INDIA Alliance Meeting / देश की राजनीति में आएगा तूफान- इंडिया गठबंधन की बड़ी तैयारी के संकेत

रायबरेली में राहुल गांधी ने कहा कि अगर बसपा उनके गठबंधन में शामिल होती, तो यूपी में भाजपा का सफाया तय था। मायावती की उदासीनता पर सवाल उठाते हुए उन्होंने विपक्ष की रणनीति पर चर्चा की। इस बयान ने यूपी की राजनीति में हलचल मचा दी है।

INDIA Alliance Meeting: नेता विपक्ष (LOP) राहुल गांधी ने गुरुवार को रायबरेली में एक सनसनीख़ेज खुलासा कर दिया। उन्होंने कहा यदि बसपा लोकसभा चुनाव में उनके साथ मिल कर लड़ती तो उत्तर प्रदेश में भाजपा (BJP) का सफाया तय था। उन्होंने कहा, पता नहीं क्यों मायावती चुनाव लड़ने को लेकर उदासीन रूख अपनाए हैं। राहुल गांधी के इस खुलासे से देश की राजनीति में तूफान आने के संकेत हैं।

राहुल गांधी ने यह बात तब कही, जब एक दलित युवक ने उनसे कांशीराम और मायावती के बारे में पूछा। उसने कहा था, कि दलितों के हालात तब बदले जब बहन मायावती सत्ता में आईं। इसके बाद राहुल गांधी ने उससे कहा, कि चुनाव के पूर्व हमने उनसे इंडिया गठबंधन में आने को कहा था। यदि ऐसा होता तो हमारे लिए सत्ता की डगर आसान होती।

योगी सरकार का नगाड़ा

उत्तर प्रदेश में दो साल बाद विधानसभा चुनाव होने हैं। कुंभ की सफलता और विधानसभा उप चुनावों में जीत का नगाड़ा बजा कर योगी आदित्यनाथ सरकार इसकी तैयारी कर चुकी है। लेकिन अब राहुल गांधी द्वारा मायावती को चुनाव के प्रति उदासीन बताना इस बात का संकेत है कि गठबंधन न हो पाने की स्थिति में दलित वोटर अपनी लाइन तय करे।

हालांकि अभी तक कभी ऐसा नहीं हुआ जब बीजेपी के खिलाफ उत्तर प्रदेश में सपा, बसपा और कांग्रेस मिल कर लड़ी हों। अलबत्ता 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा और 2025 में सपा और कांग्रेस मिल कर लड़ी थीं। विधानसभा में सपा और बसपा ने 1993 का चुनाव मिल कर लड़ा था। तब उत्तर प्रदेश में सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह की सरकार बनी थी। इसके बाद 1996 में बसपा और कांग्रेस ने साथ चुनाव लड़ा था।

गठबंधन का फायदा भी मिलता रहा

1996 के विधानसभा चुनाव में मायावती को लग गया था कि कांग्रेस के साथ मिल कर लड़ना उनके लिए फ़ायदेमंद नहीं रहा। बड़ी पार्टी छोटे दलों का वोट बैंक छीन सकती है। इसके बाद मायावती ने कांग्रेस से दूरी बना ली। 2017 में सपा और कांग्रेस ने विधानसभा में फिर हाथ मिलाया। तब बसपा को 19 सीटें मिली थीं। सत्तारूढ़ सपा को मात्र 47 सीटें हासिल हो पाई थीं तथा उसकी सहयोगी कांग्रेस को केवल 7 सीटें हासिल हुईं। जबकि बीजेपी के एनडीए गठबंधन को 312 सीटें। 2022 के विधानसभा चुनाव में सभी विपक्षी दल अलग-अलग मैदान में उतरे। इस चुनाव में फिर से बीजेपी का परचम तो लहराया मगर उसकी सीटें काफ़ी कम हुईं। कुल 255 सीटों पर उसे संतोष करना पड़ा।

