Vikrant Shekhawat : Jan 18, 2021, 03:07 PM
नॉर्वे में कोरोना वैक्सीन लगाने के बाद 29 लोगों की मौत हो चुकी है। इनकी उम्र 75 साल या उससे अधिक थी। इससे यह बहस शुरू हो गई है कि क्या दुनियाभर में बुजुर्गों को वैक्सीन लगाने के प्लान को बदलना होगा? क्या फाइजर की वैक्सीन का इस्तेमाल बुजुर्गों के लिए जानलेवा है? क्या और भी देशों में इस तरह के मामले सामने आए हैं?
नॉर्वे में कब शुरू हुआ वैक्सीनेशन?नॉर्वे में 27 दिसंबर को वैक्सीनेशन शुरू हुआ था। अब तक 25 हजार से अधिक लोगों को वैक्सीन लगाई जा चुकी है। वहां सिर्फ फाइजर की mRNA वैक्सीन को अप्रूवल मिला है। इसका ही इस्तेमाल बुजुर्गों पर हो रहा है। इस वैक्सीन का इस्तेमाल अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोप समेत कई देश कर रहे हैं। वहां भी गंभीर साइड इफेक्ट सामने आए हैं।
किस उम्र के बुजुर्गों के लिए खतरा है?75 साल के। वैक्सीनेशन के बाद के शुरुआती दिनों में 23 बुजुर्गों की मौत हुई जिनकी उम्र 80 साल या उससे अधिक थी। शनिवार को छह मौतें और हो गईं। इसके बाद बताया जा रहा है कि 75 साल के बुजुर्ग भी डेंजर जोन में हैं। इसने कई प्रश्न खड़े कर दिए हैं।
क्या वैक्सीन की वजह से मौतें हुई?हां। नॉर्वे की मेडिसिन एजेंसी (NMA) के मुताबिक ज्यादातर लोगों की मौत वैक्सीन के साइड इफेक्ट्स की वजह से हुई हैं मरने वालों में से 13 लोगों की मौत की जांच हो गई है। 16 अन्य मौतों की जांच हो रही है। जिन लोगों की मौत हुई, उनमें ज्यादातर को गंभीर बेसिक डिसऑर्डर थे। ज्यादातर लोगों में उल्टी, बुखार, इंजेक्शन की जगह पर रिएक्शन और उनकी पुरानी समस्याओं के बढ़ने के तौर पर साइड इफेक्ट्स दिखे।
नॉर्वे के इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ (NIPH) के मुताबिक जिन लोगों का जीवन बहुत ज्यादा नहीं बचा है, उनके लिए वैक्सीन का बहुत कम या बिल्कुल भी लाभ नहीं है। जिन लोगों को सीरियस डिसऑर्डर हैं, उनके लिए माइल्ड साइड इफेक्ट्स भी जानलेवा साबित हो रहे हैं।
वैक्सीन कंपनी का क्या कहना है?नॉर्वे में इस्तेमाल हो रही वैक्सीन बनाने वाली कंपनी फाइजर ने कहा है कि वह जर्मन कंपनी बायोएनटेक के साथ इन मौतों की जांच कर रहा है। वैसे, अब तक जो सामने आया है, उसमें कुछ भी अप्रत्याशित नहीं है। NIPH ने भी अपनी जांच में पाया कि वैक्सीनेशन के दौरान इस तरह की मौतें अलार्मिंग नहीं हैं। इसी वजह से उसने युवाओं और स्वस्थ लोगों के लिए वैक्सीनेशन को जारी रखा है।
क्या यह लोगों की सुरक्षा के लिए गंभीर चिंता का विषय है?नहीं। मास वैक्सीनेशन अभियान में बड़ी संख्या में लोगों को वैक्सीनेट किया जाता है। सामान्य सिद्धांत कहता है कि कुछ एडवर्स इवेंट्स की उम्मीद की जानी चाहिए, जिसमें कुछ गंभीर साइड इफेक्ट्स और मौतें भी शामिल हैं। नॉर्वे के रेगुलेटर और हेल्थ अधिकारी इसे गंभीर नहीं मान रहे।
