Maharashtra Elections / शिंदे के जख्म-BJP की चोट, उद्धव अभी भूले नहीं, नहीं होगी NDA में वापसी

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में सत्ताधारी और विपक्षी गठबंधन ने सीएम पद के चेहरे पर सस्पेंस बनाए रखा है। चुनाव बाद की सियासत में नए समीकरणों की चर्चा ज़ोर पकड़ रही है। उद्धव ठाकरे ने बीजेपी के साथ किसी गठबंधन की संभावना खारिज की है, साथ ही शिंदे के 'बगावत' को भी अब तक नहीं भूले हैं।

Vikrant Shekhawat : Nov 13, 2024, 01:29 PM
Maharashtra Elections: महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के दौरान सत्ताधारी और विपक्षी दोनों गठबंधनों ने मुख्यमंत्री पद के चेहरे को लेकर सस्पेंस बनाए रखा, जिससे सियासी चर्चाएं और अटकलें तेजी से बढ़ गई हैं। सत्ता के लिए चुनाव परिणामों के बाद संभावित गठबंधन बदलने और सत्ता के खेल में बदलाव की संभावनाएं जताई जा रही थीं। उद्धव ठाकरे, जो ढाई साल पहले शिवसेना में हुए बड़े राजनीतिक संकट के दौरान सत्ताधारी बीजेपी से अलग हुए थे, ने अपनी पार्टी के समर्थन को लेकर स्पष्ट रुख दिखाते हुए संभावित पुनर्मिलन के कयासों पर विराम लगा दिया है।

बीजेपी और उद्धव ठाकरे की दूरी: दोस्ती में दरार और दर्द के निशान

2019 के विधानसभा चुनाव में शिवसेना ने बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था, लेकिन नतीजों के बाद दोनों दलों के बीच वैचारिक और सत्ता को लेकर मतभेद उभरकर सामने आए। उद्धव ठाकरे ने तब शिवसेना का नेतृत्व करते हुए कांग्रेस और एनसीपी के साथ महाविकास अघाड़ी (एमवीए) गठबंधन बनाकर सरकार बनाई। लेकिन शिवसेना में हुई बगावत ने उद्धव के लिए सियासी स्थिति को कठिन बना दिया। 2022 में, एकनाथ शिंदे ने शिवसेना के अधिकांश विधायकों के साथ उद्धव के खिलाफ बगावत कर बीजेपी के समर्थन से खुद को मुख्यमंत्री बना लिया, जिससे ठाकरे खेमा आज भी आहत महसूस करता है।

ठाकरे का कहना है कि बीजेपी ने सिर्फ सत्ता के लिए ही शिवसेना को विभाजित किया, और उनकी पार्टी के अस्तित्व पर चोट की। उद्धव ने कहा कि बीजेपी ने उनकी पार्टी को तोड़ने के साथ-साथ उनके बेटे और परिवार को भी निशाना बनाया है। उन्होंने अपने साक्षात्कार में कहा, "मेरे परिवार का अपमान किया गया है। मुझे नकली संतान कहा गया, तो क्या मोदी जी नकली संतान के साथ हाथ मिलाएंगे?" उद्धव ठाकरे का यह बयान साफ करता है कि बीजेपी से उनकी दूरी वैचारिक और व्यक्तिगत स्तर पर काफी गहरी है।

शिंदे के विद्रोह का दर्द और बीजेपी पर अविश्वास

एकनाथ शिंदे द्वारा की गई बगावत ने उद्धव ठाकरे के नेतृत्व को गंभीर चोट दी। शिंदे ने न केवल मुख्यमंत्री की कुर्सी हासिल की, बल्कि शिवसेना का एक बड़ा हिस्सा भी अपने साथ कर लिया। ठाकरे ने इशारों-इशारों में शिंदे पर तंज कसते हुए कहा कि महाराष्ट्र की जनता गद्दारों को सबक सिखाना जानती है और लोकसभा चुनाव में इसका ट्रेलर दिखा चुकी है। उद्धव ने कहा कि शिंदे जो कुछ भी बने हैं, वो उनके पिता बालासाहेब ठाकरे की वजह से हैं। ठाकरे का यह दर्द उनके लिए राजनीतिक रूप से अहमियत रखता है, जिससे बीजेपी और शिंदे के साथ उनकी खाई और गहरी हो गई है।

हिंदुत्व और सावरकर मुद्दे पर उठते मतभेद

शिवसेना का परंपरागत आधार हिंदुत्व रहा है, और उद्धव ठाकरे ने अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ाते हुए सावरकर को आदर्श माना है। हालाँकि, महाविकास अघाड़ी में उनके साथ कांग्रेस और एनसीपी हैं, जिनकी वैचारिक सोच शिवसेना से मेल नहीं खाती। कांग्रेस का सावरकर पर आलोचना करना और बीजेपी-संघ पर सवाल उठाना शिवसेना के लिए परेशानी का कारण रहा है। ठाकरे की कोशिश है कि राज्य में कांग्रेस सावरकर के खिलाफ बयानबाजी न करे, लेकिन सावरकर पर मतभेद गठबंधन में खटास पैदा कर सकते हैं।

मुख्यमंत्री पद के लिए उम्मीद और चुनाव के बाद की स्थिति

उद्धव ठाकरे खेमे की महत्वाकांक्षा साफ है कि अगर महाविकास अघाड़ी फिर से सत्ता में आती है, तो उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बनना चाहेंगे। लेकिन कांग्रेस की अपनी योजनाएं हैं और वह भी महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री पद पर नजरें गड़ाए हुए है। कांग्रेस के इस दृष्टिकोण से महाविकास अघाड़ी में भी सत्ता के लिए खींचतान हो सकती है। ऐसे में चुनावी अटकलें यह थीं कि अगर महाविकास अघाड़ी में तालमेल नहीं बनता है, तो उद्धव ठाकरे बीजेपी के साथ मिल सकते हैं। हालांकि, ठाकरे ने इस पर स्पष्ट किया है कि वह बीजेपी के साथ दोबारा नहीं जाएंगे और न ही शिंदे को अपने साथ लेंगे।

ठाकरे के बयान से बदलती सियासत का संकेत

उद्धव ठाकरे ने जिस तरह से अपने बयानों में बीजेपी और शिंदे के खिलाफ आक्रोश व्यक्त किया है, उससे यह साफ है कि आगामी विधानसभा चुनाव में उनकी रणनीति दोनों से दूरी बनाए रखने की है। महाराष्ट्र की राजनीति में दोस्ती और दुश्मनी की स्थायित्व नहीं है, लेकिन उद्धव ठाकरे ने स्पष्ट कर दिया है कि बीजेपी के साथ लौटने का कोई प्रश्न नहीं है। ठाकरे का यह रुख महाविकास अघाड़ी को मजबूती दे सकता है, लेकिन साथ ही गठबंधन में वैचारिक और सत्ता संतुलन के लिए भी चुनौतीपूर्ण स्थिति पैदा कर सकता है।

महाराष्ट्र की सियासत के इस मोड़ पर उद्धव ठाकरे का रुख उनके लिए न केवल राजनीतिक रूप से, बल्कि उनकी पार्टी शिवसेना की स्वायत्तता के लिए भी महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। विधानसभा चुनावों के परिणाम से ही यह तय होगा कि महाराष्ट्र में सत्ता का समीकरण किस ओर झुकेगा, लेकिन ठाकरे ने बीजेपी के साथ किसी भी प्रकार के गठबंधन की संभावनाओं पर विराम लगाकर सियासी चर्चाओं को स्पष्ट दिशा दे दी है।