Reserve Bank Of India: 2024 का साल भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) के लिए चुनौतियों और प्राथमिकताओं के बीच संतुलन साधने का साल रहा। आसमान छूती महंगाई ने आरबीआई को सस्ते लोन का तोहफा देने से रोके रखा। इस दौरान, पूर्व गवर्नर शक्तिकान्त दास ने ब्याज दरों में कटौती के दबाव को नजरअंदाज करते हुए मुख्य फोकस महंगाई पर बनाए रखा। उनके कार्यकाल की समाप्ति के बाद नए गवर्नर संजय मल्होत्रा के नेतृत्व में आरबीआई को यह तय करना होगा कि क्या आर्थिक वृद्धि की कीमत पर महंगाई को प्राथमिकता देना जारी रहेगा।
दास का कार्यकाल: महंगाई पर कड़ा रुख
शक्तिकान्त दास ने छह साल के कार्यकाल में महंगाई नियंत्रण को अपनी प्राथमिकता बनाए रखा। उन्होंने पिछले दो वर्षों में प्रमुख नीतिगत दर रेपो को 6.5% पर स्थिर रखा। दास ने बार-बार कहा कि मुद्रास्फीति पर काबू पाने के लिए कठोर निर्णय आवश्यक हैं। लेकिन 2024 की जुलाई-सितंबर तिमाही में जीडीपी वृद्धि 5.4% तक गिरने से विकास दर पर दबाव बढ़ गया।दास के नेतृत्व में आरबीआई ने ‘लचीले मुद्रास्फीति ढांचे’ की विश्वसनीयता को संरक्षित रखने पर जोर दिया। हालांकि, लगातार 11 बार ब्याज दरों में बदलाव न होने से बाजार में यह चर्चा तेज हो गई थी कि आर्थिक गतिविधियों को पुनर्जीवित करने के लिए नीतिगत बदलाव की आवश्यकता है।
नए गवर्नर से उम्मीदें और चुनौतियां
दास के बाद केंद्रीय बैंक की कमान राजस्व सचिव रहे संजय मल्होत्रा ने संभाली। उनकी नियुक्ति के साथ ही फरवरी में होने वाली मौद्रिक समीक्षा बैठक पर सभी की नजरें टिक गई हैं। विश्लेषकों का मानना है कि मल्होत्रा का दृष्टिकोण ज्यादा प्रगतिशील हो सकता है। हालांकि, अमेरिकी फेडरल रिज़र्व द्वारा 2025 में सीमित दर कटौती के संकेत ने आरबीआई के लिए ब्याज दर घटाने की संभावनाओं को और जटिल बना दिया है।मल्होत्रा को न केवल घरेलू मुद्रास्फीति से निपटना होगा, बल्कि विदेशी मुद्रा बाजार में रुपये के स्थायित्व को भी बनाए रखना होगा। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या वह फरवरी में ब्याज दरों में कटौती की तरफ कदम बढ़ाते हैं या दास की तरह महंगाई पर ध्यान केंद्रित रखते हैं।
ब्याज दर कटौती: समाधान या भ्रम?
आरबीआई की छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) में ब्याज दरों में कटौती को लेकर मतभेद बढ़ते जा रहे हैं। जहां कुछ विशेषज्ञ 0.50% कटौती की संभावना जता रहे हैं, वहीं अन्य इसे पर्याप्त नहीं मानते। मौजूदा आर्थिक परिस्थितियों में इतनी मामूली कटौती से आर्थिक गतिविधियों को प्रोत्साहन देने में मदद मिलना संदिग्ध है।दास ने अपने अंतिम संवाददाता सम्मेलन में कहा था कि ‘केंद्रीय बैंकिंग में आकस्मिक प्रतिक्रिया की कोई जगह नहीं है।’ नए गवर्नर मल्होत्रा को भी दीर्घकालिक प्रभावों को ध्यान में रखकर फैसले लेने होंगे।
आर्थिक विकास और महंगाई: संतुलन का सवाल
आरबीआई की प्राथमिक जिम्मेदारी मुद्रास्फीति को नियंत्रित रखना है, लेकिन जीडीपी में गिरावट के चलते यह सवाल उठता है कि क्या महंगाई नियंत्रण की कीमत पर विकास को अनदेखा किया जा सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि फरवरी की बैठक में नीतिगत रुख ‘तटस्थ’ से ‘अनुकूल’ करने का दबाव होगा।
निष्कर्ष
2024 की चुनौतियों और बदलावों ने आरबीआई की नीतिगत प्राथमिकताओं पर गहरी छाप छोड़ी है। नए गवर्नर संजय मल्होत्रा के नेतृत्व में आरबीआई को मुद्रास्फीति और आर्थिक विकास के बीच संतुलन साधने के लिए मुश्किल निर्णय लेने होंगे। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि क्या वह सस्ते लोन का तोहफा देकर जनता और बाजार का भरोसा जीतते हैं, या महंगाई पर कड़े रुख को बनाए रखते हैं। आने वाले महीने आरबीआई और देश की आर्थिक नीतियों के लिए निर्णायक साबित होंगे।