AajTak : Jul 02, 2020, 12:59 PM
Delhi: लोग पौधरोपण करते हैं ताकि हरियाली बनी रहे। पर्यावरण साफ रहे लेकिन अब एक नई स्टडी में कहा गया है कि पौधरोपण की खराब और कमजोर नीतियों की वजह से लोगों के टैक्स से जमा पैसे बर्बाद हो रहे हैं। एक जैसा पौधा लगाने की वजह से बाकी पेड़ों की प्रजातियां खत्म हो रही हैं। पर्यावरण में ज्यादा कार्बन रिलीज हो रहा है।
ये स्टडी साइंस मैगजीन नेचर सस्टेनेबिलिटी में प्रकाशित हुई है। इस स्टडी के मुताबिक प्राकृतिक जंगलों की तुलना में पौधरोपण अभियान में लगाए गए पौधे पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे हैं। ये जैव-विविधता को खत्म कर रहे हैं।इंडियास्पेंड में छपी खबर के मुताबिक जब जंगल उगते हैं तो वो कार्बन डाईऑक्साइड जैसे ग्रीनहाउस गैसों को कम करते हैं। क्लाइमेट चेंज को रोकते हैं। साथ ही दुनिया में कार्बन सिंक यानी कार्बन को कम करते हैं। लेकिन पौधरोपण के मामले में उलटा हो रहा है। वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की योजना है कि पूरी दुनिया में जहां भी जंगल कम हुए हैं वहां पर 1 लाख करोड़ पौधे लगाए जाएं। साथ संयुक्त राष्ट्र ने बॉन चैलेंज शुरू कर रखा है। बॉन चैलेंज में 2030 तक दुनिया भर के 350 मिलियन हेक्टेयर जमीन पर पौधरोपण करना है। पुराने जंगलों को बचाने के बजाय इस तरीके के पौधरोपण अभियान मोनोकल्चर को बढ़ावा दे रहे हैं। मोनोकल्चर यानी एक जैसे पौधे लगाने की परंपरा। या फिर एक ही प्रजाति के पौधे लगाना। इससे जैव-विविधता खत्म हो रही है। ऐसे पौधरोपण धरती पर ग्रीनहाउस गैस कम करने के बजाय बढ़ा रहे हैं। स्टडी में बताया गया है कि जिस तरह का फायदा इस तरह के पौधरोपण से होना चाहिए वो नहीं हो रहा है। बल्कि, इससे नुकसान हो रहा है। पौधरोपण में लगाए गए पौधों से जंगल, घास के मैदान और सवाना इकोसिस्टम बदल रहा है। सिर्फ, एक ही तरह के पौधों से बाकी पेड़-पौधों की प्रजातियां खत्म होती हैं।ये स्टडी भारत के संबंध में भी सही है। क्योंकि भारत में अक्सर पौधरोपण अभियान चलता है। लाखों-करोड़ों पौधे मोनोकल्चर के तहत लगाए जाते हैं। इससे लोगों द्वारा जमा किया टैक्स का पैसा बर्बाद हो रहा है। भारत की पौधरोपण नीतियों पर भी स्टडी में जिक्र किया गया हैइसलिए अगर आप भारत के जंगलों की रिपोर्ट देखेंगे तो पता चलेगा कि पिछले कुछ सालों में भारत में प्राकृतिक जंगलों से बाहर जंगल खड़े हो रहे हैं। ये जंगल पौधरोपण से लगाए गए पौधों से बने हैं। भारत में भी इस बात की योजना चल रही है कि 2022 तक पूरे देश के 33 फीसदी भौगोलिक क्षेत्र में जंगल उगाने हैं। अभी पूरे देश में 24 फीसदी जंगल हैं। इसके लिए देश में कई स्थानों पर पौधरोपण कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। गुजरात, तमिलनाडु और महाराष्ट्र जैसे कई राज्य पौधरोपण के लिए पैसे भी खर्च कर रहे हैं। साथ ही सब्सिडी भी दे रहे हैं। भारत सरकार की नीतियों के मुताबिक विभिन्न राज्य सरकारें उद्योंगों से पैसे लेकर पौधरोपण कराती हैं। इसके लिए कंपेंसेटरी एफॉरेस्टेशन फंड मैनेजमेंट एंड प्लानिंग अथॉरिटी (CAMPA) बनाई है। इसे केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के अधीन बनाया गया है। भारत सरकार इस तरह के पौधरोपण को जंगल में गिनती है। इस साल जनवरी में कोलंबिया यूनिवर्सिटी और अमेरिका के द नेचर कंजरवेंसी ने मैसूर के नेचर कंजरवेशन फाउंडेशन के साथ मिलकर एक अध्ययन किया था। इसमें बताया गया था कि मोनोकल्चर के तहत लगाए गए पौधे ज्यादा कार्बन रिस्टोर करते हैं। स्टडी में बताया गया है कि चिली में दुनिया का सबसे लंबा पौधरोपण कार्यक्रम चला था। जिसके लिए लोगों को पैसे भी दिए गए थे। ये कार्यक्रम 38 साल (1974 से 2012) तक चला था। लेकिन, चिली की नीतियां इतनी मजबूत थीं कि वहां हर तरह के पौधे लगाए गए।
