- भारत,
- 13-Apr-2025 04:20 PM IST
Rajasthan Politics: राजस्थान की सियासत में इन दिनों बीजेपी के दो दिग्गज नेताओं – कैबिनेट मंत्री गजेंद्र सिंह खींवसर और प्रदेश उपाध्यक्ष डॉ. ज्योति मिर्धा – के बीच चल रही तनातनी ने पार्टी के भीतर हलचल मचा दी है। दोनों नेताओं के तीखे बयानों और आपसी आरोप-प्रत्यारोप ने यह संकेत दे दिया है कि पार्टी के भीतर सामंजस्य की कमी सामने आ रही है, जिसे लेकर कार्यकर्ता भी असमंजस में हैं।
टकराव की शुरुआत: एक वायरल चिट्ठी से
इस विवाद की नींव पिछले महीने उस समय पड़ी, जब खींवसर से बीजेपी विधायक रेवंतराम डांगा की मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा को लिखी गई एक शिकायत पत्र सोशल मीडिया पर वायरल हुई। पत्र में विधायक ने नाराजगी जताई कि उनके क्षेत्र में विपक्ष के नेता के काम आसानी से हो रहे हैं, जबकि उनके खुद के अनुशंसित कार्य लंबित हैं। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि उनकी सिफारिश पर एक भी ट्रांसफर नहीं हुआ।
इस चिट्ठी के वायरल होते ही ज्योति मिर्धा ने इशारों-इशारों में इसके पीछे कैबिनेट मंत्री गजेंद्र सिंह खींवसर का हाथ होने का आरोप लगाया। मिर्धा का यह आरोप सार्वजनिक होने के बाद विवाद खुलकर सामने आ गया।
गजेंद्र सिंह का पलटवार
गजेंद्र सिंह खींवसर ने इस पूरे प्रकरण पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि "अगर कोई बार-बार चुनाव हार रहा है, तो इसमें हमारी क्या गलती है?" उनका यह व्यंग्यात्मक बयान सीधे तौर पर ज्योति मिर्धा की ओर इशारा करता है, जो 2014, 2019 और अब 2024 में लोकसभा चुनावों में पराजित हो चुकी हैं।
खींवसर ने आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि बिना सबूत आरोप लगाना ओछी मानसिकता का परिचायक है। उन्होंने यह भी दावा किया कि विधायक की चिट्ठी किसने लीक की, इसका पता चल चुका है, लेकिन मामला गोपनीय होने के कारण नाम उजागर करना उचित नहीं होगा।
दो दिग्गज, दो पृष्ठभूमियाँ
गजेंद्र सिंह खींवसर एक अनुभवी और पुराने बीजेपी नेता हैं, जो पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के करीबी माने जाते हैं। वर्तमान में वे चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। उनकी प्रशासनिक पकड़ और संगठन पर गहरी पकड़ मानी जाती है।
वहीं, ज्योति मिर्धा comparatively नई बीजेपी नेता हैं, जिन्होंने हाल ही में कांग्रेस छोड़कर saffron camp का दामन थामा है। वे नागौर की राजनीति में एक जाना-पहचाना चेहरा रही हैं और अपने सामाजिक कार्यों तथा मेडिकल बैकग्राउंड के चलते आमजन में लोकप्रियता रखती हैं।
अंदरुनी सियासत या नेतृत्व की चुनौती?
इस आपसी खींचतान ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या यह सिर्फ दो नेताओं के बीच की व्यक्तिगत खींचतान है, या फिर यह राज्य की बीजेपी में नेतृत्व को लेकर चल रही अंदरुनी जद्दोजहद का संकेत है। भाजपा नेतृत्व के लिए यह जरूरी हो गया है कि वह समय रहते हालात को संभाले, वरना यह विवाद पार्टी की चुनावी तैयारियों और सार्वजनिक छवि को नुकसान पहुंचा सकता है।