महाराष्ट्र / एससी का निर्णय दुर्भाग्यपूर्ण, पीएम मोदी इसके लिए कानून बनाएं: मराठा आरक्षण पर उद्धव

50% की सीमा का उल्लंघन करने वाले मराठा आरक्षण को सुप्रीम कोर्ट द्वारा रद्द किए जाने को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने दुर्भाग्यपूर्ण बताया है। उन्होंने कहा, "हम प्रधानमंत्री से अपील करते हैं...कि वह मामले में दखल दें और मराठाओं को आरक्षण देने के लिए कानून बनाएं...हम मराठा समुदाय को न्याय दिलाने के लिए कानूनी लड़ाई जारी रखेंगे।"

Vikrant Shekhawat : May 05, 2021, 06:25 PM
मुंबई: नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में मराठा आरक्षण को खारिज किए जाने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे ने दुर्भाग्यपूर्ण बताया है। इसके साथ ही सीएम ने कहा कि मराठा समुदाय के लिए आरक्षण की लड़ाई विजय तक जारी रहेगी। उद्धव ठाकरे ने शीर्ष अदालत के फैसले को लेकर कहा, 'मैं हाथ जोड़कर पीएम और राष्ट्रपति से अपील करता हूं कि वे तत्काल मराठा कोटे को लेकर फैसला लें।' सीएम उद्धव ठाकरे ने कहा कि वह उम्मीद करते हैं कि केंद्र सरकार इस पर तत्काल ऐक्शन लेगी। ठाकरे ने कहा कि मुझे भरोसा है कि सरकार की ओर से उसी तरह फैसला लिया जाएगा, जैसे आर्टिकल 370 खत्म करने और शाह बानो केस के लिए संविधान में संशोधन किया गया था। 

उद्धव ठाकरे ने कहा कि बीजेपी सांसद छत्रपति संभाजी राजे की ओर मराठा कोटे के मुद्दे पर एक साल से अपॉइंटमेंट मांगा जा रहा है, लेकिन उन्हें टाइम नहीं मिला है। सीएम ठाकरे ने कहा कि शीर्ष अदालत ने विधानसभा के उस फैसले को खारिज कर दिया है, जिसे सभी दलों ने मिलकर पारित किया था। इसके साथ ही उद्धव ठाकरे ने कहा कि इस मामले में विजय मिलने तक जंग जारी रहेगी। इससे पहले बुधवार को मामले की सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने मराठा कोटो को असंवैधानिक करार देते हुए खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि राज्य सरकार यह बताने में असफल रही है कि आखिर क्यों 50 फीसदी आरक्षण की सीमा को तोड़ते हुए मराठा रिजर्वेशन दिया जाना चाहिए।

कोर्ट ने कहा कि 1992 के इंदिरा साहनी केस में तय की गई 50 फीसदी आरक्षण की सीमा को तोड़ने के लिए कोई ठोस आधार नहीं बताया गया है। अदालत की ओर से 2018 के महाराष्ट्र सरकार के फैसले को खारिज किए जाने से मराठा समुदाय के लोगों को शिक्षण संस्थानों और नौकरियों में अब रिजर्वेशन नहीं मिल पाएगा। इससे पहले जून 2019 में बॉम्बे हाई कोर्ट ने मराठा आरक्षण को बरकरार रखने का आदेश दिया था। हालांकि उच्च न्यायालय ने कहा था कि यह 16 फीसदी नहीं हो सकता। अदालत ने कहा था कि रोजगार में यह 12 फीसदी और शिक्षण संस्थानों में 13 पर्सेंट हो सकता है। उच्च न्यायालय के इस फैसले को ही हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी।