INDIA Alliance / 40 दिन तक खींचतान... समझें कांग्रेस को UP में मिलीं 17 सीटों का गणित

समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच सीटों का बंटवारा हो गया है. 40 दिन की चर्चा और खींचतान, उठापटक, ट्विस्ट, तीखे बयान के बाद दोनों दलों में सहमति बन गई. इसके पीछे बड़ी वजह प्रियंका गांधी को माना जा रहा है. दावा तो यहां तक किया जा रहा है कि सीट शेयरिंग में प्रियंका गांधी ने काफी अहम रोल अदा किया. उन्होंने ही पहले राहुल गांधी से बातचीत की और उसके बाद सपा प्रमुख अखिलेश यादव से फोन पर बातचीत की. नतीजतन सपा ने कांग्रेस

Vikrant Shekhawat : Feb 22, 2024, 03:30 PM
INDIA Alliance: समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच सीटों का बंटवारा हो गया है. 40 दिन की चर्चा और खींचतान, उठापटक, ट्विस्ट, तीखे बयान के बाद दोनों दलों में सहमति बन गई. इसके पीछे बड़ी वजह प्रियंका गांधी को माना जा रहा है. दावा तो यहां तक किया जा रहा है कि सीट शेयरिंग में प्रियंका गांधी ने काफी अहम रोल अदा किया. उन्होंने ही पहले राहुल गांधी से बातचीत की और उसके बाद सपा प्रमुख अखिलेश यादव से फोन पर बातचीत की. नतीजतन सपा ने कांग्रेस को 17 सीटें दे दीं.

सपा-कांग्रेस गठबंधन में सीट शेयरिंग फॉर्मूले का औपचारिक ऐलान सपा प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी और यूपी कांग्रेस के प्रभारी अविनाश पांडेय ने बुधवार लखनऊ में किया. हालांकि माना ये जा रहा है कि दोनों दलों के बीच सपा के लिए 63 और कांग्रेस के 17 सीटों पर सहमति पहले ही बन गई थी. मंथन सिर्फ इस बात पर चल रहा था कि जो 17 सीटें कांग्रेस को मिलेंगी वह कौन सी होंगी. इसके पीछे एक पूरा गणित था. इसकी बानगी वाराणसी की सीट है जिस पर सपा ने एक दिन पहले ही सुरेंद्र पटेल को उम्मीदवार बनाया था, लेकिन अब ये कांग्रेस के खाते में है.

ये है कांग्रेस के खाते में आईं 17 सीटों का गणित

अमेठी – यह कांग्रेस की परंपरागत सीट है, ये पहले ही तय माना जा रहा था कि यदि सपा और कांग्रेस में गठबंधन होता है तो यह सीट कांग्रेस के खाते में आएगी. इस सीट से राहुल गांधी चुनाव लड़ते रहे हैं, हालांकि 2019 में वह केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी से हार गए थे, लेकिन इस बार फिर से उनके अमेठी से लड़ने की चर्चा शुरू हो गई है.

रायबरेली- कांग्रेस इसे भी अपनी परंपरागत सीट मानती है, सोनिया गांधी यहां से लगातार चार बार सांसद रह चुकी हैं, इससे पहले ही गांधी परिवार या उनके खास करीबी ही इस सीट से चुनाव लड़ते रहे हैं. इस बार सोनिया गांधी के राज्यसभा सदस्य चुने जाने के बाद प्रियंका गांधी यहां से मैदान में उतर सकती हैं.

वाराणसी: उत्तर प्रदेश की यह महत्वपूर्ण सीट मानी जाती है, जिससे कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय चुनाव लड़ चुके हैं, एक दिन पहले ही सपा ने यहां से सुरेंद्र पटेल को उम्मीदवार बनाया था. अब यह सीट कांग्रेस के खाते में है.

सहारनपुर: कांग्रेस नेता इमरान मसूद इस सीट से चुनाव लड़ चुके हैं, समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस के लिए यह सीट खाली कर दी है.

अमरोहा: समाजवादी पार्टी ने यह सीट भी कांग्रेस को दे दी हैं, यहां से पिछली बार बसपा के दानिश अली चुनाव जीते थे, अब वह पार्टी से बाहर कर दिए गए हैं, लेकिन कांग्रेस से उनकी नजदीकी जगजाहिर है. भाजपा सांसद रमेश बिधूड़ी द्वारा संसद में की गई टिप्पणी के बाद दानिश अली ने राहुल गांधी से भी मुलाकात की थी.

कानपुर: मध्य यूपी की यह सीट यूपी की राजनीति में काफी महत्वपूर्ण मानी जाती है. यहां से पिछली बार कांग्रेस उम्मीदवार श्रीप्रकाश जायसवाल दूसरे नंबर पर रहे थे, ऐसे में कांग्रेस को यहां उम्मीद दिख रही है.

फतेहपुर सीकरी: कानपुर की तरह ही फतेहपुर सीकरी में भी कांग्रेस उम्मीदवार राजबब्बर दूसरे नंबर पर थे, कांग्रेस को उम्मीद है कि इस बार यह सीट उनके खाते में आ सकती है.

गाजियाबाद: पश्चिमी उत्तर प्रदेश की यह सीट समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस को दे दी है. यहां 2019 के चुनाव में कांग्रेस तीसरे नंबर पर रही थी.

बाराबंकी: यहां भी 2019 के चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार तीसरे नंबर पर रहे थे, चुनाव में उन्हें 1 लाख 59 हजार मत हासिल हुए थे.

महाराजगंज: कांग्रेस के खाते में महाराजगंज सीट भी आई है, यह सीट 2009 में कांग्रेस के खाते में गई थी, उस चुनाव में हर्षवर्धन यहां से चुनाव जीते थे.

प्रयागराज: यह भी कांग्रेस की पुरानी सीट रही है, यहां से पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री समेत कांग्रेस के कई दिग्गज चुनाव जीत चुके हैं.

इसके अलावा कांग्रेस के खाते में देवरिया, बांसगांव, सीतापुर, बुलंदशहर, झांसी और मथुरा की सीट भी आई है. ये वे सीटें हैं जहां कांग्रेस दूसरे या तीसरे नंबर पर रही है. पार्टी को इन सभी सीटों पर इस बार जीत की उम्मीद दिखाई दे रही है.

40 दिन से चल रही थी खींचतान

समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच गठबंधन को लेकर 9 जनवरी को पहली औपचारिक बैठक हुई थी. उस समय सपा महासचिव रामगोपाल यादव बातचीत के लिए कांग्रेस नेता मुकुल वासनिक के घर पहुंचे थे. इसके बाद 17 जनवरी को दोनों दलों के नेताओं के बीच दूसरी बैठक हुई थी. हालांकि कोई ठोस नतीजा नहीं निकल पाया था. ऐसा इसलिए हो रहा था, क्योंकि कांग्रेस ज्यादा सीटें मांग रही थी. बाद में 31 जनवरी को बैठक की तारीख तय की गई, लेकिन उससे पहले ही अखिलेश यादव ने 11 सीटों का ऑफर दे दिया था. इसके बाद से ही इस बात की चर्चा होने लगी थी कि दोनों दलों के बीच गठबंधन को लेकर कुछ तय नहीं हो पा रहा है. हालांकि TV9 ने एक दिन पहले ही ये साफ कर दिया था कि दोनों दलों के बीच बातचीत जारी है और सीट बंटवारा अंतिम दौर में है.