देश / उद्धव, आदित्य और सुप्रिया सुले की बढ़ी मुश्किलें, गड़बड़ी मिली तो हो सकती है 6 महीने जेल

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे , उनके बेटे आदित्य ठाकरे और एनसीपी सांसद सुप्रिया सुले फिलहाल मुश्किल में घिरती दिख रही हैं। इन सभी नेताओं पर चुनावी हलफनामे में संपत्ति और देनदारी की गलत जानकारी देने का आरोप है। मामले की गंभीरता को देखते हुए चुनाव आयोग ने इसकी जांच सीबीडीटी को सौंप दी है। इन दस्तावेजों को देखने के बाद ही चुनाव आयोग ने इसकी जांच सीबीडीटी के पास भेजी है।

News18 : Sep 20, 2020, 11:56 AM
मुंबई। महाराष्ट्र (Maharashtra) के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray), उनके बेटे आदित्य ठाकरे (Aditya Thackeray) और एनसीपी सांसद सुप्रिया सुले (Supriya Sule) फिलहाल मुश्किल में घिरती दिख रही हैं। इन सभी नेताओं पर चुनावी हलफनामे (Election Affidavit) में संपत्ति और देनदारी की गलत जानकारी देने का आरोप है। मामले की गंभीरता को देखते हुए चुनाव आयोग (Election Commission) ने इसकी जांच सीबीडीटी को सौंप दी है। खबर है कि महाराष्ट्र के इन नेताओं के अलावा गुजरात के विधायक नाथाभाई ए पटेल के खिलाफ भी चुनावी हलफनामें में गलत जानकारी की शिकायत की गई है।

जानकारी के मुताबिक महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ दल शिवसेना और उनकी सहयोगी​ पार्टी एनसीपी के इन नेताओं पर आरोप है कि इन लोगों ने चुनाव के समय चुनाव आयोग को जो हलफनामा दिया है उसमें कई जानकारी गलत भरी है और कई अधूरी जानकारी दी गई है। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक शिकायतकर्ताओं ने अपने दावे के समर्थन में कुछ दस्तावेज भी सौंपे हैं, जिससे पता चलता है कि इन नेताओं ने हलफनामे में गलत जानकारी दी है। इन दस्तावेजों को देखने के बाद ही चुनाव आयोग ने इसकी जांच सीबीडीटी के पास भेजी है।

चुनाव आयोग अब सीबीडीटी की जांच रिपोर्ट का इंतजार कर रही है। ऐसे में अगर इन नेताओं पर लगाए गए आरोप सही पाए जाते हैं तो रिप्रजेटेंशन ऑफ पीपल एक्ट की धारा 125 ए के तहत सीबीडीटी इस मामले में केस दर्ज कर सकती है। इस सेक्शन के तहत अधिकतम 6 महीने की जेल या जुर्माना या फिर दोनों का प्रावधान है।

चुनावी हलफनामे में क्या जानकारी देनी होती है

चुनाव से पहले चुनाव में खड़े होने वाले उम्मीदवार को चुनाव आयोग के सामने अपनी सभी तरह की जानकारी देनी होती है। इसमें आपराधिक पृष्ठभूमि, संपत्ति, देनदारी और शैक्षिक योग्यता का ब्योरा सबसे अहम है। साल 2013 में चुनाव आयोग ने तय किया था कि हर उम्मीदवार की ओर से दी गई लिखि​त जानकारी की जांच सीबीडीटी को करना होगा।