रेगुलेटर और हेल्थ एजेंसी के मेडिकल डायरेक्टर स्टेनर मेडसन ने कहा कि हमें इससे कोई चिंता नहीं है। यह तो साफ हो चुका है कि इन वैक्सीन की वजह से जोखिम बहुत कम है। कई बीमारियों से जूझ रहे बुजुर्गों के लिए जरूर यह घातक साबित हो रही है।
क्या नॉर्वे ने वैक्सीनेशन में कोई बदलाव किया है?हां। नॉर्वे के अधिकारियों ने यह डॉक्टरों पर छोड़ दिया है कि किसे वैक्सीन लगाई जाए और किसे नहीं। यानी अब डॉक्टर केस-टु-केस बेसिस पर जांच करेंगे। अगर लगता है कि बुजुर्ग को वैक्सीन लगाना सेफ है तो ही लगाई जाएगी। बहुत बुजुर्ग या बीमार लोगों के लिए वैक्सीन जानलेवा साबित हो सकती है। नॉर्वे में जारी यह अलर्ट किसी भी देश में जारी अपनी तरह का पहला है।
क्या भारत में भी वैक्सीनेशन के दौरान साइड इफेक्ट्स सामने आए हैं?हां। भारत में रविवार तक 2.24 लाख लोगों को वैक्सीन लगाई गई है। इनमें सिर्फ 447 लोगों में ही साइड इफेक्ट्स दिखे हैं। यानी 0.2% केसेस में। तीन केस में ही अस्पतालों में भर्ती करने की नौबत आई। उनमें भी दो को कल ही डिस्चार्ज कर दिया गया।
क्या अमेरिका में भी साइड इफेक्ट्स दिखे हैं?हां। न्ययूॉर्क टाइम्स ने ही खबर दी थी कि फ्लोरिडा में 56 साल की फिजिशियन की वैक्सीन लगाने के बाद मौत हो गई। इसके बाद फाइजर ने बयान जारी किया था कि इस मामले में वह हेल्थ अधिकारियों के साथ मिलकर जांच कर रही है। साथ ही उसने मौत का वैक्सीन से कोई संबंध होने की बात से इंकार कर दिया था।
यूरोपीय मेडिसिंस एजेंसी यूरोपीय संघ में मेडिकल प्रोडक्ट्स का आंकलन करती है। उसके बाद निगरानी भी करती है। उसने कहा है कि यूरोपीय संघ में सप्लाई करने वाली कंपनियों के प्रोडक्ट्स की हर महीने समीक्षा होगी। फाइजर की वैक्सीन की समीक्षा अगले हफ्ते होगी तो निश्चित तौर पर नॉर्वे में हुई मौतों का मसला भी रहेगा।
नॉर्वे में कब शुरू हुआ वैक्सीनेशन?नॉर्वे में 27 दिसंबर को वैक्सीनेशन शुरू हुआ था। अब तक 25 हजार से अधिक लोगों को वैक्सीन लगाई जा चुकी है। वहां सिर्फ फाइजर की mRNA वैक्सीन को अप्रूवल मिला है। इसका ही इस्तेमाल बुजुर्गों पर हो रहा है। इस वैक्सीन का इस्तेमाल अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोप समेत कई देश कर रहे हैं। वहां भी गंभीर साइड इफेक्ट सामने आए हैं।
किस उम्र के बुजुर्गों के लिए खतरा है?75 साल के। वैक्सीनेशन के बाद के शुरुआती दिनों में 23 बुजुर्गों की मौत हुई जिनकी उम्र 80 साल या उससे अधिक थी। शनिवार को छह मौतें और हो गईं। इसके बाद बताया जा रहा है कि 75 साल के बुजुर्ग भी डेंजर जोन में हैं। इसने कई प्रश्न खड़े कर दिए हैं।
क्या वैक्सीन की वजह से मौतें हुई?हां। नॉर्वे की मेडिसिन एजेंसी (NMA) के मुताबिक ज्यादातर लोगों की मौत वैक्सीन के साइड इफेक्ट्स की वजह से हुई हैं मरने वालों में से 13 लोगों की मौत की जांच हो गई है। 16 अन्य मौतों की जांच हो रही है। जिन लोगों की मौत हुई, उनमें ज्यादातर को गंभीर बेसिक डिसऑर्डर थे। ज्यादातर लोगों में उल्टी, बुखार, इंजेक्शन की जगह पर रिएक्शन और उनकी पुरानी समस्याओं के बढ़ने के तौर पर साइड इफेक्ट्स दिखे।
