
- भारत,
- 27-Feb-2025 12:16 AM IST
भारत के राजनीतिक इतिहास में कई ऐसे क्षण हैं जो समय के साथ किंवदंती बन गए। ऐसा ही एक क्षण था जब देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को "दुर्गा" की उपाधि दी। यह घटना 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान की है, जो न केवल भारत की सैन्य शक्ति का प्रमाण बना, बल्कि इंदिरा गांधी के नेतृत्व को भी एक नई पहचान दी। आइए, इस ऐतिहासिक घटना को विस्तार से समझते हैं।
पृष्ठभूमि: 1971 का भारत-पाकिस्तान युद्ध1971 का वर्ष भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण था। उस समय पूर्वी पाकिस्तान (आज का बांग्लादेश) में स्वतंत्रता संग्राम अपने चरम पर था। पाकिस्तानी सेना द्वारा पूर्वी पाकिस्तान में किए जा रहे अत्याचारों के कारण लाखों शरणार्थी भारत में आ गए थे। यह स्थिति भारत के लिए मानवीय और आर्थिक संकट का कारण बन रही थी। इंदिरा गांधी, जो उस समय देश की प्रधानमंत्री थीं, ने इस संकट का डटकर सामना किया। उन्होंने न केवल शरणार्थियों की मदद की, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इस मुद्दे को उठाया। हालांकि, जब हालात बेकाबू हो गए, तो भारत को युद्ध में उतरना पड़ा।3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान ने भारत पर हमला कर दिया, जिसके जवाब में भारत ने भी पूर्ण युद्ध की घोषणा कर दी। यह युद्ध 13 दिनों तक चला और 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी सेना के 93,000 सैनिकों ने आत्मसमर्पण कर दिया। इस जीत ने बांग्लादेश को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में जन्म दिया और भारत को विश्व पटल पर एक मजबूत शक्ति के रूप में स्थापित किया। इस पूरे घटनाक्रम में इंदिरा गांधी का नेतृत्व असाधारण था।
वाजपेयी का ऐतिहासिक बयानयुद्ध के बाद जब संसद में इस जीत पर चर्चा हो रही थी, तब अटल बिहारी वाजपेयी, जो उस समय विपक्ष के एक प्रमुख नेता थे, ने इंदिरा गांधी की प्रशंसा में एक यादगार बयान दिया। उन्होंने कहा कि इंदिरा गांधी ने जिस तरह इस संकट का सामना किया और देश को विजय दिलाई, वह उन्हें "दुर्गा" की तरह बनाता है। हिंदू मान्यताओं में दुर्गा शक्ति, साहस और विजय की देवी हैं, और वाजपेयी का यह बयान इंदिरा की दृढ़ता और नेतृत्व का प्रतीक बन गया।
यह बयान लोकसभा में उस समय आया जब भारतीय सेना की जीत की गूंज पूरे देश में थी। माना जाता है कि यह टिप्पणी 13 दिसंबर 1971 के आसपास या उसके बाद की है, जब युद्ध में भारत की जीत लगभग निश्चित हो गई थी। वाजपेयी, जो अपनी वाकपटुता और काव्यात्मक शैली के लिए जाने जाते थे, ने इस मौके पर अपनी उदारता और राजनेता के रूप में परिपक्वता दिखाई। यह उल्लेखनीय था क्योंकि वाजपेयी और इंदिरा गांधी राजनीतिक रूप से एक-दूसरे के विरोधी थे। फिर भी, राष्ट्रहित के सामने उन्होंने अपनी प्रशंसा को खुलकर व्यक्त किया।
इस बयान का महत्ववाजपेयी का यह बयान कई मायनों में ऐतिहासिक था। पहला, यह उस समय की भारतीय राजनीति में एक दुर्लभ उदाहरण था जब विपक्ष ने सत्ताधारी नेता की इतनी खुलकर तारीफ की। दूसरा, इसने इंदिरा गांधी की छवि को एक सशक्त महिला नेता के रूप में और मजबूत किया। "दुर्गा" की उपमा ने उनके व्यक्तित्व में एक मिथकीय आयाम जोड़ा, जो उस समय जनता के बीच उनकी लोकप्रियता को और बढ़ाने वाला साबित हुआ।हालांकि, कुछ इतिहासकार और राजनीतिक विश्लेषक इस बात पर बहस करते हैं कि क्या वाजपेयी ने वास्तव में "दुर्गा" शब्द का प्रयोग किया था या यह उनकी प्रशंसा को बाद में इस रूप में प्रचारित किया गया। लेकिन यह कहानी भारतीय जनमानस में इस तरह रच-बस गई कि आज भी इसे एक निर्विवाद सत्य के रूप में देखा जाता है।
पृष्ठभूमि: 1971 का भारत-पाकिस्तान युद्ध1971 का वर्ष भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण था। उस समय पूर्वी पाकिस्तान (आज का बांग्लादेश) में स्वतंत्रता संग्राम अपने चरम पर था। पाकिस्तानी सेना द्वारा पूर्वी पाकिस्तान में किए जा रहे अत्याचारों के कारण लाखों शरणार्थी भारत में आ गए थे। यह स्थिति भारत के लिए मानवीय और आर्थिक संकट का कारण बन रही थी। इंदिरा गांधी, जो उस समय देश की प्रधानमंत्री थीं, ने इस संकट का डटकर सामना किया। उन्होंने न केवल शरणार्थियों की मदद की, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इस मुद्दे को उठाया। हालांकि, जब हालात बेकाबू हो गए, तो भारत को युद्ध में उतरना पड़ा।3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान ने भारत पर हमला कर दिया, जिसके जवाब में भारत ने भी पूर्ण युद्ध की घोषणा कर दी। यह युद्ध 13 दिनों तक चला और 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी सेना के 93,000 सैनिकों ने आत्मसमर्पण कर दिया। इस जीत ने बांग्लादेश को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में जन्म दिया और भारत को विश्व पटल पर एक मजबूत शक्ति के रूप में स्थापित किया। इस पूरे घटनाक्रम में इंदिरा गांधी का नेतृत्व असाधारण था।
वाजपेयी का ऐतिहासिक बयानयुद्ध के बाद जब संसद में इस जीत पर चर्चा हो रही थी, तब अटल बिहारी वाजपेयी, जो उस समय विपक्ष के एक प्रमुख नेता थे, ने इंदिरा गांधी की प्रशंसा में एक यादगार बयान दिया। उन्होंने कहा कि इंदिरा गांधी ने जिस तरह इस संकट का सामना किया और देश को विजय दिलाई, वह उन्हें "दुर्गा" की तरह बनाता है। हिंदू मान्यताओं में दुर्गा शक्ति, साहस और विजय की देवी हैं, और वाजपेयी का यह बयान इंदिरा की दृढ़ता और नेतृत्व का प्रतीक बन गया।
यह बयान लोकसभा में उस समय आया जब भारतीय सेना की जीत की गूंज पूरे देश में थी। माना जाता है कि यह टिप्पणी 13 दिसंबर 1971 के आसपास या उसके बाद की है, जब युद्ध में भारत की जीत लगभग निश्चित हो गई थी। वाजपेयी, जो अपनी वाकपटुता और काव्यात्मक शैली के लिए जाने जाते थे, ने इस मौके पर अपनी उदारता और राजनेता के रूप में परिपक्वता दिखाई। यह उल्लेखनीय था क्योंकि वाजपेयी और इंदिरा गांधी राजनीतिक रूप से एक-दूसरे के विरोधी थे। फिर भी, राष्ट्रहित के सामने उन्होंने अपनी प्रशंसा को खुलकर व्यक्त किया।
इस बयान का महत्ववाजपेयी का यह बयान कई मायनों में ऐतिहासिक था। पहला, यह उस समय की भारतीय राजनीति में एक दुर्लभ उदाहरण था जब विपक्ष ने सत्ताधारी नेता की इतनी खुलकर तारीफ की। दूसरा, इसने इंदिरा गांधी की छवि को एक सशक्त महिला नेता के रूप में और मजबूत किया। "दुर्गा" की उपमा ने उनके व्यक्तित्व में एक मिथकीय आयाम जोड़ा, जो उस समय जनता के बीच उनकी लोकप्रियता को और बढ़ाने वाला साबित हुआ।हालांकि, कुछ इतिहासकार और राजनीतिक विश्लेषक इस बात पर बहस करते हैं कि क्या वाजपेयी ने वास्तव में "दुर्गा" शब्द का प्रयोग किया था या यह उनकी प्रशंसा को बाद में इस रूप में प्रचारित किया गया। लेकिन यह कहानी भारतीय जनमानस में इस तरह रच-बस गई कि आज भी इसे एक निर्विवाद सत्य के रूप में देखा जाता है।