ये स्टडी साइंस मैगजीन नेचर सस्टेनेबिलिटी में प्रकाशित हुई है। इस स्टडी के मुताबिक प्राकृतिक जंगलों की तुलना में पौधरोपण अभियान में लगाए गए पौधे पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे हैं। ये जैव-विविधता को खत्म कर रहे हैं।इंडियास्पेंड में छपी खबर के मुताबिक जब जंगल उगते हैं तो वो कार्बन डाईऑक्साइड जैसे ग्रीनहाउस गैसों को कम करते हैं। क्लाइमेट चेंज को रोकते हैं। साथ ही दुनिया में कार्बन सिंक यानी कार्बन को कम करते हैं। लेकिन पौधरोपण के मामले में उलटा हो रहा है। वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की योजना है कि पूरी दुनिया में जहां भी जंगल कम हुए हैं वहां पर 1 लाख करोड़ पौधे लगाए जाएं। साथ संयुक्त राष्ट्र ने बॉन चैलेंज शुरू कर रखा है। बॉन चैलेंज में 2030 तक दुनिया भर के 350 मिलियन हेक्टेयर जमीन पर पौधरोपण करना है। पुराने जंगलों को बचाने के बजाय इस तरीके के पौधरोपण अभियान मोनोकल्चर को बढ़ावा दे रहे हैं। मोनोकल्चर यानी एक जैसे पौधे लगाने की परंपरा। या फिर एक ही प्रजाति के पौधे लगाना। इससे जैव-विविधता खत्म हो रही है। ऐसे पौधरोपण धरती पर ग्रीनहाउस गैस कम करने के बजाय बढ़ा रहे हैं। स्टडी में बताया गया है कि जिस तरह का फायदा इस तरह के पौधरोपण से होना चाहिए वो नहीं हो रहा है। बल्कि, इससे नुकसान हो रहा है। पौधरोपण में लगाए गए पौधों से जंगल, घास के मैदान और सवाना इकोसिस्टम बदल रहा है। सिर्फ, एक ही तरह के पौधों से बाकी पेड़-पौधों की प्रजातियां खत्म होती हैं।ये स्टडी भारत के संबंध में भी सही है। क्योंकि भारत में अक्सर पौधरोपण अभियान चलता है। लाखों-करोड़ों पौधे मोनोकल्चर के तहत लगाए जाते हैं। इससे लोगों द्वारा जमा किया टैक्स का पैसा बर्बाद हो रहा है। भारत की पौधरोपण नीतियों पर भी स्टडी में जिक्र किया गया हैइसलिए अगर आप भारत के जंगलों की रिपोर्ट देखेंगे तो पता चलेगा कि पिछले कुछ सालों में भारत में प्राकृतिक जंगलों से बाहर जंगल खड़े हो रहे हैं। ये जंगल पौधरोपण से लगाए गए पौधों से बने हैं। भारत में भी इस बात की योजना चल रही है कि 2022 तक पूरे देश के 33 फीसदी भौगोलिक क्षेत्र में जंगल उगाने हैं। अभी पूरे देश में 24 फीसदी जंगल हैं। इसके लिए देश में कई स्थानों पर पौधरोपण कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। गुजरात, तमिलनाडु और महाराष्ट्र जैसे कई राज्य पौधरोपण के लिए पैसे भी खर्च कर रहे हैं। साथ ही सब्सिडी भी दे रहे हैं। भारत सरकार की नीतियों के मुताबिक विभिन्न राज्य सरकारें उद्योंगों से पैसे लेकर पौधरोपण कराती हैं। इसके लिए कंपेंसेटरी एफॉरेस्टेशन फंड मैनेजमेंट एंड प्लानिंग अथॉरिटी (CAMPA) बनाई है। इसे केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के अधीन बनाया गया है। भारत सरकार इस तरह के पौधरोपण को जंगल में गिनती है। इस साल जनवरी में कोलंबिया यूनिवर्सिटी और अमेरिका के द नेचर कंजरवेंसी ने मैसूर के नेचर कंजरवेशन फाउंडेशन के साथ मिलकर एक अध्ययन किया था। इसमें बताया गया था कि मोनोकल्चर के तहत लगाए गए पौधे ज्यादा कार्बन रिस्टोर करते हैं। स्टडी में बताया गया है कि चिली में दुनिया का सबसे लंबा पौधरोपण कार्यक्रम चला था। जिसके लिए लोगों को पैसे भी दिए गए थे। ये कार्यक्रम 38 साल (1974 से 2012) तक चला था। लेकिन, चिली की नीतियां इतनी मजबूत थीं कि वहां हर तरह के पौधे लगाए गए।