड़प्पा की जीवन शैली और संस्कृति इन लोगों की कलाकृतियों और नगर नियोजन में परिलक्षित होती है। शहर के विकास की सावधानीपूर्वक योजना हड़प्पा युग में उत्कृष्ट सिविल इंजीनियरिंग का एक उदाहरण है।