नॉर्वे के इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ (NIPH) के मुताबिक जिन लोगों का जीवन बहुत ज्यादा नहीं बचा है, उनके लिए वैक्सीन का बहुत कम या बिल्कुल भी लाभ नहीं है। जिन लोगों को सीरियस डिसऑर्डर हैं, उनके लिए माइल्ड साइड इफेक्ट्स भी जानलेवा साबित हो रहे हैं।
वैक्सीन कंपनी का क्या कहना है?नॉर्वे में इस्तेमाल हो रही वैक्सीन बनाने वाली कंपनी फाइजर ने कहा है कि वह जर्मन कंपनी बायोएनटेक के साथ इन मौतों की जांच कर रहा है। वैसे, अब तक जो सामने आया है, उसमें कुछ भी अप्रत्याशित नहीं है। NIPH ने भी अपनी जांच में पाया कि वैक्सीनेशन के दौरान इस तरह की मौतें अलार्मिंग नहीं हैं। इसी वजह से उसने युवाओं और स्वस्थ लोगों के लिए वैक्सीनेशन को जारी रखा है।
क्या यह लोगों की सुरक्षा के लिए गंभीर चिंता का विषय है?नहीं। मास वैक्सीनेशन अभियान में बड़ी संख्या में लोगों को वैक्सीनेट किया जाता है। सामान्य सिद्धांत कहता है कि कुछ एडवर्स इवेंट्स की उम्मीद की जानी चाहिए, जिसमें कुछ गंभीर साइड इफेक्ट्स और मौतें भी शामिल हैं। नॉर्वे के रेगुलेटर और हेल्थ अधिकारी इसे गंभीर नहीं मान रहे।
रेगुलेटर और हेल्थ एजेंसी के मेडिकल डायरेक्टर स्टेनर मेडसन ने कहा कि हमें इससे कोई चिंता नहीं है। यह तो साफ हो चुका है कि इन वैक्सीन की वजह से जोखिम बहुत कम है। कई बीमारियों से जूझ रहे बुजुर्गों के लिए जरूर यह घातक साबित हो रही है।
क्या नॉर्वे ने वैक्सीनेशन में कोई बदलाव किया है?हां। नॉर्वे के अधिकारियों ने यह डॉक्टरों पर छोड़ दिया है कि किसे वैक्सीन लगाई जाए और किसे नहीं। यानी अब डॉक्टर केस-टु-केस बेसिस पर जांच करेंगे। अगर लगता है कि बुजुर्ग को वैक्सीन लगाना सेफ है तो ही लगाई जाएगी। बहुत बुजुर्ग या बीमार लोगों के लिए वैक्सीन जानलेवा साबित हो सकती है। नॉर्वे में जारी यह अलर्ट किसी भी देश में जारी अपनी तरह का पहला है।
क्या भारत में भी वैक्सीनेशन के दौरान साइड इफेक्ट्स सामने आए हैं?हां। भारत में रविवार तक 2.24 लाख लोगों को वैक्सीन लगाई गई है। इनमें सिर्फ 447 लोगों में ही साइड इफेक्ट्स दिखे हैं। यानी 0.2% केसेस में। तीन केस में ही अस्पतालों में भर्ती करने की नौबत आई। उनमें भी दो को कल ही डिस्चार्ज कर दिया गया।
क्या अमेरिका में भी साइड इफेक्ट्स दिखे हैं?हां। न्ययूॉर्क टाइम्स ने ही खबर दी थी कि फ्लोरिडा में 56 साल की फिजिशियन की वैक्सीन लगाने के बाद मौत हो गई। इसके बाद फाइजर ने बयान जारी किया था कि इस मामले में वह हेल्थ अधिकारियों के साथ मिलकर जांच कर रही है। साथ ही उसने मौत का वैक्सीन से कोई संबंध होने की बात से इंकार कर दिया था।
यूरोपीय मेडिसिंस एजेंसी यूरोपीय संघ में मेडिकल प्रोडक्ट्स का आंकलन करती है। उसके बाद निगरानी भी करती है। उसने कहा है कि यूरोपीय संघ में सप्लाई करने वाली कंपनियों के प्रोडक्ट्स की हर महीने समीक्षा होगी। फाइजर की वैक्सीन की समीक्षा अगले हफ्ते होगी तो निश्चित तौर पर नॉर्वे में हुई मौतों का मसला भी रहेगा।