2022 में सपा को फायदा

इसके विपरीत राष्ट्रीय लोकदल तथा कुछ अन्य दलों से गठजोड़ करने का लाभ सपा को मिला। उसे 111 सीटें मिलीं। कांग्रेस और बसपा सभी सीटों पर अकेले लड़ीं। दोनों को क्रमशः दो और एक सीट मिली। देश की राजनीति में उत्तर प्रदेश का अखाड़ा बहुत शक्तिशाली है। कहा जाता है, कि यूपी के रास्ते ही प्रधानमंत्री आता है। इसीलिए उत्तर प्रदेश के संदर्भ में राहुल गांधी का यह धमाकेदार बयान तब आया जब वे अपने लोकसभा क्षेत्र रायबरेली के दो दिवसीय दौरे पर हैं। दरअसल उत्तर प्रदेश में बीजेपी के सफाए का ब्लू प्रिंट बनाने वाले अखिलेश यादव का फोकस लखनऊ ही है। उन्हें केंद्र में सरकार बनाने अथवा प्रधानमंत्री बनने की कोई हड़बड़ी नहीं है। उनका पूरा ध्यान उत्तर प्रदेश पर है।

मायावती को घेरने की कवायद

दो दिन पहले कांग्रेस नेता उदित राज ने बयान दिया था, कि मायावती ने दलितों का गला घोंटा है। इसलिए अब मायावती का गला घोंटने का समय आ गया है। इसके बाद अखिलेश यादव सपा की मुलायम सिंह यादव सरकार में मंत्री रहे चौधरी यशपाल सिंह की पोती की शादी में सहारनपुर गए थे। वहाँ भारतीय किसान यूनियन (BKU) के नेता राकेश टिकैत से उनकी गुफ़्तगू हुई।

बताया जाता है, तब अखिलेश यादव ने उनसे कहा था, कि अगर 2024 में मायावती उनके साथ होतीं तो भाजपा को वे शून्य पर पहुँचा देते। इस तरह उन्होंने 2027 के विधानसभा चुनाव में विपक्ष की रणनीति का खुलासा कर दिया था। यह मायावती को चारों ओर से घेर लेने की क़वायद है। अब बसपा कब तक भाजपा के विरुद्ध आमने-सामने की लड़ाई लड़ने से कतराती रहेंगी!

राहुल गांधी ने खोले पत्ते

गुरुवार को राहुल गांधी राय बरेली शहर में स्थित मूल भारती आवासीय विद्यालय पहुंच गए, जहां छात्रावास में उन्होंने छात्रों से संवाद किया। वहीं पर एक दलित छात्र के सवाल जवाब में उन्होंने यह कहा। प्रदेश विधान सभा चुनाव के दो वर्ष पहले शुरू हुई विपक्ष की इस सुगबुगाहट से यह तो पता चलता ही है कि इस बार सत्तारूढ़ भाजपा को घेरने के लिए विपक्षी दलों ने अपनी गोटें बिछानी शुरू कर दी हैं।

भारी पड़ सकती है मायावती की उदासीनता

शहर में मूल भारती विद्यालय में उन्होंने स्पष्ट कहा, कि लोकसभा चुनाव के पूर्व उन्होंने मायावती को इंडिया गठबंधन में आने का न्योता दिया था। पहली बार विपक्षी गठबंधन के किसी बड़े नेता ने यह खुलासा किया। चुनाव लड़ने में बसपा की यह उदासीनता मायावती को भारी पड़ सकती है।

बसपा के ग्राफ में तेजी से गिरावट

आज़ाद के पास अभी कोई संगठन नहीं है और इसके बावजूद वे इस सुरक्षित सीट पर भारी पड़ गए। अभी एक दशक पहले तक बसपा राष्ट्रीय पार्टी हुआ करती थी। परंतु आज उसका हाल यह है कि उत्तर प्रदेश में भी उसकी मान्यता ख़तरे में पड़ गई है। लोकसभा में उसका कोई सदस्य नहीं है और विधानसभा में मात्र एक सदस्य है। इस तरह की भारी गिरावट से लगता है कि अगर बसपा ने अपनी रणनीति न बदली तो आने वाले दिनों में वह अतीत की पार्टी बन कर रह जाएगी।

खिसक रहा है बसपा का वोट बैंक

तीन बार उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री रहीं मायावती को सोचना तो पड़ेगा कि क्यों आख़िर वे विपक्षी दलों से तालमेल बिठाने में असफल रहती हैं। जबकि 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने सपा से गठबंधन किया था और लोकसभा की 10 सीटें जीत ली थीं। उनकी सहयोगी सपा को सिर्फ़ पांच सीटों पर संतोष करना पड़ा था। मायावती अपने बूते सिर्फ 2007 में राज्य की सत्ता में आ सकीं। शेष हर बार उन्हें भाजपा से चुनाव बाद सहयोग की राजनीति करनी पड़ी।